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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

घाटी में चौपट शिक्षा

                                           जुलाई माह से कश्मीर घाटी में शुरू हुए बंद और हिंसक प्रदर्शनों के दौर के बीच जहाँ व्यापार पर बहुत बुरा असर पड़ा है वहीं घाटी में बच्चों की शिक्षा पूरी तरह से ठप हो गयी है. अलगाववादियों की तरफ से जिस तरह से स्कूलों को भी निशाने पर लिया जा रहा है वह अपने आप में बहुत ही चिंताजनक बात है क्योंकि जब ये बच्चे पढ़ने नहीं जा पायेंगें तो उनके आस पास चल रही हिंसक गतिविधों से लगाकर विरोध प्रदर्शनों तक का उन पर बुरा प्रभाव पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है. कई बार ऐसा देखने में भी आया है कि छोटे बच्चे भी अलगाववादियों और सुरक्षा बलों के संघर्षों में फंसकर गंभीर रूप से घायल हो गए हैं या फिर उनकी मृत्यु तक हो गयी है. इस परिस्थिति से निपटने के लिए आखिर किस स्तर पर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है आज यह समझने की ज़रुरत तो है ही साथ ही आने वाले समय में इस तरह के माहौल में बच्चों को किस तरह से पूरी तरह से इससे बाहर रखा जाये एक नीति के तौर पर उस पर भी विचार किये जाने की तरफ सोचा जाना आवश्यक होता जा रहा है क्योंकि केवल घाटी को छोड़कर जम्मू, लद्दाख और सीमावर्ती जिलों में स्थिति पूरी तरह से सामान्य ही है और वहां पर शिक्षा काम सही तरह से चल भी रहा है तो आने वाले समय में घाटी के बच्चों का पूरा एक साल ख़राब होने की स्थिति भी बनती हुई दिखाई दे रही है.
                                           जिस तरह से केवल कश्मीर घाटी और विशेषकर पुराने श्रीनगर में अलगाववादियों को समर्थन मिलता है आज उस परिस्थिति को बदलने के लिए काम करने की ज़रुरत है क्योंकि कोई भी सरकार इस तरह की भावनाओं को एकदम से निकाल कर बाहर नहीं कर सकती है तो उसे कम से कम उन बातों पर सोचना ही होगा जिसमें उसकी तरफ से शिक्षा को सही तरह से चलाते रहा जाये. अलगाववादियों के प्रभाव वाले विशेष क्षेत्रों में राहत पुनर्वास और विश्वास बहाली के मज़बूत कदम उठाने के बारे में सोचना चाहिए जिससे घाटी के इन लोगों में भी कानून के अनुपालन और अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचने का समय मिल सके. आतंकियों की यही चाल है कि पहले व्यवसाय को चौपट किया जाये और भले ही सीमित संख्या में ही सही पर बच्चों को किसी भी तरह से स्कूल तक जाने से भी रोक लगायी जाये जिससे वे अलगाववादियों और आतंकियों की अगली पीढ़ी के रूप में उपलब्ध हो सकें. पुराने शहर में सुरक्षा के स्तर को और भी अधिक मज़बूत करने और जवानों के स्थान पर उपग्रह आधारित निगरानी पर भी तेज़ी लाने का काम करना चाहिए जिससे सुरक्षा बलों की तैनाती किये बिना ही इन खतरे वाली जगहों पर नज़र रखी जा सके. इसरो के प्रयासों से देश के पास ऐसी व्यवस्था भी उपलब्ध है जिसमें इस तरह की निगरानी को और भी आसानी से किया जा सकता है तो इस विकल्प पर विचार करने की आवश्यकता भी है.
                                       पुलिस प्रशासन और सेना के संयुक्त प्रयासों से इस तरह की गतिविधियों पर अंकुश भी लगाया जा सकता है और आतंकियों तथा उनके समर्थकों पर बहुत ही सटीक कार्यवाही करके उन्हें निष्क्रिय भी किया जा सकता है. शिक्षा भविष्य का द्वार खोलती है इसलिए अब समय आ गया है कि घाटी में स्थानीय लोगों की सहभागिता से स्कूलों को लगातार खोलने का दबाव आतंकियों पर बनाया जा सके और यदि उनकी तरफ से शिक्षा में व्यवधान डाला जाए तो स्थानीय अधिकारियों से पहले नागरिकों को ही इसके लिए आगे आना सीखना होगा क्योंकि जन-बल के आगे कोई भी शक्ति इस तरह से नहीं टिक सकती है. यह घाटी के लोगों को ही तय करना होगा कि उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा चाहिए या अलगाववादियों का साथ देना है क्योंकि उनके बाद यदि उनकी अगली पीढ़ी भी इसी तरह से असमंजस में उलझी रहती है तो आने वाले समय में घाटी में तरक्की को कैसा लाया जा सकता है ? घाटी के लोगों को यह भी समझना होगा कि जिहाद के नाम पर जितने भी देशों में जेहादी लगे हुए हैं उनमें आम नागरिकों को ही सबसे अधिक नुकसान हो रहा है और जब वे जेहादियों के साथ रहने का विकल्प अपनाएंगें तो जेहादी मानसिकता उन पर हावी भी हो जाएगी तथा बच्चों की पीढ़ी पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी जो कि आतंकियों की मंशा को ही पूरा करने वाली होगी.                                       
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