मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

चिदंबरम और पिल्लै

                                                            पिछले दशक में देश की राजनीति को लम्बे समय तक प्रभावित करने वाले आतंकी घटनाओं से जुड़े हुए दो मामलों में जिस तरह से अब बयानबाज़ी की जा रही है उससे देश को क्या हसिल होने वाला है यह तो सम्बंधित पक्ष ही जाने पर इस पूरी प्रक्रिया में निश्चित तौर पर उन लोगों के लिए बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है जो निष्पक्ष होकर अपनी ड्यूटी निभा रहे होते हैं. कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम ने जिस तरह से कुछ दिनों में ही पहले अफज़ल गुरु फिर इशरत जहाँ से सम्बंधित बातें कहीं हैं और उसके बाद पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने भी इस बात को स्पष्ट रूप से कहा है कि इशरत जहाँ मामले में तत्कालीन गृह मंत्री भारत सरकार के निर्देश पर अदालत में दायर किये गए हलफनामे में फेर बदल की गयी थी जिसके बाद इस मामले में फिर से कई विवाद उठ खड़े हुए हैं. चिदंबरम देश के मशहूर वकीलों में से एक हैं तो उनके द्वारा जो कुछ भी कहा जा रहा है निश्चित तौर पर उसमें उनके कानूनी पचड़ों में फंसने की संभावनाएं नगण्य ही होंगीं. कानून के सम्मान करने की बात देश के नेता जितनी हलकी तरह से करते हैं उससे उनके दिलों में कानून के सम्मान के बारे में स्पष्ट रूप से पता चलता है.
                          अफज़ल गुरु को संसद मामले में लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद सजा सुनाई गयी थी जिसके अनुपालन में भी बहुत लम्बा समय लगा था पर इससे किसी भी व्यक्ति को देश की सर्वोच्च अदालत पर प्रश्नचिन्ह लगाने का अवसर कैसे माना जा सकता है अदालतें केवल सबूतों के आधार पर ही काम करती हैं और सबूत जुटाना भी सरकारी एजेंसियों का ही काम होता है इस स्थिति में आखिर सबूतों को किस निष्पक्षता और मज़बूती के साथ अदालत के सामने रखा जाये कि वह उनके आधार पर सजा भी सुनाने की स्थिति तक पहुँच सके ? इशरत जहाँ मामले में पिल्लई के बयान से ऐसा लगता है कि चिदंबरम ने उसमें बदलाव करवाये थे अब उन बदलावों के खिलाफ यदि अभियोजन पक्ष को कुछ सबूत मिल रहे हैं तो चिदंबरम के खिलाफ भी कानूनी कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए वर्ना सरकारें विभिन्न मुद्दों पर अपने हितों को साधने के लिए समय समय पर कोर्ट में दिए गए अपने पहले के हलफनामों को अक्सर ही बदलती रहती हैं. यदि इस मामले में जाँच एजेंसियां इशरत के उन संबंधों को सबूतों के आधार पर कोर्ट में साबित करने की स्थिति में हैं तो उन्हें एक बार फिर से अपनी तरफ से हलफनामा दाखिल करना चाहिए क्योंकि अभी भी इस मुद्दे पर निर्णय आना बाकी है कि इशरत के आतंकी कनेक्शन किस स्तर के थे ?
                            पिछले कुछ समय से अभियोजन को अतिउत्साह में मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर मुक़दमे दर्ज़ करवाते देखा जा रहा है और कई साल की कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट द्वारा बहुत सारे लोगों को निर्दोष बताकर जेलों से रिहा भी किया जा रहा है तो बात घूम फिर कर वहीं आ जाती है कि आखिर हमारी जाँच एजेंसियों में अभी तक वह क्षमता क्यों नहीं आ पायी है कि वे आरोपों के आधार पर मज़बूत सबूतों को सही तरीके से इकठ्ठा कर पाने में सक्षम हो जाएँ ? किसी भी मामले में कोई भी मुक़दमा केवल ठोस सबूतों के आधार पर ही दर्ज़ किया जाना चाहिए जिससे आवश्यकता पड़ने पर सर्वोच्च न्यायालय तक उसे साबित भी किया जा सके पर आज भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्थानीय पुलिस कितनी लापरवाही दिखाती है यह किसी से भी छिपा नहीं है. इस तरह के राजनैतिक वाद विवाद तो होते ही रहेंगें पर एनआईए के गठन और उसकी कार्यशैली को किस तरह से और भी मज़बूत किया जाये तथा राज्यों की पुलिस को सबूत इकठ्ठा करने के लिए और भी पेशेवर रूप से प्रशिक्षित किया जाए यह अब समय की आवश्यकता है. 
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