जैसे जैसे चुनावों पांच राज्यों के चुनाव की शुरुवात होने के साथ प्रचार आगे बढ़ रहा है और केंद्रीय स्तर पर अगले आम चुनावों में अपने को ज़माने के लिए भाजपा और कांग्रेस में ज़बानी युद्ध छिड़ता ही जा रहा है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में यह और तेज़ होने वाला है पर भारत जैसे विविधता भरे देश में जहाँ हर व्यक्ति अपने को सर्वोपरि मानता है वहाँ पर नेताओं के द्वारा अपने को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ न लगे यह अपने आप में बहुत ही असम्भव सी बात है ? भारतीय राजनीति में अभी भी वे आयाम आने शेष ही हैं जिनको उच्च मानदंडों पर खरा भी कहा जा सके क्योंकि अपने विरोधियों पर राजनैतिक हमले करते समय हमारे नेता कब व्यक्तिगत हमले करने लगते हैं यह भी समझ में नहीं आता है. देश के समक्ष आज जो भी मुद्दे हैं उन पर पैनेल में बहस होनी ही चाहिए पर उस पैनेल में इस बात को कौन देखेगा कि बातचीत का स्तर गिरने न पाये और आने वाले समय में जो देश और राज्य सँभालने जा रहे हैं वे चंद वोटों के लालच में आखिर कुछ भी बोलकर देश की साख पर बट्टा न लगाने पाएं.
यह भी ज़ाहिर ही है कि केंद्र की लड़ाई में कांग्रेस और भाजपा ही आमने सामने हैं इसलिए राष्ट्रीय मुद्दों पर उन्हें जनता को जवाब भी देना ही चाहिए और कांग्रेस से यह पूछा जाना चाहिए कि उसे अपने वायदों को पूरा क्यों नहीं किया पर साथ ही भाजपा से भी यह पूछा जाना चाहिए कि उसने उन मुद्दों पर भी केंद्रीय सरकार का विरोध क्यों किया जिनका वह चुनावों में वायदा करती रहती है ? क्या देश के राजनैतिक दल अब अपनी सरकार होने पर ही देश के हित का काम करने की तरफ सोचेंगें और विपक्षी दलों के सरकार चलाने की दशा में वे अपनी उन नीतियों को तुरंत ही कूड़े में डाल देंगें जिनके दम पर वे चुनावों में वोट मांगते फिरते हैं ? क्या देश में ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि चुनाव वायदों को पूरा करने में किसी भी तरह की राजनीति करने वाले सत्ताधारी और विपक्षी दलों पर चुनाव आयोग द्वारा कुछ निगरानी भी की जाये और फ़र्ज़ी मुद्दों को उठाने वाले दलों के खिलाफ कार्यवाही भी की जाये जिससे इस तरह की घटिया राजनीति पर कुछ हद तक अंकुश भी लग सके ?
