मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 11 मार्च 2016

रियल स्टेट बिल २०१६


                                                 केंद्र सरकार की तरफ से प्रस्तावित और संसद द्वारा पारित रियल स्टेट बिल २०१६ के बाद देश के बिल्डरों के लिए घर और व्यावसायिक संपत्तियां खरीदने/ बेचने में की जाने वाली लापरवाहियों और मनमानियों पर काफी हद तक अंकुश लगने की संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं. अभी तक इन बिल्डर्स पर नियंत्रण के लिए देश या किसी भी राज्य में मज़बूत व्यवस्था नहीं थी जिसके चलते एक घर या दुकान का सपना देखने वाले आम भारतीय नागरिक को कई बार बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था और स्पष्ट कानून न होने के कारण वे अदालतों से लगाकर सरकार की विभिन्न एजेंसियों तक चक्कर लगते हुए ही अपना समय बर्बाद किया करते थे. इस बिल को देश हित में मानते हुए जहाँ विपक्षी दलों ने भी समर्थन किया वहीं अभी भी इसमें कुछ कमियों की बात की जा रही है पर एक बार इसके पारित होने से जहाँ रियल स्टेट के क्षेत्र में एक रेग्युलेटर की उपस्थिति हो जाएगी वहीं आम लोगों से किये गए वायदों से पलटने पर इन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी आसानी से शुरू करने का रास्ता भी खुलता हुआ नज़र आने लगा है.
                                           इस बिल की अच्छी बातों के साथ एक बात जो इस पूरी कवायद को निरर्थक साबित कर सकती है वह यह है कि इस रेग्युलेटर को नियुक्त करने का अधिकार पूरी तरह से राज्य सरकारों को ही दे दिया गया है. हालाँकि सैद्धांतिक तौर पर इसमें कुछ बुराई भी नहीं लगती है पर मज़बूत बिल्डर लॉबी के सामने कई बार राज्य सरकारें कितनी मज़बूती से अपना काम पर पाएंगीं यह संदेह का विषय बना ही रहने वाला है. अच्छा होता कि इस रेग्युलेटर को नियुक्त करने में हाई कोर्ट, सरकार और विपक्ष द्वारा मिलकर प्रयास किये जाने को आवश्यक बना दिया जाता जिससे सरकार की मनमानी से किसी भी व्यक्ति को ये अधिकार नहीं मिल जाते. केंद्र सरकार ने किस कारण से यह प्रावधान इसमें नहीं डाला है यह तो समय ही बता पायेगा पर अब राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी बढ़ गयी है कि वे केंद्र की तरफ से मिलने वाले इस अधिकार का वे किस हद तक सदुपयोग कर पाते हैं ? आमतौर पर ऐसी बिना दबाव वाली किसी भी परिस्थिति से निपटने में अधिकांश दलों और नेताओं का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा करता है इसलिए यदि इस बिल् में उसे भी सम्मिलित कर लिया जाता तो अच्छा रहता.
                              अब देश में इस तरह के कामों में लगे हुए समूहों को अपनी विश्वसनीयता साबित करनी ही होगी क्योंकि बहुत सारे लोग लम्बे समय से इस व्यवसाय में लगे हुए हैं पर कभी न कभी उनकी विश्वसनीयता भी संकट में आई है तो अब उनको भी अपने काम में पारदर्शिता को स्थान देना होगा. किसी भी नए प्रोजेक्ट को शुरू करने के समय किये गए वायदों से पीछे हटना अब उतना आसान भी नहीं रहने वाला है और २/३ आवेदकों की लिखित सहमति के बाद ही प्लान में परिवर्तन करने के प्रावधान से अब बिल्डर्स के लिए मनमानी करना उतना आसान भी नहीं रहने वाला है. एक प्रोजेक्ट का पैसा दूसरे प्रोजेक्ट में लगाने से रोकने के कारण अब सभी घोषित प्रोजेक्ट्स को समय से पूरा करने का दबाव भी आने वाला है क्योंकि अब बिल्डर्स को भी उतना ब्याज देना होगा जितना अभी तक वे आवेदकों से विलम्ब होने पर वसूला करते थे. इस तरह से देखा जाये तो अब घर और दुकान की चाह रखने वालों के हितों को संरक्षित करने में यह बिल सफल होने ही वाला है पर कुछ बिन्दुओं को यदि और भी स्पष्ट और कडा किया जाता तो भविष्य में इसमें संभवतः किसी भी संशोधन ई आवश्यकता ही नहीं पड़ती.मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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