मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 17 मार्च 2010

माला की "माया" में आयकर विभाग भी ?

दलित और दबे कुचले लोगों की बात करने वाली दलित की बेटी कहलाने वाली और मनुवादियों पर हमेशा ही प्रहार करने वाली माया को लगता है कि इस बार १५ मार्च को पहनाई गयी माला बहुत भारी पड़ने वाली है. वैसे देखा जाये तो इस तरह के आयोजनों में इस तरह की मालाएं और मुकुट आदि सम्मान करने के लिए ही पहनाये जाते हैं पर जब इनमें से दिखावे की बू आने लगे तो व्यक्ति के अहंकार का भी पता चल जाता है. यह मामला इतना नहीं उछलता यदि यह एक सामान्य माला होती भले वह विदेशी फूलों से तैयार की गयी होती पर उसमें रुपयों की गणना करना या उसका वास्तविक मूल्य पता लगाना बहुत कठिन होता. मनुवादियों से चिढ़ने वाली माया ने भी मनुवादी व्यस्था को कितना आत्मसात कर लिया है यह सभी को पता है वे पैर छुवाने में गौरव का अनुभव करती हैं, उनके यहाँ भी अब २१, ५१, १०१ का चलन हो गया है.
               बात यहाँ पर अगर माले की करें तो यह सामने आता है कि इस माले की विशेषता को देखते हुए इस पर सबकी निगाहें टिक गयी हैं क्योंकि अभी तक किसी ने भी इतने वज़न की माला नहीं पहनी है अब जब सार्जनिक स्थान पर इस तरह का प्रदर्शन किया गया है तो उससे होने वाले हल्ले को भी झेलना ही होगा. अब आयकर विभाग का लखनऊ कार्यालय इस पूरे मामले में जांच करने जा रहा है कि आखिर ये माला कहाँ से आई और यह भी संभव है कि इस पूरे कार्यक्रम के बारे में भी हुए खर्चे पर भी विभाग अपने हिसाब से जांच करे ? जब इस तरह की हरकत की जाती है तो कोई भी नहीं सोचता की कोई बखेड़ा खड़ा हो जायेगा पर अब जब कुछ सुगबुगाहट हो रही है तो सभी को पसीने आ रहे हैं. वैसे इस तरह के किसी भी पार्टी के किसी भी कार्यक्रम पर आयकर विभाग को पूरी नज़र रखनी चाहिए और जिस भी स्तर पर सरकारी तंत्र का दुरूपयोग किया गया हो उसकी पूरी जांच करनी चाहिए.
          इस तरह के मामलों में सभी पार्टियों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए जिससे आगे इस तरह की बातें नहीं हो सकें. एक अनुमान के अनुसार इस पूरी रैली पर २०० करोड़ का खर्च होने की बात कही जा रही है इतने पैसे से पता नहीं कितने और विद्यालय खुल सकते थे पर वोट के लालच में जो नेता हादसों में मरे लोगों के लिए कंगाल होता है उसी के पास इतनी जल्दी अपनी पार्टी के तमाशे पर फूंकने के लिए इतने रूपये कहाँ से आ जाते हैं ?    

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2 टिप्‍पणियां:

  1. आशुतोष जी मैंने कल ही अपने ब्लॉग में लिखा था "कि एक तरफ तो उत्तर प्रदेश सरकार के पास दुर्घटना में मरने वालो के लिए अनुदान देने को पैसे नहीं है लेकिन वो सरकार पार्टी के अय्याश और अय्याशियों को जश्न मनाने के लिए दलित के नाम पर पांच सौ करोड़ का खर्चा तक कर सकते है. क्या ये राशि गरीबो के व्यवसायिक प्रशिक्षण में खर्च करते तो ज्यादा बेहतर नहीं होता.
    ग़नीमत है रिज़र्व बैंक ने देश में अभी पचास हज़ार का नोट नहीं जारी किया है. नहीं तो ये उसकी माला लटका कर तमाशा दिखाने से भी परहेज नहीं करते. क्या भारतीय मुद्रा के साथ इस तरह का खिलवाड़ आपराधिक श्रेणी में नहीं आता? बस दलितों के नाम पर पूरे देश की इज्जत ही लूट लो.
    आपने आयकर विभाग की बात की है तो आपको बतला दूँ आयकर विभाग में तो बिकाऊ इंसान ही है. कल ही एक ब्लॉग में पढ़ा था "अपने इन्सान होने पर शर्म आ गई जब कल एक ब्लॉग में पढ़ा था कि "देश में आज जहां एक तरफ़ करोडों की आवादी भुखमरी के कगार पर खडी है, वहां उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति ऐसी है कि एक बेखौफ़ दुष्कर्मी जो एक युवति से दुष्कर्म की सजा काट रहा है, जेल से छूटकर आता है तो फिर उसी युवति को सरे-आम उठा कर ले जाता है। और उसके साथ मुह काला करने के बाद उसे नोऎडा की सड्कों पर फेंक देता है।" आयकर हो या चुनाव आयोग, कोई माई का लाल इस अहंकारी दम्भी माया का कुछ नहीं बिगाड़ सकते.

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  2. माला न हुई..गले की फांस बन गई है.. :)

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