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सोमवार, 4 जनवरी 2016

मोदी सरकार की लापरवाह जल्दबाज़ी

                                                                                   ४८ घंटे से अधिक समय से पठानकोट एयर बेस में घुसे पाकिस्तानी आतंकियों से निपटने के मामले में मोदी सरकार ने जिस तरह का रवैया अपनाया है वह अपने आप में किसी भी स्तर पर ज़िम्मेदार नहीं कहा जा सकता है. चार आतंकियों को मारने के बाद जिस तरह से खुद गृह मंत्री ने ट्वीट कर इस अभियान के ख़त्म होने की जानकारी दी वह सरकार की कमज़ोरी और प्रचार पाने की भूख को ही दिखाता है क्योंकि संभवतः ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार के गृह मंत्री की तरफ से ऐसा बयान आया हो जिसे बाद में उन्हें खुद ही हटाना पड़ा हो. हर मामले में राजनीति करने की आदी रही भाजपा इस आतंकी हमले में भी यह साबित करना चाहती थी कि इतने बड़े आतंकी दुस्साहस को इतनी आसानी और जल्दी के साथ ख़त्म कर दिया गया पर प्रचारों में रहकर अपने को सर्वोत्तम साबित करने की मोदी और उनकी सरकार की रणनीति इस मामले में उलटी ही पड़ गयी है. आतंकियों के बारे में सही जानकारी और इतने बड़े क्षेत्र के पूरी तरह से निरापद घोषित किये जाने से पहले अाखिर किन वजहों से सरकार ने इस मामले में इतनी जल्दी दिखाई जो उसके लिए शर्मिंदगी का कारण भी बन गयी.
                               इस पूरे मामले में कहीं न कहीं कुछ ऐसा अवश्य हुआ है जिसे बड़ी रणनीतिक चूक भी माना जा सकता है क्योंकि एसपी के अपहरण से लेकर आतंकी हमले के इनपुट्स होने के बाद भी आतंकी एयर बेस में इतने प्रभावशाली तरीके से अपने पैर ज़माने में कैसे सफल हुए इसका जवाब किसी के पास नहीं है. यह सही है कि एयर बेस के क्षेत्र के बहुत बड़े होने के कारण भी किसी के लिए इतनी जल्दी पूरी तरह से इसे निरापद कर पाना संभव नहीं है पर वायु सेना ने आखिर किस दबाव में इस अभियान के पूरा होने की बात स्वीकार की यह सोचने का विषय है और यदि इतने महत्वपूर्ण एयर बेस की सुरक्षा के मामले में इस हद की लापरवाही बरती जा रही थी तो आतंकियों को वास्तव में बड़े नुकसान करने के अपने अभियान से विफल किया जा चुका है. इस मामले में भाजपा प्रवक्ताओं समेत सरकार की बोलती जिस तरह से बंद हो गयी है वह पहले कभी नहीं हुई क्योंकि अब उनकी समझ में भी आने लगा है कि पाकिस्तान के साथ इस तरह की शाल और पगड़ी की कूटनीति कभी भी कारगर नहीं हो सकती है. आखिर गुरदासपुर में ऐसा क्या है कि आतंकी वहीं से पिछले छह महीने में दूसरी बार सफलता पूर्वक घुसपैठ करने में सफल हो गए हैं ?
                               बड़बोली मोदी सरकार को इस घटना से यह सीख अवश्य ही लेनी चाहिए कि इतने बड़े अभियान में वह खुद राजनीति न करे क्योंकि अभी तक जिस तरह से विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के आतंक से सख्ती से लड़ने की मंशा का पूरा समर्थन किया है उसके बाद सरकार को ही संभलने की आवश्यकता है. कहीं ऐसा तो नहीं कि इस मामले में भी सरकार बड़े आतंकी अभियान को पिछले अभियानों के मुकाबले जल्दी समाप्त कर यह दिखाना चाहती थी कि अब आतंकियों से निपटने में उतना समय नहीं लगता जितना पिछली सरकार में लगा करता था ? जिस तेज़ी के साथ बिना पूरे क्षेत्र को जाँचे यह घोषणा की गयी उससे तो सरकार की मंशा पर ही संदेह होता है और उसकी इतने महत्वपूर्ण मामलों का भी राजनैतिक लाभ उठाने की मंशा का पर्दाफाश भी होता है. क्या देश में कोई उस स्थिति की कल्पना कर सकता है कि यदि ऐसा मनमोहन सिंह सरकार के समय हुआ होता तो भाजपाई नेता और प्रवक्ता के साथ राज्यों में बैठे मुख्यमंत्री किस दर्ज़े की राजनीति में शामिल हो जाते ? दूसरों को उपदेश देना आसान है पर जब खुद पर पड़ती है तो बात समझ में आती है अब समय आ गया है कि भारत को पाक से हर तरह के संबंधों को समाप्त करने के बारे में सोचना ही होगा तभी उस पर दबाव बनाया जा सकता है.    
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