मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 3 जनवरी 2016

पाकिस्तानी आतंक और भारतीय राजनीति


                                                              आज़ादी के बाद से ही जिस तरह से पाकिस्तान की तरफ से भारत को अस्थिर करने की एक स्थायी नीति पर काम किया जा रहा है वहीं उसके मुकाबले भारत की पाकिस्तान से सम्बंधित नीति में लगातार राजनीति के चलते गंभीर बदलाव देखे जाते रहे हैं जिसका परिणाम आज देश के सामने है. पाकिस्तान में जहाँ १९४७ के कबाइली से लगाकर आज तक सेना, राजनेता, धार्मिक नेता, जिहादी और आतंकवादियों में भारत के प्रति एक नीति स्पष्ट रूप से देखी जाती है वहीं हमारे यहाँ इसे केवल सत्ता और विपक्ष की राजनीति से जोड़कर देखा जाता है जिससे भी आज़ादी कितने वर्षों बाद भी राजनैतिक रूप से भारत इस मामले में सदैव ही पाकिस्तान से पिछड़ जाता है. भाजपा की विपक्ष में रहते हुए बेहद आक्रामक पाक नीति सामने आती है पर जब उसे सत्ता मिलती है तो उसके शीर्ष नेता अपने अतीत के बयानों और नीतियों को भूलकर केवल पाकिस्तानी नेताओं के साथ गलबहियां करते हुए ही नज़र आते हैं. भारत में राजनैतिक दलों के स्थान पर सत्ता की लचर पाकिस्तान नीति है जो सत्ता पक्ष को चुप करा विपक्ष में बैठे हुए नेताओं को सरकार पर हमला करने का अवसर देने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर पाती है.
                                 पिछले १० वर्षों में इस तरह के हमलों के समय जिस तरह से सत्ता में होने के कारण कांग्रेसी नेता सधे हुए शब्दों में बयान दिया करते थे आज वह स्थिति भाजपा के सामने आ चुकी है और जिस तरह की आग भाजपा वाले विपक्ष में रहकर उगला करते थे अभी वहां तक पहुँचने में कोंग्रेसियों को बहुत समय लगने वाला है. इस परिस्थिति में अब सरकार के पास करने के लिए क्या होता है और क्या अब भी हमारी संसद और नेता इस आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से बाहर निकल कर पाकिस्तान पर कुछ ठोस नीति बनाये जाने के बारे में सोचना भी चाहते हैं ? आज भाजपा के नेता आतंक के मुद्दे पर राजनीति न करने की सलाह देते हुए नज़र आ रहे हैं पर वे अपने उस समय को भूल जाते हैं जब ऐसे किसी भी मुद्दे पर वे कांग्रेस नीत सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाने से नहीं चूकते थे ? यदि भाजपा तब सही थी तो इसका मतलब यही है कि आज भाजपा मुस्लिम तुष्टिकरण में आकंठ डूबी हुई है और कांग्रेस पूरी तरह से राष्ट्रवादी रुख पर चल रही है ? महत्वपूर्ण मुद्दे पर देश के नेताओं का यह मतिभ्रम आखिर हमें और देश को कहाँ ले जाने वाला है इसका उत्तर किसी के पास भी नहीं है.
                 आतंक का कोई धर्म नहीं होता पर आज के वैश्विक परिवेश में जिस तरह से विभिन्न देशों के चंद महत्वाकांक्षी लोगों द्वारा कम समय में अपने प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए इस्लाम का सहारा लिया जा रहा है उससे अधिकतर खूंखार आतंकी संगठन मुस्लिम ही दिखाई दे रहे हैं. आतंक का जो भी वैश्विक स्वरुप है वह भारत के नियंत्रण से बाहर ही है पर आज भी पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के सामने मजबूर होते पाकिस्तानी नेता सदैव ही रबर स्टाम्प से अधिक कुछ भी नहीं होते हैं. इस तरह के हमले की पटकथा तो २५ दिसंबर को मोदी की लाहौर यात्रा के दौरान ही लिख दी गयी थी क्योंकि यदि भारत पाक के बीच विवाद समाप्त होता है तो दुनिया भर से कश्मीर और जिहाद के नाम पर इकठ्ठा किये जा रहे पैसों पर रोक लग जाएगी और इन कथित धार्मिक, आतंकी और सेना के लिए जिहाद के लिए पैसे मिलने बंद हो जायेंगे. पाक अपनी नीति को समय समय पर भारत के साथ राजनैतिक स्तर पर भी ज़िंदा रखने की कोशिश करता रहता है जिससे वह विश्व को सन्देश दे सके कि वह क्षेत्र में शांति चाहता है और भारत के सत्ता प्रतिष्ठान स्पष्ट नीति के अभाव में केवल बातचीत को पटरी पर रखने की बातें करते हुए ही नज़र आते रहते हैं.  मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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