सीतापुर जनपद के एक गाँव बैजनाथ पुरवा में जिस तरह से प्रशासन और नेता का खतरनाक गठजोड़ देखने को मिला उसने अंग्रेजों के अत्याचार को भी फीका कर दिया. एक छोटे से ज़मीन के टुकड़े और प्रतिष्ठा का प्रश्न बने कुछ पेड़ों ने मानवता को इस क़दर शर्मशार कर दिया कि सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो गए और सही बात सुनाने वाला कोई मिल नहीं रहा. स्थानीय सत्ताधारी दल के विधायक के गुर्गों ने अपने पड़ोसी से निपटने के लिए जिस तरह से सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया वह शर्मनाक से भी बुरा है. पहले तो नेता ने अपने गुर्गे के विरोधी को प्रशासन का इस्तेमाल कर आपसी विवाद होने के बाद भी एक पक्षीय कार्यवाई करवा उसे जेल भेज दिया. सबसे दुखद पहलू यह कि प्रशासन कह रहा है कि एक महिला ने वहां पर पेड़ में फाँसी लगा ली जबकि उस महिला का जबड़ा टूटा मिला साथ ही उसके चोटों के निशान भी मिले हैं जो अत्याचार की कहानी खुद ही बयान कर रहे हैं. दलित महिला के साथ इस तरह का व्यवहार कर सामाजिक परिवर्तन करने का दावा भरने वाले दल के विधायक किस तरह से न्याय कर रहे हैं ?
आज के युग में जब हर चीज़ का व्यवसायी करण हो चुका है तो अख़बार भी विज्ञापन के लिए इन नेताओं और प्रशासन के सामने नत मस्तक रहते हैं फिर भी इस मामले में कुछ अख़बारों ने सच्चाई छापने का प्रयास भी किया जो सराहनीय है. ऐसी स्थिति में कहाँ चले जाते हैं सरकार के वे आयोग जिन पर इन शोषितों के अधिकारों की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी होती है ? दलित आयोग और महिला आयोग को ये मामले स्वतः संज्ञान में लेने चाहिए पर अभी तक इस मामले में कुछ भी होता नहीं दिख रहा है. कहाँ हैं समाज के ठेकेदार ? शायद सभी सत्ता के भय से कहीं दुबक गए हैं या उन्हें यह मामला दिखाई ही नहीं दे रहा है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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