मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

कन्हैया - कानून और सरकार

                                                            उग्र किस्म के देश प्रेम के अतिउत्साह से लबरेज़ भाजपाई और उनके हितों को साधने में लगी हुई दिल्ली पुलिस के सामने अब कन्हैया एक बड़े संकट के रूप में सामने आ रहा है क्योंकि उसे जिस तरह के आरोपों में हिरासत में लिया गया है आने वाले समय में उनको साबित कर पाना दिल्ली पुलिस के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है. यह सही है कि कन्हैया इस समय भाजपा के धुर विरोधी छात्र संगठन से आता है और जेएनयू में एबीवीपी के माध्यम से भाजपा जिस तरह से इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में अपने पाँव ज़माने की कोशिश कर रही है अभी तक से सफलता नहीं मिल पायी है. देश भर में छात्र राजनीति के माध्यम से अपने लिए भविष्य के नेताओं की नयी कतार खड़ी करने की राजनैतिक दलों की कोशिशें देश के चुनिंदा महत्वपूर्ण विश्विद्यालयों में चलती ही रहती हैं पर इस मामले में जिस तरह से गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस की तरफ से भी अतिउत्साह में काम किया गया उसकी गलती अब सरकार को महसूस हो रही है. बजट सत्र के लिए बुलाई गयी सर्वदलीय बैठक में भी विपक्ष की तरफ से इस बात पर ज़ोर दिया गया जिसके बाद पीएम मोदी को यह कहना पड़ा कि वे भाजपा के नहीं देश के पीएम हैं पर उनकी यह बात धरातल पर कितनी उतर पाती है यह देखने का विषय होगा.
                                                         देश के अंदर कहीं भी किसी भी तरह की अलगाववादी गतिविधि का समर्थन नहीं किया जा सकता है पर जेएनयू में शुरू से वामपंथी प्रभाव अधिक होने के चलते वहां हर वर्ष माओवादियों के समर्थन में इस तरह की घटनाएँ होती रहती हैं जो कि सरकार को पता रहती हैं पर इस बार बिना अनुमति के ही कुछ छात्रों ने रात का फायदा उठाते हुए जिस तरह से नारेबाजी की उसका किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं किया जा सकता है. दिल्ली पुलिस ने एबीवीपी के राजनैतिक दबाव के चलते जिस तरह से सीधे कन्हैया को हिरासत में लिया उसे भी सही नहीं कहा जा सकता है. यह देखकर अजीब लगता है कि देश की राजधानी की सुरक्षा के लिए तैनात दिल्ली पुलिस की लापरवाही से उसका पूरा ध्यान केवल कन्हैया पर  हीलगा रहा जिससे नारेबाजी में जो भी वास्तविक छात्र सम्मिलित थे उनको भागने और छिपने का भरपूर समय भी मिल गया. क्या दिल्ल्ली पुलिस इस मामले से कुछ और बेहतर तरीके से नहीं निपट सकती थी जिसमें कुछ लोगों को संदेह के आधार पर हिरासत में लेकर पूछताछ की जाती और उन लोगों पर पूरा ध्यान लगाया जाता जो इस घटना के पीछे वास्तव में शामिल थे ?
                                 पिछले कुछ समय से दिल्ली पुलिस जिस तरह से काम कर रही है उससे गृह मंत्रालय की छवि पर भी असर पड़ रहा है इस बात पर भी जांच करने की आवश्यकता है कि हाफिज सईद वाले कनेक्शन की बात गृह मंत्री तक किसने पहुंचाई थी जो फ़र्ज़ी ट्वीटर हैंडल से पोस्ट की गयी थी ? क्या इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार केवल खोखले बयानों से ही काम करती है या फिर गृह मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह की छवि को ख़राब करने के नियोजित प्रयास किये जा रहे हैं जिस तरह से अरुण जेटली का लम्बे समय तक वित्त मंत्री पद पर रहना अब संदिग्ध हो गया है वैसे ही अब राजनाथ सिंह की छवि को भी ख़राब करने के प्रयास तो शुरू नहीं हो गए हैं ? राजनाथ कठोर प्रशासक माने जाते हैं और गंभीर व्यक्ति भी हैं तो उनसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर  इस तरह के बयान दिलवाने से किसके हित साधे जा रहे हैं यह भी देखने का विषय है कहीं ऐसा तो नहीं कि २०१७ के यूपी चुनावों के लिए राजनाथ को वापस लखनऊ की राजनीति में भेजने की शुरुवात मोदी-शाह की जोड़ी ने शुरू कर दी है कि यदि वे जीत जाएँ तो यूपी संभालें वर्ना विधानसभा की विपक्षी लॉबी में बैठकर सरकार से दो दो हाथ करें ? पार्टी की राजनीति से देश पर इस तरह एक असर नहीं पड़ने चाहिए जिससे देश की अंतरराष्ट्रीय छवि पर बुरा असर पड़ने लगे क्योंकि सत्ता में चाहे जो दल हो पर उसे भारत के प्रतिनिधि के तौर पर ही जाना और माना जाता है.      
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