देश की राजनीति अभी भी मुद्दों आधारित राजनीति करने के स्थान पर मौका आधारित राजनीति पर अधिक निर्भर रहती हैं जिसका सीधा असर आम जनता पर ही पड़ता है भले ही किसी भी दल की सरकार क्यों न हो ? इसलिए अब इस बारे में भी सोचने का समय आने वाला ही है क्योंकि देश के लिए जो भी नीतियां सही हैं वे सदैव ही सही रहने वाली हैं और उनका कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता है फिर इस बात पर राजनीति करने वाले दलों को ऐसे ही कैसे छोड़ दिया जाना चाहिए ? चुनाव घोषणा पत्रों को महज़ कागज़ के टुकड़े मानने वाले लोगों के लिए अब देश के कानून को कुछ करने की आवश्यकता है क्योंकि देश के समग्र विकास की आवश्यकता हमेशा ही वैसी ही रहने वाली है और जो सोच और नीतियां देश को आगे बढ़ाएं उन पर चुनाव पूर्व चर्चा भी आवश्यक है पर हमारे नेता उन पर बात करने के स्थान पर घटिया स्तर की बातें करके बहस के स्तर के साथ अपने स्तर को भी नीचे गिराने से नहीं चूकते हैं जिससे अधिकांश बार मुद्दे पीछे छूट जाते हैं और उनके स्थान पर घटिया बयानबाज़ी आगे बढ़कर रास्ता रोक लेती है. अब यह नेताओं को तय करना है कि उन्हें देश और जनता को आगे ले जाना है या फिर केवल किसी भी तरह से कुछ करके अपना काम ही निकलना है भले ही देश का कुछ भी होता रहे ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह भी ज़ाहिर ही है कि केंद्र की लड़ाई में कांग्रेस और भाजपा ही आमने सामने हैं इसलिए राष्ट्रीय मुद्दों पर उन्हें जनता को जवाब भी देना ही चाहिए और कांग्रेस से यह पूछा जाना चाहिए कि उसे अपने वायदों को पूरा क्यों नहीं किया पर साथ ही भाजपा से भी यह पूछा जाना चाहिए कि उसने उन मुद्दों पर भी केंद्रीय सरकार का विरोध क्यों किया जिनका वह चुनावों में वायदा करती रहती है ? क्या देश के राजनैतिक दल अब अपनी सरकार होने पर ही देश के हित का काम करने की तरफ सोचेंगें और विपक्षी दलों के सरकार चलाने की दशा में वे अपनी उन नीतियों को तुरंत ही कूड़े में डाल देंगें जिनके दम पर वे चुनावों में वोट मांगते फिरते हैं ? क्या देश में ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि चुनाव वायदों को पूरा करने में किसी भी तरह की राजनीति करने वाले सत्ताधारी और विपक्षी दलों पर चुनाव आयोग द्वारा कुछ निगरानी भी की जाये और फ़र्ज़ी मुद्दों को उठाने वाले दलों के खिलाफ कार्यवाही भी की जाये जिससे इस तरह की घटिया राजनीति पर कुछ हद तक अंकुश भी लग सके ?
देश की राजनीति अभी भी मुद्दों आधारित राजनीति करने के स्थान पर मौका आधारित राजनीति पर अधिक निर्भर रहती हैं जिसका सीधा असर आम जनता पर ही पड़ता है भले ही किसी भी दल की सरकार क्यों न हो ? इसलिए अब इस बारे में भी सोचने का समय आने वाला ही है क्योंकि देश के लिए जो भी नीतियां सही हैं वे सदैव ही सही रहने वाली हैं और उनका कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता है फिर इस बात पर राजनीति करने वाले दलों को ऐसे ही कैसे छोड़ दिया जाना चाहिए ? चुनाव घोषणा पत्रों को महज़ कागज़ के टुकड़े मानने वाले लोगों के लिए अब देश के कानून को कुछ करने की आवश्यकता है क्योंकि देश के समग्र विकास की आवश्यकता हमेशा ही वैसी ही रहने वाली है और जो सोच और नीतियां देश को आगे बढ़ाएं उन पर चुनाव पूर्व चर्चा भी आवश्यक है पर हमारे नेता उन पर बात करने के स्थान पर घटिया स्तर की बातें करके बहस के स्तर के साथ अपने स्तर को भी नीचे गिराने से नहीं चूकते हैं जिससे अधिकांश बार मुद्दे पीछे छूट जाते हैं और उनके स्थान पर घटिया बयानबाज़ी आगे बढ़कर रास्ता रोक लेती है. अब यह नेताओं को तय करना है कि उन्हें देश और जनता को आगे ले जाना है या फिर केवल किसी भी तरह से कुछ करके अपना काम ही निकलना है भले ही देश का कुछ भी होता रहे ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सुन्दर रचना,बेहतरीन, कभी इधर भी पधारें
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख
सादर मदन