मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 13 दिसंबर 2015

असहिष्णुता का वैश्विक रूप

                                                                 देश में पिछले कुछ महीनों से सहिष्णुता-असहिष्णुता पर चल रही बहस और राष्ट्रीय सम्मानों के साथ पुरुस्कार लौटने की जो प्रक्रिया चल रही थी आज पूरी दुनिया में उसी मुद्दे पर चर्चा शुरू हो चुकी है. अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के चुनाव में उम्मेदवारी के लिए मैदान में उतरे डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से वैश्विक इस्लामी चरमपंथ बढ़ने और उससे अमेरिका को सुरक्षित रखने के मसले पर अपने रुख को स्पष्ट किया था उसके बाद अमेरिका में भी इस मुद्दे पर बहस शुरू हो चुकी है. उनके बयान का किसी भी सभ्य समाज में समर्थन नहीं किया जा सकता है फिर भी उनकी बातों का समर्थन करने वाले आसानी से मिल जाते हैं क्योंकि आज भी जिस तरह से सम्पूर्ण मुस्लिम जगत में आईएस, बोको हरम, तालिबान और अल क़ायदा जैसे संगठनों का खुले तौर पर स्पष्ट विरोध नहीं किया जाता है वह कहीं न कहीं से अन्य समुदायों को इस तरह से इकठ्ठा होने का अवसर ही दिया करते हैं. आईएस आज भी दुनिया को मध्यकलीन कानून से चलाना चाहता है और वह अपने लाभ के लिए इस्लाम की मनमानी और उग्र व्याख्या करने से भी नहीं चूकता है जिससे जहाँ विश्व भर में मुस्लिम युवक उससे जुड़ने की कोशिशें करते हुए दिखाई देते हैं तथा वह अपनी उस रणनीति में सफल होता भी दिखाई देता है जिसके माध्यम से वह अपनी इस लड़ाई को इस्लाम बनाम गैर इस्लाम बनने की कोशिशों में लगा है.
                       इस्लाम की यदि आईएस द्वारा सही व्याख्या की जा रही होती तो भारत के एक हज़ार से अधिक धार्मिक विद्वानों की तरफ से संयुक्त राष्ट्र और अन्य देशों को आईएस के खिलाफ फ़तवा देने और भेजने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती. आज खुद इस्लाम के अनुयायियों को यह तय करना है कि उन्हें किस तरह का मुसलमान बनकर दुनिया में अपना सहयोग देना है क्योंकि कुछ संगठनों की हरकतों से आज पूरी दुनिया में मुस्लिम समुदाय को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और अब खुद मुसलमानों पर ही इस बात का दबाव बढ़ता जा रहा है कि वे अपने अंदर से उन लोगों को आगे करना शुरू करें जो इस्लाम के सही मूल्यों को आगे लाने का काम कर सकें. यह समय ऐसा है कि इस्लामी चरमपंथियों के दबाव को पूरा विश्व महसूस कर रहा है पर लोकतंत्र और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने के संकल्प के साथ वे खुलकर इस तरह से कोई काम नहीं कर सकते हैं. यह भी सही है कि आज विभिन्न इस्लामी चरमपंथी गुटों को विश्व की बड़ी ताकतें अपने हितों को साधने के लिए मदद दे रही हैं पर इससे पूरे विश्व में जो बंटवारा हो रहा है वह आने वाले समय के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है.
                      फेसबुक और गूगल के सीईओ द्वारा जिस तरह से बहुलता वादी समाज की पैरवी की जा रही है वही सम्पूर्ण विश्व के लिए एक मिसाल बन सकती है और इसके लिए सभी को समवेत रूप से प्रयास करने की आवश्यकता भी होगी. ऐसी परिस्थितियों में यदि आईएस सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों में अपना प्रभाव ज़माने में सफल हुआ तो आने वाले समय में पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा संकट भी उत्पन्न हो सकता है क्योंकि जब तक विश्व के बड़े देश इससे निपटने की रणनीति खोजेंगें इन देशों की वैज्ञानिक और आर्थिक ताकत तथा सम्पूर्ण ढांचे का दुरूपयोग करने की कोशिश भी आतंकियों द्वारा की जा सकती है. आईएस मुसलमानों को अन्य सभी समुदायों के खिलाफ भड़काना चाहता है और यदि अन्य लोग भी ट्रंप की भाषा बोलने लगेंगें तो उससे आईएस का काम आसान ही होने वाला है. अब समय आ गया है कि केवल इस्लाम के पीछे छिपे हुए इन चरमपंथियों पर सटीक प्रहार किये जाएँ और इनके आर्थिक स्रोतों को पूरी तरह से बंद किया जाये. इसके साथ ही केवल इन आतंकियों न कि पूरे इस्लाम से निपटने के लिए कारगर रणनीति के तहत एक वैश्विक योजना बनायीं जाये जिस पर सभी छोटे बड़े देश पूरी तरह से अमल भी करें. अब वैचारिक हमला इन चरमपंथियों पर ही होना चाहिए न कि पूरे इस्लाम पर क्योंकि उससे असहिष्णुता बढ़ेगी और वह आईएस के लिए मरने वाले और फिदायीन बनाने का काम ही करेगी.    
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