मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 6 मई 2010

तुगलकी फ़रमान

उत्तर प्रदेश में बाढ़ पीड़ित जिलों में सरकार ने मध्याह्न भोजन योजना को गर्मी की छुट्टियों में भी चलाने का आदेश जारी कर दिया है. निश्चित तौर पर बाढ़ पीड़ितों के लिए यह एक राहत होगी पर इतने बड़े सरकारी ताम झाम और लाव लश्कर के बाद भी इस तरह की योजनाओं को आँखें बंद करके लागू करने का प्रयास किया जाता है. सरकार में बैठे लोग भी जानते हैं कि वास्तव में यह सब कहना आसान होता है पर करना बहुत मुश्किल हो जाता है और खास तौर से तब जब हर तरफ भ्रष्टाचारियों का बोलबाला हो. मुझे पूरे प्रदेश की जानकारी तो नहीं है पर अपने गृह जनपद सीतापुर के बारे में कुछ तथ्य मैं यहाँ पर बांटना चाहता हूँ. भौगोलिक स्थिति के अनुसार सीतापुर के उत्तरी हिस्से में शारदा और उसकी सहायक नदियों द्वारा हर वर्ष बहुत तबाही मचाई जाती है वास्तव में इस हिस्से के लिए कुछ ठोस किया भी जाना चाहिए. इस वर्ष केंद्रीय मंत्री पवन बंसल ने इस क्षेत्र का दौरा स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री जतिन प्रसाद के साथ कर कार्य योजना बनाने के निर्देश दे भी दिए हैं. सीतापुर के दक्षिणी भाग में कुछ हिस्सों में गोमती और सरायन नदी की बाढ़ का असर भी होता है. इसके अतिरिक्त पूरे जिले में बाढ़ का व्यापक असर नहीं होता है. अब छुट्टियों में भोजन देने की योजना को बिना इस बात पर विचार किये पूरे जिले में लागू कर दिया गया है जिसका कोई मतलब समझ में नहीं आता है ? अच्छा होता कि जो क्षेत्र वास्तव में बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहे हैं उनको ही यह पूरा अन्न दिया जाता जिससे उनका भी भला होता और सरकारी योजना भी पूरी तरह से सफल हो जाती.
    मुझे तो लगता है कि अधिकारी और नेता इस बात का इंतज़ार ही करते रहते हैं कि किस तरह से जिले को बाढ़ या सूखा प्रभावित घोषित करा लिया जाये क्योंकि इस मद में बहुत सरे खर्चे ऐसे होते हैं जिनका कोई हिसाब भी नहीं देना पड़ता है और बहुत कुछ विवेकानुसार करने की छूट होती है. हम सभी जानते हैं कि आज के समय में विवेक केवल अपना भला करने में काम करता है. आज उत्तर प्रदेश में वित्तीय स्थिति ऐसी है कि इन प्राथमिक स्तर के शिक्षकों को जनवरी माह का वेतन अब मिल रहा है और सरकार अपनी योजनाओं का ढिंढोरा पीटती घूम रही है. जो सरकार अपने कर्मचारियों के लिए समय पर वेतन की व्यवस्था नहीं कर सकती वह कहीं न कहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती ही दिखती है क्योंकि किसी शिक्षक का घर ४ महीनों तक क्या मध्याह्न भोजन से ही भरने की कोई सरकारी योजना तो नहीं आ गयी है ? सच में देश में सारे संसाधनों के होने के बाद इस तरह के आँख बंद करके किये जाने वाले काम आखिर कब तक किये जाते रहेंगें ? कब तक जनता के पैसे को सरकारी कर्मचारी और नेता इसी तरह सहायता के नाम पर लूटते रहेंगें ?      

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1 टिप्पणी:

  1. मुझे तो लगता है कि अधिकारी और नेता इस बात का इंतज़ार ही करते रहते हैं कि किस तरह से जिले को बाढ़ या सूखा प्रभावित घोषित करा लिया जाये क्योंकि इस मद में बहुत सरे खर्चे ऐसे होते हैं जिनका कोई हिसाब भी नहीं देना पड़ता है और बहुत कुछ विवेकानुसार करने की छूट होती है. हम सभी जानते हैं कि आज के समय में विवेक केवल अपना भला करने में काम करता है

    sab jante hai par dhyan dene wal koi nahi hai

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