मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 3 जुलाई 2010

कश्मीर-आतंकवाद, अर्थ और अमरनाथ

कश्मीर में जिस तरह से कुछ दिनों से गुट बनाकर सुरक्षा बलों पर हमले करने का सिलसिला जारी है उससे लगता है कि आम कश्मीरी जनता आज भी यह समझ नहीं पाई है कि उनके दोस्त कौन हैं और कौन दोस्ती के नाम पर दुश्मनी निकालने में लगे हुए हैं. पिछले कुछ वर्षों में निश्चित तौर पर घाटी की ज़मीनी हकीकत में बदलाव देखने को मिला है पर उससे हताश होकर आतंकियों के पाक स्थित समूहों ने अब स्थानीय लोगों को भड़काने का काम शुरू कर दिया है. इस पूरे प्रकरण में कुछ बातों पर विचार किया जाना आवश्यक है कि आख़िर किस तरह से प्रदर्शन के दौरान चली गोली को सुनियोजित हत्या कहा जा सकता है ? घाटी के पुलिस बल के कुछ लोगों की स्थानीय निवासियों से अनबन हो सकती है पर देश के दूर दराज़ क्षेत्रों से आये जवानों को उनसे कोई दुश्मनी तो नहीं है ? पूरे क्षेत्र में शांति बनाये रखने में जिस तरह से इन सुरक्षा बलों ने प्रयास किया है उसकी कोई दूसरी मिसाल दुनिया में नहीं मिलेगी.
          हर बार अमरनाथ यात्रा के समय पर ही इस तरह की गड़बड़ी करने बलों के मसूबों पर भी सभी को ध्यान देना होगा क्योंकि आतंक के चलते अब कश्मीर में पूरे समय पर्यटन उद्योग बहुत अच्छा नहीं चलता है फिर भी वार्षिक अमरनाथ यात्रा के दौरान पूरे देश से उमड़ने वाले श्रद्धालुओं के कारण घाटी की आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार हो जाता है. इस तरह के विवादों और अराजकता के चलते भला कौन कश्मीर घाटी में जाना चाहेगा जिसका सीधा असर वहां की जनता की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा. परेशान हाल लोगों को भड़काना आसान होता है. अब यह सारी बातें जब तक स्थानीय कश्मीरी नहीं समझ पायेंगें तब तक इसी तरह से आतंकी और कश्मीरियत के विरोधी उनका फायदा अपने हितों के लिए उठाते रहेंगें. पाकिस्तान कभी भी यह नहीं चाहेगा कि कश्मीर की जनता खुश हाल रहे क्योंकि जब हर तरफ से सुख शांति होगी तो पाकिस्तानी आकाओं  की बातें घाटी में अनसुनी कर दी जायेंगीं. इस तरह से केवल पाक ही कश्मीरियों का दुश्मन साबित हो रहा है. देश के बाकी हिस्सों से जाने वाले लोग कश्मीर की आर्थिक गतिविधियों में जान डालने का काम ही तो करते हैं.
              इस मामले को अमरनाथ यात्रा से जोड़कर भी देखा जाना चाहिए क्योंकि इस तरह के असफल प्रयासों से पाक पूरे भारत में बाबा अमरनाथ के श्रद्धालुओं के मन में शंका के बीज बोना चाहता है कि घाटी के मुसलमान नहीं चाहते हैं कि हर साल यह यात्रा करायी जाये ? जबकि सच्चाई यह है कि आज भी पूरी घाटी के मुसलमान इस यात्रा के शुरू होने का इंतज़ार करते हैं क्योंकि इससे उनके लिए बहुत आर्थिक अवसर उत्पन्न हो जाते हैं. यह सही है कि घाटी में कुछ तत्व इस यात्रा के घोर विरोधी भी हैं पर उनकी संख्या केवल नाम मात्र की है. अच्छा हो कि इस वार्षिक यात्रा के समय कश्मीरी किसी भी झांसे में ना आयें और किसी भी तथाकथित ज़्यादती का कानून के दायरे में रहकर विरोध भी करें. इस तरह की अराजकता केवल कश्मीर और कश्मीरियत की आत्मा पर कुछ और खरोंचें लगाने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकती है क्योंकि आज भी घाटी का आम कश्मीरी इस बात का अपराधी तो है ही कि उसके रहते वहां से कश्मीरी पंडितों कि सब कुछ छोड़कर जाना पड़ा.      

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