मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

सोशल मीडिया और समाज


                                              देश में जिस तरह से बढ़ते हुए इंटरनेट के प्रसार से आम लोगों तक सूचनाएं पहुंचनी शुरू हो चुकी हैं वहीं इस तीव्र माध्यम का दुरूपयोग कर समाज में वैमनस्यता फ़ैलाने के लिए भी किया जा रहा है. धार्मिक, सामाजिक, भाषाई और राजनैतिक आधार पर जिस तरह से देश के किसी न किसी हिस्से में बिना सोचे समझे तनाव बढ़ाने वाले लोग सक्रिय हो चुके हैं उनसे निपटने का कोई कारगर तरीका सरकार, पुलिस या प्रशासन के पास नहीं है. ऐसी किसी भी परिस्थिति में सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी आम नागरिकों की ही हो जाती है क्योंकि उनकी तरफ से किये जाने वाले किसी भी अनुचित व्यवहार से पूरे समाज या क्षेत्र में तनाव व्याप्त हो जाता है. इस तरह की परिस्थिति से निपटने के लिए एक स्पष्ट नीति की आवश्यकता है क्योंकि देश में आज कहीं डायन, कहीं गाय के हत्यारे और कहीं पैगम्बर और देवी देवताओं के लिए अपमानजनक पोस्ट लिखने से लगातार तनाव फैलने की ख़बरें आती ही रहती हैं. चुनावी दृष्टि से संवेदनशील राज्यों में यह बहुत अधिक दिखाई देता है क्योंकि हर राजनैतिक दल अपने वोटों के ध्रुवीकरण के लिए इस तरह की गतिविधियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल रहा करता है.
                                                      ऐसी किसी भी परिस्थिति को रोकने के लिए सबसे पहले सभी धर्मों के धर्म गुरुओं को सामने आना होगा क्योंकि ऐसी परिस्थिति से राजनैतिक लाभ मिलने के चलते कोई भी राजनैतिक दल महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाना चाहेगा. सोशल मीडिया पर किसी भी अनजान व्यक्ति के कुछ भी लिख देने से क्या किसी धर्म का अहित हो सकता है यह सोचने समझने की बात है और उस व्यक्ति की कैसी समझ है क्या इस पर भी विचार नहीं किया जाना चाहिए ? भारतीय जिस तरह से अपने को प्रगतिशील और आधुनिक दिखाने का ढोंग करते हैं वे पल भर में ही कितने असभ्य हो जाते हैं इसका उदाहरण आज़ादी के बाद से आज तक होने वाले हर दंगे में दिखाई देता रहा है. जिन लोगों के साथ आम लोग बचपन से ही रहते आ रहे होते हैं धर्म की आभासी दीवार और उस पर आसन्न संकटों को हम कितनी आसानी से सही मान लेते हैं और जो धर्म हमारे जीवन का अंग होना चाहिए वह प्रदर्शन का विषय बन जाता है और हम एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. जिन लोगों की तरफ से इस तरह के पोस्ट डाले जाते हैं उनके खिलाफ शिकायत मिलने पर कानून को सख्ती से काम करना चाहिए और आने वाले समय में उस जैसी मानसिकता को बढ़ने से रोकने के लिए भी ठोस कदम उठाने चाहिए.
                                                    सोशल मीडिया का इस तरह से दुरूपयोग करना किसी भी तरह से समाज के हित में नहीं कहा जा सकता है क्योंकि कुछ लोगों की दूषित मानसिकता के कारण पूरे इलाके में तनाव फैलता है जिसमें कई बार निर्दोषों की जान भी चली जाती हैं और उस मसले से किसी भी धर्म का कुछ नहीं बिगड़ता है. जो ज़िम्मेमदार लोग सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं उन्हें भी पूरी तरह से अपने उन मित्रों पर नज़र रखनी चाहिए जिनकी तरफ के कई बार जाने अनजाने में ही सामाजिक, धार्मिक रूप से आपत्तिजनक पोस्ट्स को आगे बढ़ाया जाता है. इस बात की सफलता असफलता को इस तरह से भी देखना चाहिए कि हम इस तरह की पोस्ट्स को रोकने के लिए कितने ज़िम्मेदारी से आगे आते हैं क्योंकि अधिकांश लोगों को यह भी नहीं पता होता है कि वे किसी भी आपत्तिजनक पोस्ट को आगे भेजकर कानून का उल्लंघन कर रहे होते हैं और इस स्थिति में उनके लिए बहुत समस्याएं भी खडी हो सकती हैं. सोशल मीडिया के लिए भी क्या अब पुलिस की सोशल मीडिया लैब्स के अतिरिक्त समाज में भी शांति समितियों की आवश्यकता नहीं है जो इस तरह के किसी भी विवाद के सामने आने पर उनको सामाजिक स्तर पर सुलझाने का प्रयास करें और समाज में अलगाव पैदा करने की कोशिशें करने वाले सभी तत्वों की कोशिशों को पूरी तरह से नाकाम करने का काम कर सकें. देश हमारा है समाज हमारा है तो इसकी संरचना की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी भी हम सभी को मिलकर ही उठानी होगी दूसरों को कोसने से कभी भी समाज का हित नहीं हो सकता है.     
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