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शुक्रवार, 9 जून 2017

समग्र कृषि नीति की आवश्यकता

                                                                 म० प्र० और महाराष्ट्र में किसानों की तरफ से शुरू किया गया असहयोग आंदोलन मंदसौर में हिंसक होकर ५ परिवारों के लिए अँधेरे लेकर ही आया और अब इस पर सीधे आरोप प्रत्यारोपों के साथ, मीडिया और सोशल मीडिया पर सरकार समर्थक और विरोधी एक दूसरे को गलत साबित करने में लगे हुए हैं. जहाँ तक मंदसौर की बात है तो यह इलाका हर प्रकार से संपन्न और शांत ही माना जाता है और यहाँ से कभी भी किसी भी प्रकार के हिंसक आंदोलनों की लगातार होने वाली घटनाएं भी सामने नहीं आयी हैं तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि किसान इतने उग्र हो गए और मामला पुलिस की तरफ से फायरिंग तक जा पहुंचा. सरकार का यह कहना भी उचित है कि शांति व्यवस्था और हाईवे पर यातायात सुचारु बनाये रखने के लिए ऐसा करना आवश्यक था पर उसकी तरफ से मामले को सही तरह से सम्भालने में किसी न किसी स्तर पर कोई चूक तो अवश्य ही हुई है जिसे उसे आज नहीं तो कल स्वीकारना ही होगा. सरकार को उस परिस्थितियों पर भी विचार करना होगा जिनके चलते इन दोनों राज्यों के किसानों ने एक तरह से खाद्य आपूर्ति रोकने की तरफ इतना बड़ा कदम बढ़ा दिया ? इस मामले में महाराष्ट्र सरकार ने अपनी तरफ से पहल करते हुए किसानों के सगठनों से बात की और कुछ अश्वासनों के साथ ठोस कार्यवाही करने की बात की जिसके बाद वहां का आंदोलन कुछ ठंडा पड़ा पर अभी भी वहां भी सभी किसान इस समाधान से खुश नहीं है जिसके लिए फडणवीस सरकार को और अधिक संवेदनशील होकर काम करना होगा. इस मुद्दे को शिवराज सरकार ने या तो हलके में लिया या फिर उन्हें वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा ही नहीं था कि मामला कहाँ तक पहुँच गया है जिस कारण उससे इतनी बड़ी चूक हुई.
                                       निश्चित तौर पर ऐसे मामलों में विपक्ष के पास करने के लिए कुछ खास नहीं होता है अलबत्ता वह पीड़ितों तक सरकार से पहले पहुंचकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिशें अवश्य ही करता है. देश में केंद और राज्यों की सत्ता दलीय व्यवस्था में बदलती रहती है पर कहीं से भी उसमें वो गुणात्मक परिवर्तन दिखाई नहीं देता है जो देश की आवश्यकताओं को बिना किसी राजनीति के समझने और उसे पूरा करने के लिए आगे बढ़ने की कोशिश में लगा हुआ दिखाई दे. विभिन्न कारणों से देश के हर राज्य का किसान बदहाल है पर उसके लिए स्थायी समाधान खोजने के स्थान पर तात्कालिक उपायों से समस्या को अस्थायी रूप से टालने पर ही सभी नेताओं का ध्यान रहा करता है जिससे कुछ समय बाद समस्या और भी विकराल स्वरुप में सामने आती है. आज कृषि को देश की आवश्यकताओं के अनुरूप करने और किसानों को पूरी तरह से जागरूक करने की आवश्यकता है क्योंकि प्राचीन काल से चली आ रही मिश्रित और परंपरागत खेती को छोड़कर किसान आज नकदी वाली फसलों पर अधिक ध्यान देने लगा है जिससे मानसून पर आधारित क्षेत्र के किसानों के लिए लगातार समस्या ही बनी रहती है क्योंकि कम पैदावर होने उसके पास लागत निकालना एक बड़ी समस्या होती है और मौसम के साथ देने पर अधिक उत्पादन भी कम मूल्य के कारण उसको लागत नहीं दे पाता है. क्या इस समस्या से निपटने के लिए अब एक बार देश के किसानों को मिश्रित खेती के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता नहीं है जिससे वे स्थानीय खपत के अनुरूप फसलों का उत्पादन कर सकें और अपने साथ देश के विकास में भी उचित योगदान दे सकें.
                                     आज भी हमारे देश में किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि उन्हें पारिवारिक रूप से विरासत में मिली खेती को उन्नत करने और आवश्यकता अनुरूप मिश्रित खेती करने के लाभ के बारे में जागरूक नहीं किया जाता है जिससे वह आसानी से एक नकदी फसल पर निर्भर होकर काम करता है. किसी भी तरह की विपरीत परिस्थिति में उसके पास अपने क़र्ज़ चुकाने से लगाकर कृषि लागत पाने तक की समस्या एकदम से सामने आ जाती है जिसका उसे कोई समाधान दिखाई नहीं देता है. इसके लिए तात्कालिक उपायों पर विचार करने के स्थान पर देश के कुछ राज्यों के अधिक समस्याग्रस्त जिलों में किसानों के लिए इस तरह की निगरानी वाली खेती करने का पायलट प्रोजेक्ट चला कर देखना चाहिए और उसके परिणामों पर विचार कर उसे देश के किसानों के सामने विकल्प के रूप में रखना और अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इस तरह से संभव है कि किसानों की समस्या का कोई स्थायी समाधान सामने आये. देश की सरकार अर्थ व्यवस्था को सुधारने की कितनी भी कोशिश क्यों न कर ले पर मानसून में कमी की कोई भी खबर सत्ता प्रतिष्ठान के चेहरे की रंगत को उड़ाने के लिए काफी होती है. सामान्य मानसून जिस तरह से पूरे देश के लिए समृद्धि लेकर आता है और किसानों को भी मानसून के साथ झूमने और अपनी प्रगति के बारे में जागरूक करने पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समग्र विचार करने की आवश्यकता है.
                                        आज देश का लगभग ९५% हिस्सा आकाशवाणी के प्रसारण क्षेत्र में आता है तो इसके सभी चॅनेल्स के माध्यम से नियमित तौर पर सुबह और शाम स्थनीय कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों की तरफ से मौसम पर विचार करने के बाद फसलों के अनुरूप सलाह दी जानी चाहिए जिससे किसानों को सही सलाह रोज़ ही मिल सके. किसान चॅनेल अपने अनुसार सही काम कर रहा है. खेत में पहुंचे हुए किसान के लिए रेडियो आसान होता है इसलिए संचार के इन माध्यमों का सदुपयोग करने किसानों को नियमित तौर पर जागरूक करने के बारे में सोचना चाहिए एक पूरा चॅनेल उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना समय पर सुबह शाम दी जाने वाली सलाह क्योंकि किसान चॅनेल दूसरे तरह से सहायता कर पा रहा है पर इसे अभी भी और अधिक दूर तक पहुँचाने की आवश्यकता है जिससे किसानों को खेती के इस अनदेखे दबाव से बचाया जा सके जो न चाहते हुए भी उन पर लगातार बना रहता है.      
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