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शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

यूपी-अवैध खनन की सीबीआई जाँच

                                                                                     लंबे समय से गैर कानूनी कार्यों को नेताओं और अधिकारयों की मदद से लगातार संगठित रूप से चलाने में माहिर यूपी के खनन माफियाओं के लिए इलाहबाद हाई कोर्ट की तरफ से एक बड़ा झटका लगा है जिसमें कोर्ट ने यूपी के मुख्य सचिव के हलफनामें से पूरी तरह असंतुष्ट होते हुए इससे सम्बंधित  सारे मामलों की जाँच सीबीआई को सौंप दी है. प्रदेश भर में चल रहे इस कार्य को रोकने के लिए दायर की गयी विभिन्न जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते समय कोर्ट ने सरकार से यह पूछा था कि प्रदेश में अवैध खनन की क्या स्थिति है इस पर जो जवाब आया उससे कोई भी सहमत नहीं दिखा क्योंकि सरकार की नाक के नीचे लखनऊ में भी अवैध खनन होता है पर सरकार ने पूरे प्रदेश के बारे में ही एक रिपोर्ट लगा दी कि अधिकारियों और गठित की गयी टीमों की रिपोर्ट के अनुसार कहीं भी अवैध खनन की कोई सूचना नहीं है. निश्चित तौर पर यह ऐसा जवाब था जिस पर हाई कोर्ट को गुस्सा आना ही था और उसकी प्रतिक्रिया इतनी अधिक होगी कि मामला सीबीआई को सौंप दिया जायेगा इसकी कल्पना तो सरकार ने भी नहीं की थी.
                                   सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में जिस तरह से नदियों का संजाल बिछा हुआ है उसके चलते ही लगभग हर दूसरे जिले में अवैध खनन की भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं और जिन ज़िलों में नदियां नहीं बहती हैं वहां विकास कार्यों के लिए मानकों को ताक पर रखकर मिटटी का भरपूर खनन किया जाता है और कई बार तो गरीब किसानों के खेतों की उपजाऊ मिट्टी भी खनन माफियाओं द्वारा खोद ली जाती है तथा किसान कुछ भी नहीं कर पाता है ऐसी परिस्थिति में सरकार और स्थानीय प्रशासन से किसान को कोई मदद नहीं मिल पाती है और वह दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाता है. इस तरह के परिवेश में यदि हाई कोर्ट की तरफ से ऐसा कहा जा रहा है तो निश्चित तौर पर ही यह प्रदेश के लिए अच्छा ही साबित होने वाला है क्योंकि अब इस अवैध खनन पर काफी हद तक लगाम लगाए जाने की दिशा में सही प्रयास उठाये भी जा सकते हैं. हर महत्वपुर्ण मामले में यदि कोर्ट का हस्तक्षेप इतना आवश्यक हो गया है कि आज विधान सभाओं और संसद की प्रासंगिकता पर भी सवालिया निशान लगता दिखाई देता है विधायिका की तरफ से पूरी शक्तियां मिलने के बाद भी इस तरह से अनिर्णय की स्थिति किसी भी तरह से अच्छी नहीं कही जा सकती है.
                                     खनन पूरे देश में ही एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है इससे निपटने के लिए नए कानूनों की नहीं बल्कि जो कानून मौजूद हैं उनको सही तरह से लागू करने की आवश्यकता है क्योंकि राजनैतिक इच्छाशक्ति न होने के कारण ही आज खनन माफियाओं के हौसले इतने बढे हुए हैं. इस सबके जड़ में असली समस्या निचले स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं की है क्योंकि उनके आर्थिक हितों को साधने के लिए विभिन्न दलों के पास कोई विकल्प नहीं होता है इसलिए ही सत्ताधारी पार्टियों द्वारा अपने विधायकों-सांसदों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को इस अवैध खनन के द्वारा ही साधने का काम किया जाता है. लगभग हर प्रदेश और हर दल की सरकार को यह सब पता है पर कोई भी मुख्यमंत्री अपने स्तर से इसे रोकने का कोई प्रयास करता भी नहीं दिखाई देता है जिससे इन अवैध खनन माफियाओं को अपना काम करने की पूरी छूट भी मिल जाती है. अब समय आ गया है जब कोर्ट के प्रयास से ही सही पर इन सभी पर लगाम कसी जा सकती है और आर्थिक अपराधों के साथ पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने में भी सफलता मिल सकती है पर यह सब केवल कोर्ट पर ही छोड़ने के बजाय यदि राजनेता ही अपने स्तर से इच्छाशक्ति दिखाएँ तो सारा कुछ बहुत आसान हो सकता है तथा कोर्ट का बहुमूल्य समय भी बच सकता है.  
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