चुनावी वर्ष होने के कारण इस बार लम्बे समय बाद पूर्ण बहुमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे पीएम मोदी के सामने सबसे गंभीर संकट यह है कि अपनी घोषित लोकप्रियता को वे किस हद तक आगामी चुनावों में भुनाने में सफल हो पाएंगे? जिस तरह से राफेल मामले को लेकर वे खुद निशाने पर हैं और उन्होंने जो भी सोचकर शीर्ष स्तर पर निर्णय लिया हो पर भारत के हिसाब से उसमें कई कमियां दिखाई दे रही हैं जिनको लेकर खुद वे और उनकी सरकार सहज नहीं हो पा रही है. इस बीच में पुलवामा हमले और उसके बाद बालाकोट प्रतिक्रिया से स्थिति अवश्य ही कुछ उनकी तरफ झुकती हुई दिखाई दे रही है फिर भी मामले को उतना आसान नहीं समझा जा सकता है जितना वह लग रहा है? संभवतः इसी कारण से आज पीएम मोदी समेत भाजपा का हर छोटा बड़ा नेता केवल बालाकोट निर्णय की बात करना चाह रहा है और वे जानबूझकर पूरे विमर्श को उस दिशा में ले जाने का काम करने में लगे हुए हैं जिससे विपक्षी दलों को को उनके सवालों में उलझने देने की नीति अपनायी जा रही है.
नि:संदेह पीएम मोदी सामने बैठे लोगों से बेहतर संवाद बनाने में माहिर हैं पर सिर्फ उनके स्तर से किया जा रहे प्रयासों को पूरा नहीं माना जा सकता है इसलिए कांग्रेस के किसी भी नेता के पुलवामा या बालाकोट से जुड़े हर बयान को जनता के सामने इस तरह से पेश किया जा रहा है जैसे खुद राहुल गांधी के निर्देश पर यह सब चल रहा है. भाजपा और पीएम मोदी कुछ भी कहें पर पुलवामा पर राजनीति न करने के विपक्षी दलों के बयान और सरकार को पूर्ण समर्थन देने के बाद भी जिस तरह से खुद पीएम मोदी और अमित शाह की तरफ से इस मसले को लेकर राजनीति की जाती रही है उसके बाद विपक्षियों कोई तरफ से सवाल उठने ही थे? असल में मोदी सरकार अपने काम के दम पर दोबारा सत्ता के नज़दीक पहुँच नहीं पा रही है इसलिए उसे देशभक्ति और उग्र राष्ट्रवाद दो ऐसे मसले महत्वपूर्ण लग रहे हैं जिन पर सवार होकर वह अपनी चुनावी संभावनाओं को सरल बनाकर अपने पक्ष में मोड़ने का काम आसानी से कर सकती है.
पीएम मोदी कितने भी अच्छे वक्त क्यों न हों पर इस मामले में वे अपने बनाये जाल में खुद ही उलझे नज़र आ रहे हैं क्योंकि उनके उकसाने की भरपूर कोशिशों के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और अन्य विपक्षी दलों की तरफ से सधी हुई गंभीर प्रतिक्रियाएं ही सामने आ रही हैं जिससे भाजपा को उन पर हमला करने का उतना अच्छा अवसर नहीं मिल रहा है. भले ही शुरुवाती हमलों में कांग्रेस ने अपने को सीमित किया है पर भाजपा की तरफ से अपने समर्थक टीवी चॅनेल्स में बैठे एंकर्स के माध्यम से जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है वह खुद उसके खिलाफ भी काम कर सकता है क्योंकि जनता के लिए कुछ मुद्दे अधिक संवेदनशील होते हैं और उनसे निपटने में कोई भी चूक किसी भी दल के लिए आत्मघाती हो सकती है. बालाकोट पर जिस तरह से सरकार को गंभीरता दिखानी चाहिए थी वह उसमें पूरी तरह से चुकी हुई और केवल अपने वोट बढ़ाने की राजनीति में ही व्यस्त दिखाई दी है इस पूरी परिस्थिति में अभी तक विपक्षी दलों की तरफ से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे लगता तो यही है कि वे मोदी और भाजपा के इस जाल से दूर रहने की प्रक्रिया को समझ चुके हैं और अपने अनुसार आगे बढ़ रहे हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
नि:संदेह पीएम मोदी सामने बैठे लोगों से बेहतर संवाद बनाने में माहिर हैं पर सिर्फ उनके स्तर से किया जा रहे प्रयासों को पूरा नहीं माना जा सकता है इसलिए कांग्रेस के किसी भी नेता के पुलवामा या बालाकोट से जुड़े हर बयान को जनता के सामने इस तरह से पेश किया जा रहा है जैसे खुद राहुल गांधी के निर्देश पर यह सब चल रहा है. भाजपा और पीएम मोदी कुछ भी कहें पर पुलवामा पर राजनीति न करने के विपक्षी दलों के बयान और सरकार को पूर्ण समर्थन देने के बाद भी जिस तरह से खुद पीएम मोदी और अमित शाह की तरफ से इस मसले को लेकर राजनीति की जाती रही है उसके बाद विपक्षियों कोई तरफ से सवाल उठने ही थे? असल में मोदी सरकार अपने काम के दम पर दोबारा सत्ता के नज़दीक पहुँच नहीं पा रही है इसलिए उसे देशभक्ति और उग्र राष्ट्रवाद दो ऐसे मसले महत्वपूर्ण लग रहे हैं जिन पर सवार होकर वह अपनी चुनावी संभावनाओं को सरल बनाकर अपने पक्ष में मोड़ने का काम आसानी से कर सकती है.
पीएम मोदी कितने भी अच्छे वक्त क्यों न हों पर इस मामले में वे अपने बनाये जाल में खुद ही उलझे नज़र आ रहे हैं क्योंकि उनके उकसाने की भरपूर कोशिशों के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और अन्य विपक्षी दलों की तरफ से सधी हुई गंभीर प्रतिक्रियाएं ही सामने आ रही हैं जिससे भाजपा को उन पर हमला करने का उतना अच्छा अवसर नहीं मिल रहा है. भले ही शुरुवाती हमलों में कांग्रेस ने अपने को सीमित किया है पर भाजपा की तरफ से अपने समर्थक टीवी चॅनेल्स में बैठे एंकर्स के माध्यम से जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है वह खुद उसके खिलाफ भी काम कर सकता है क्योंकि जनता के लिए कुछ मुद्दे अधिक संवेदनशील होते हैं और उनसे निपटने में कोई भी चूक किसी भी दल के लिए आत्मघाती हो सकती है. बालाकोट पर जिस तरह से सरकार को गंभीरता दिखानी चाहिए थी वह उसमें पूरी तरह से चुकी हुई और केवल अपने वोट बढ़ाने की राजनीति में ही व्यस्त दिखाई दी है इस पूरी परिस्थिति में अभी तक विपक्षी दलों की तरफ से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे लगता तो यही है कि वे मोदी और भाजपा के इस जाल से दूर रहने की प्रक्रिया को समझ चुके हैं और अपने अनुसार आगे बढ़ रहे हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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