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शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

संवेदनशील समाचार और मीडिया

                                         पठानकोट हमलों के प्रसारण को लेकर सरकार द्वारा बनाई गयी समिति ने एनडीटीवी के खिलाफ कानून के उल्लंघन की बात को माना है और सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा जिस तरह से चैनल को २४ घंटे बंद करने के लिए कहा गया है वह अपने आप में अभूतपूर्व घटना है. २००८ के मुम्बई हमलों के समय सुरक्षा बलों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण से आतंकियों को खुद को अधिक समय तक बचाने में काफी मदद मिली थी जिसके बाद सरकार की तरफ से कानून में संशोधन किया गया था कि इस तरह की संवेदनशील जानकारी का प्रसारण करना कानून का उल्लंघन माना जायेगा और उसी कड़ी में बनाये गए कानून के अंतर्गत अब एनडीटीवी के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही की गयी है. सरकार को इस बात का पूरा अधिकार है कि वह सभी चैनेल्स पर कड़ी नज़र रखते हुए उनके किसी भी मुद्दे पर कानून के विरुद्ध जाने पर किये गए प्रसारण को देखते हुए उन पर अस्थायी या लंबी अवधि के लिए रोक लगा सकती है पर देश में जिस तरह से मीडिया को हर मुद्दे पर आज़ादी मिली हुई है तो क्या एक विशेष मीडिया चैनल पर इस तरह के प्रतिबन्ध लगाने को सही कहा जा सकता है ?
                     समिति के सामने एनडीटीवी ने स्पष्ट रूप से कहा भी था कि उसकी तरफ से किसी भी संवेदनशील सूचना का प्रसारण नहीं किया गया था पर उसके बाद भी जिस तरह से सरकार की तरफ से कार्यवाही की गयी है वह कहीं मीडिया को दबाने की सरकारी कोशिश ही तो नहीं है ? सरकार के फैसले का एनडीटीवी को सम्मान करना होगा क्योंकि उसे चैनल चलाने की अनुमति सरकार से ही मिली हुई है ऐसी परिस्थिति में अब सरकार को जाँच समिति की पूरी रिपोर्ट प्रकाशित करवानी चाहिए जिससे देश को यह पता चल सके कि वह कौन सी संवेदनशील जानकरी थी जिसे केवल इस चैनल द्वारा ही प्रसारित किया गया था ? क्या उस तरह की रिपोर्टिंग किसी और चैनल की तरफ से बिलकुल भी नहीं की गयी थी और यदि किसी और ने भी कुछ प्रसारित किया था तो उनके खिलाफ जाँच की क्या स्थिति है ? आज मीडिया को सरकार द्वारा जिस तरह से दबाने और अपने पक्ष में करने का प्रयास किया जा रहा है उस परिस्थिति में आपातकाल में सरकारी दमन को झेलने और कोसने वाले आज सत्ताधारी नेताओं की मंशा पर संदेह होने लगता है कि आखिर वे उन गलतियों को ही क्यों दोहराना चाहते हैं ?
                       इस तरह की कार्यवाही में अधिकांश लोगों का यही मानना है कि चूंकि एनडीटीवी आज भी सरकार के पक्ष में अन्य मीडिया समूहों की तरह रिपोर्टिंग नहीं करता है और उसने काफी मामलों के दोनों पक्षों को दिखाने में भी काफी महारत हासिल की हुई है तो सरकार की कार्यवाही कहीं न कहीं से एनडीटीवी के लिए नए दर्शकों का वर्ग तैयार करने काम ही करने वाली है. चैनल को एक दिन प्रसारण बंद करने से जो हानि होगी उससे अधिक वह आने वाले समय में इस प्रतिबन्ध से लाभ भी उठा लेगा इस तरह से यदि देखा जाये तो इस तरह की कार्यवाही से सरकार पर ही प्रश्नचिन्ह लगने वाला है कि उसने चैनल पर सीधे एक दिन का प्रतिबन्ध लगाने के स्थान पर उसे चेतावनी जारी करके क्यों नहीं छोड़ दिया ? यदि एनडीटीवी की तरफ से कानून का उल्लंघन हुआ है तो सरकार को उस जानकारी को भी जनता के लिए जारी किया जाना चाहिए जिसके चलते यह एक दिन का प्रतिबन्ध लगाया गया है जिससे सभी देश वासियों को यह स्पष्ट हो सके कि इस तरह का उल्लंघन करने पर किसी के विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है. फिलहाल लोकप्रियता की लहर पर सवार होकर आयी सरकार के लिए इस तरह के प्रतिबंधों से विरोधियों के मुंह बंद करने का सन्देश देश दुनिया में अच्छा नहीं जाने वाला है.               
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