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शनिवार, 12 मार्च 2016

आधार का कानूनी आधार

                                                 लम्बे समय से विवादों के बीच झूलता रहने वाला आधार अब देश में आर्थिक मामलों में कानूनी रूप से भी मज़बूत होने की तरफ बढ़ गया है और इसके पारित हो जाने के बाद अब इसके माध्यम से सरकार अपनी विभिन्न सब्सिडी सम्बन्धी योजनाओं को तेज़ी से लागू करने की स्थिति में पहुँचने वाली है. देश में राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि हर दल और नेता केवल अपने दलों के लिए ही सोचने से आगे नहीं बढ़ पाते हैं जिसका सीधा असर सरकार के प्रदर्शन और विभिन्न योजनाओं पर स्पष्ट रूप से पड़ता हुआ दिखाई देता है. देश के नागरिकों के पास एक मज़बूत पहचान हो इससे कोई भी इंकार नहीं करता है और विभिन्न परियोजनाओं में नागरिकों की सही पहचान से आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए ही संप्रग सरकार ने इस आधार की संकल्पना की थी पर इसे भी जिस तरह से अधिकारों के हनन और निजता का उल्लंघन जैसे विषयों में उलझाया गया उससे देश उस सुविधा को शुरू करने में कुछ और पीछे हो गया जिसके चलते वह सरकारी धन के दुरूपयोग को आसानी से रोक सकता था.
                               देश में सरकारी योजनाओं में मची लूट को रोकने की मंशा से ही मनमोहन सरकार ने सबसे पहले एलपीजी की सब्सिडी को डीबीटी के माध्यम से देने की शुरुवात की थी पर जिस तरह से केवल राजनैतिक कारणों और कुछ शुरुवाती अड़चनों एक बाद सरकार को इसकी कमियां सुधारने के लिए इसे रोकने पर मजबूर होना पड़ा वह भी इसके समग्र सञ्चालन के लिए बाधा बन गया. अच्छा हुआ कि मोदी सरकार ने इस योजना की उपयोगिता को परख कर पूरे देश में इसे लागू करने के बारे में सोचना शुरू किया जिसके बाद एक बार फिर से उसी तरह के विरोधी स्वर भी सुनाई देने लगे जो कि राजनीति और समाज में एक वर्ग द्वारा केवल भ्रष्टाचार के समर्थन में ही उठाये जा रहे थे. इस तरह से धन के हस्तांतरण से जहाँ सरकार को अपनी सुविधा सही लोगों तक पहुँचाने में सफलता मिलने वाली है वहीं इस पूरी परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी पूरी तरह से लगाम लगाये जाने की तरफ बढ़ पाना भी आसान होने वाला है पर सरकार को इस मामले में संसद को विश्वास में लेना आवश्यक है.
                                 विभिन्न तरह की कानूनी अड़चनों से निपटने के लिए सरकार ने जिस तरह से इसे लोकसभा में वित्त विधेयक के रूप में पारित करवाया वह देश के लोकतान्त्रिक स्वरुप के अनुरूप नहीं कहा जा सकता है क्योंकि आधार को केवल धन हस्तांतरण से जुडी बातों से जोड़कर सरकार इसका पूरा लाभ भी नहीं उठा सकती है. आज इसे समाज के हर क्षेत्र में जोड़ने की तरफ ले जाने की आवश्यकता है क्योंकि देश में चुनावों से लगाकर हर मसले पर जितनी राजनीति और भ्रष्टाचार मचा हुआ है उसे निपटने के लिए आज लोगों के पास क्या विकल्प बचे हैं इस पर भी सोचने की आवश्यकता थी. वित्त विधेयक के रूपमें पास होने वाले इस बिल के लिए राज्यसभा की मंज़ूरी आवश्यक नहीं होगी पर क्या इससे आधार को मज़बूती मिल पायेगी यह सोचने का समय आ गया है. यदि सरकार और विपक्ष देश के नागरिकों को मज़बूत पहचान और सुविधाएँ देना चाहते हैं तो इस वित्त विधेयक से इतर उन्हें अाधार को पूर्ण रूप से नागरिक पहचान के पत्र के रूप में मान्यता देनी ही होगी जिससे आने वाले समय में देश के नागरिकों के पास एक सम्पूर्ण पहचान होने के साथ सरकार को भी इसके विभिन्न चरणों पर उपयोग की छूट मिल सके. वर्तमान वित्त विधेयक के रूप में पारित आधार जैसा महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी केवल सरकार द्वारा सब्सिडी बाँटने का एक कार्यक्रम ही बनकर रह जाने वाला है.   
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