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गुरुवार, 8 सितंबर 2016

जन विरोधी फ्लेक्सी किराया

                                                        अपने काम में तेज़ी लाने के उद्देश्य से संसाधनों को जुटाने के लिए हर तरह की जुगत करने में लगे हुए रेल मंत्री की तरफ से फ्लेक्सी किराये को जिस तरह ०९ सितंबर से लागू किया जा रहा है वह आने वाले समय में रेलवे के लिए नयी तरह की समस्याएं सामने लाने वाला है. अपनी कुछ जन विरोधी नीतियों के चलते रेलवे ने जिस तरह से त्योहारों पर चलायी जाने वाली विशेष गाड़ियों को सुविधा स्पेशल के नाम से चलाने और अपने घरों को लौट रहे लोगों से अधिक किराया वसूलने की नीति बनायीं थी वह उलटी पड़ती हुई दिखाई दे रही है ऐसी परिस्थिति में जब लोगों को सुविधा युक्त समय पर चलने वाली ट्रेनों की आवश्यकता है तो उसके स्थान पर सरकार केवल अधिक किराया वसूलने की नीति पर ही अमल करना चाहती है। यह स्थिति तो तब है जब डीज़ल की कीमत पिछले सालों के मुक़ाबले निचले स्तर पर हैं और परिचालन में रेलवे को उतना खर्च नहीं करना पड़ रहा है जितना अभी तक खर्च हुआ करता था फिर भी राजधानी, दुरंतो शताब्दी के रोज़ के किरायों में इस तरह की जुगत लगाने से यात्रियों का कौन सा हित जुड़ा हुआ है यह बताने में रेलवे पूरी तरफ से चुप्पी लगाए बैठा है.

                           पिछली मनमोहन सरकार ने रेलवे के कम किरायों को चरणबद्ध तरीके से तर्कसंगत बनाये जाने के लिए रेल किराया प्राधिकरण बनाये जाने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाये थे पर दो साल से अधिक बीत जाने पर भी मोदी सरकार उस प्राधिकरण का गठन नहीं करना चाहती है जिससे सदैव के लिए ही किराये पर होने वाली राजनीति स्वतः ही बंद हो जाएगी तथा रेलवे को भी इसके लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा पर अपने कार्यों में मनमानी करने में माहिर मोदी सरकार के मंत्रालय भी उनके रवैये पर ही चल रहे हैं जिससे किराया प्राधिकरण तो नहीं बनाया जा रहा पर लोगों की जेबें काटने का जुगाड़ अवश्य ही किया जा रहा है. अच्छा होता कि सुविधा स्पेशल ट्रेनों की गिरती हुई कमाई को देखते हुए इस तरह से फ्लेक्सी किराये पर पुनर्विचार कर इसका कोई और हल निकालने की तरफ सोचा जाता पर इन विशेष गाड़ियों में सफर करने वालों के लिए बिना विचार किये ही उनके लिए यात्रा को जिस तरह से पूरे वर्ष मंहगा करने की जुगत की जा रही है वह रेलवे के लिए कितनी लाभकारी साबित होगी यह तो समय ही बताएगा।
                           रेलवे जिस तरह से यह मानकर बैठा हुआ है कि देश का हर नागरिक कितनी भी मंहगी रेलसेवा को झेलेगा वह उसकी गलतफहमी ही है क्योंकि इस तरह से उन लोगों के पास यात्रा करने के दूसरे विकल्प भी खुल जायेगें जिससे सड़कों पर दबाव बढ़ेगा और प्रदूषण में भी वृद्धि दिखाई देगी जिससे देश के पर्यावरण को नुकसान होने के साथ वाहनों की कतारें और भी लंबी होने की पूरी संभावनाएं भी हैं. निश्चित तौर पर देश में सड़कें पिछले तीन दशकों में तेज़ी से सुधरी हैं तो हज़ार किमी तक आने जाने वाले पूल करके एसयूवी के माध्यम से अपनी यात्रा करने के बारे में सोचना शुरू क्र सकते हैं जिससे रेलवे की सामान्य आमदनी पर भी बुरा असर पड़ना अवश्यम्भावी है. क्या सरकार सिर्फ अपने तरीकों से देश की आवश्यकताओं को समझे बिना ही इस तरह की नीतियां बनाकर यात्रियों का भला कर सकती हैं अब इस बात पर भी विचार किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि अभी जो फ्लेक्सी किराया लागू किया जा रहा है उसके आने वाले दिनों में आम मेल, एक्सप्रेस ट्रेनों में भी लागू किये जाने की संभावनाएं बनती दिखाई दे रही हैं. जब राजधानी और शताब्दी के किराये में इतनी बढ़ोत्तरी कर दी जाएगी तो आने वाली तेजस श्रेणी की गाड़ियों में इससे भी अधिक किराया वसूलने का रास्ता साफ़ हो जायेगा। बेहतर सेवाओं के नाम पर इस तरह की लूट का किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं किया जा सकता है क्योंकि रेलवे के खर्चों के चलाने के लिए उन आम दाताओं के पैसे भी लगते हैं जो कभी भी रेल की यात्रा ही नहीं करते हैं.  

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