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शनिवार, 30 जुलाई 2016

गाय, दलित और गौ-रक्षक

                                                                  देश में जिस तेज़ी से सुनियोजित तरीके से अलग अलग हिस्सों में गौ-हत्या को केंद्र में रखकर जिस तरह से राजनीति चमकाने और अपने को हिन्दू समाज का हितैषी और नेता साबित करने का एक नया चलन सामने आया है यदि उस पर समय रहते विराम नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में इससे बड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती है. गो मांस के संदेह के आधार पर आजकल जो नया काम कथित गौ रक्षकों द्वारा किया जा रहा है उसका समाज में किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे अवैध रूप से गौ मांस का व्यापार करने वाले चन्द लोगों के चलते इस काम से जुड़े हुए सभी लोग संदेह के घेरे में आ जाते हैं वहीं सामाजिक व्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ता है. केंद्र और राज्य सरकारों का यह दायित्व बनता है कि ऐसे किसी भी मामले में दोषियों को सख्त सजा दिए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए चाहे वे अवैध रूप से गौ मांस का व्यापार करने वाले लोग हों या फिर उन पर हमला करने और समाज को विभजित करने की अपनी नीति को लागू करने वाले क्योंकि इन दोनों से ही समाज का ही सबसे बड़ा नुकसान होता है.
                             लखनऊ के चानन गांव में जिस तरह से नगर निगम के आदेश पर मरी हुई दो गायों को निस्तारित करने के लिए निगम द्वारा नियुक्त किये गए ठेकेदार के दो कर्मचारियों पर गौ हत्या का आरोप लगाकर स्थानीय युवकों ने उत्पात मचाया और उनकी पिटाई की उससे यह सब एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा भी लगता है. आज स्थिति यह है कि स्थान न होने के बाद भी शहरों में लोग गायें पाल तो लेते हैं पर उनकी मृत्यु हो जाने पर उनके शवों के निस्तारण के बारे में नगर निगम से ही संपर्क करते हैं और कई बार लावारिस अवस्था में घूमती हुई गायों की मृत्यु होने पर भी नगर निगम पर ही उनके शवों को हटाने की ज़िम्मेदारी होती है. यह सफाई से जुडी एक व्यवस्था है जिसमें अनावश्यक हस्तक्षेप से क्या हो सकता है यह गुजरात में उपायुक्त कार्यालय पर दलितों ने मरे हुए पशुओं को फ़ेंक कर दिखा दिया है पर क्या सभ्य और संस्कारी समाज के रूप में हमारा केवल यही दायित्व बनता है कि बिना कुछ सोचे समझे किसी भी व्यक्ति पर इस तरह से सीधे हमला कर दें भले ही उस व्यक्ति को कोई गलती भी नहीं हो ? आज के सभ्य और शिक्षित समाज से अधिक नहीं तो इतनी आशा तो की ही जा सकती है कि वह आगे बढ़कर इस तरह के अनर्गल आरोपों और बवालों पर खुद ही रोक लगाने का काम करने का कोई ठोस प्रयास करता हुआ दिखाई देगा.
                           इस तरह से स्वच्छता से जुड़े मामलों और अवैध रूप से गौ हत्या में लगे हुए लोगों में कोई अन्तर करने के लिए खुद प्रशासन और समाज को पहल करनी होगी जिससे अनावश्यक रूप से काम काज में बाधा न पड़े और जो लोग गलत तरीके से इस काम को करने में लगे हुए हैं उन पर भी अंकुश लगाया जा सके. नगर निगमों, पालिकाओं और पंचायतों द्वारा इस काम के लिए अधिकृत किये गए लोगों के फोटोयुक्त पहचान पत्र भी जारी करने चाहिए जिससे संदेह के आधार पर घेरे जाने की स्थिति में वे खुद अपनी पहचान और गायों को ले जाने के उद्देश्य को साबित कर सके. साथ ही गौ रक्षक दलों का उद्देश्य यदि वास्तव में गायों की रक्षा करना है तो उन्हें पहले गौ पालकों को जागरूक करना चाहिए और उसके बाद इस तरह से सीधे लोगों को रोकने के बारे में सोचना चाहिए. किसी भी परिस्थिति में किसी को भी अराजकता से बचना ही चाहिए क्योंकि उससे समाज एमन गहरे स्तर तकविभाजन हो जाता है और निर्दोषों को पीटने या मार ही डालने से किस तरह से गौ रक्षा संभव है यह भी सोचने का विषय है. संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति, समूह या संदिग्ध वाहन को रोक कर उससे आवश्यक जानकारी हासिल की जानी चाहिए और संदेह होने पर ही पुलिस को सूचना देनी चाहिए जिससे दोषियों पर कानूनी कार्यवाही भी की जा सके. पुलिस और प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की किसी भी सूचना पर उसकी तरफ से प्राथमिकता के आधार पर कार्यवाही की जाये जिससे समाज में अनावश्यक विभाजन न बढे.  
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