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बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

प्रशासन और भ्रष्टाचार

                                                    पूरे देश में जहाँ भी प्राकृतिक सम्पदा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है हर उस स्थान पर तैनात भ्रष्ट अधिकारियों के चलते देश के बहुमूल्य संसाधनों का लगातार अवैध दोहन किया जाता रहता है. पहले यह काम बहुत छोटे स्तर पर ही किया जाता था जिसके चलते यह प्रशासन की नज़रों से बचा रहता था पर आज जिस तरह से विभिन्न तरह के राजनैतिक संरक्षण में जी रहे असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं उस परिस्थिति में इनको रोक पाना सामान्य अधिकारी के बस की बात भी नहीं है. यूपी के सबसे बड़े और हरे भरे जनपद लखीमपुर खीरी में आजकल ऐसा ही संघर्ष देखने को मिल रहा है जिसमें जिला प्रशासन एक तरफ है तो वन कर्मी दूसरी तरफ मोर्चा खोलकर बैठे हुए हैं. दुधवा नेशनल पार्क में अवैध रूप से लकड़ी के कटान और सीमा पर नेपाल से चल रही कीमती लकड़ी की तस्करी करने वाले लोगों के साथ जिस तरह से वर्तमान डीएम किंजल सिंह ने मोर्चा खोल रखा है वह इस धंधे से जुड़े हुए किसी भी व्यक्ति को रास नहीं आ रहा है और उनका दुर्भाग्य यह भी है कि किंजल सिंह दूसरी बार इस ज़िले की कमान संभाले हुए हैं और उनके पहले कार्यकाल में भी उन्होंने जनपद में चलने वाले इस तरह के अवैध धंधों पर नज़र रखी हुई थी.
                                               पूरे देश में इस तरह के अवैध काम होते ही रहते हैं जिसके चलते कहीं से भी इनको रोकने की सार्थक पहल दिखाई भी नहीं देती है पर जिस तरह से किंजल सिंह ने अपने काम को मज़बूती से करने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं उसके बाद यही लगता है कि मज़बूर राजनैतिक संरक्षण के चलते ही आज वे अपने काम को इतनी दृढ़ता से कर पाने में सक्षम हो पा रही हैं. यदि उनके पास सीधे सीएम अखिलेश तक की पहुँच न होती तो क्या उनके लिए यह काम कर पाना इतना आसान होता और क्या इन अवैध काम करने वालों ने अब तक उनका किसी और मामले में स्थानांतरण नहीं करवा दिया होता ? अखिलेश सरकार की इसममले में तारीफ की जा सकती है कि भले ही अपने संबंधों के चलते वे इस पद पर बनी हुई है पर उनके काम को पूरे क्षेत्र में सराहा भी जा रहा है क्योंकि जनपद की वन सम्पदा को लूटने का जो काम वन विभाग द्वारा अनवरत रूप से किया जा रहा था अब उस पर सख्ती से रोक लगी हुई है. क्या किसी और अधिकारी के पास ऐसा सम्बल हो सकता है कि वह अपने मन से देश हित में वह सब कर सके जिसकी शपथ वे लिया करते हैं ?
                                             आखिर क्या हो गया है हमारी व्यवस्था को कि उसे सही गलत दिखाई देना भी बंद हो रहा है ऐसी परिस्थिति में यदि कोई किंजल सिंह इनसे लड़ने का साहस दिखा पाती है तो उसे भी सरकार के मज़बूत समर्थन की आशा होती है. क्या अब फिर से उस पुराने ढर्रे पर लौटने का समय नहीं गया है जिसमें अधिकारियों को तीन साल तक एक स्थान पर टिके रहने दिया जाता था जिससे उन्हें काम करने की छूट तो मिलती ही थी साथ ही उनके पास अपने उस तैनाती स्थल के बारे में पूरी जानकारी भी होती थी. आज यूपी के सन्दर्भ में देखें तो शायद उँगलियों पर गिनने लायक ही अधिकारी बचे होंगें जिन्हें किसी जिले के बारे में पूरी भौगोलिक, आर्थिक परिवेश और सामाजिक व्यवस्था की जानकारी भी होगी ? जब अधिकारियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटने का काम हो रहा है तो उनसे बेहतर प्रशासन चला पाने की उम्मीद करना कहाँ तक उचित है ? दुःख की बात यह भी है कि इस मामले में कई बार आदेश जारी होने के बाद भी राज्य सरकारें अपने मनमानी करते हुए अधिकारियों को राज्य के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक फेंकने में ही लगे रहते हैं और इस प्रक्रिया पर कोई ऊँगली उठाने का साहस भी नहीं कर पाता है.    
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