मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 2 अगस्त 2010

भारत का ज्ञान और पटेंट

एक खबर के मुताबिक भारत की प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा से सम्बंधित केवल ३ मामलों में ही पटेंट मिल सका है जबकि पूरी दुनिया से लगभग ६००० पटेंट इस को लेकर हासिल किये जा चुके हैं. आज के युग में जब हर चीज़ का व्यावसायिकी करण किया जा रहा है तो भारतीय ज्ञान के प्रति हमारी उदासीनता कहीं हमें हमारे घरेलू नुस्खों से ही वंचित न कर दे ? यह पूरी दुनिया में सभी जानते हैं की आयुर्वेद का उद्भव और पोषण भारत में ही हुआ है फिर भी बहुत सारे लोग अपने हितों को साधने के लिए पता नहीं कितने योगों का पटेंट ले चुके हैं साथ ही यह भी सही है कि इन सभी ने इस बात को भी स्वीकार है कि कहीं न कहीं वे सभी भारतीय मूल से ही उपजे हुए हैं. हम यह मानते हैं कि चाहे जो हो हमारे ज्ञान को कौन लिए भागा जा रहा है पर यहाँ पर हम सभी यह भूल जाते हैं कि दुनिया उतनी सरल नहीं रह गयी है जितनी कभी हुआ करती थी.
           आज जब हर चीज़ को विश्व व्यापी बनने से कोई रोक नहीं सकता है तो फिर किस तरह से हमारे यहाँ के ज्ञान को चुराने से रोका जायेगा ? हमारी धरती पर आकर ही ब्रितानी प्रधानमंत्री कह गए कि वे कोहिनूर हीरा नहीं लौटा सकते हैं क्योंकि उसके बाद वहां देखने लायक रह ही क्या जायेगा ? नियमों की दुहाई देने वाले देश, नैतिकता की बातें करने वाले देश, लोकतंत्र के प्रहरी कहलाने वाले देश का जब यह हाल है तो आने वाले समय में और देश पता नहीं किस तरह से अपने बर्ताव को सही रख पायेंगें ? कल को कहीं ऐसा न हो कि हम केवल कोहनूर के इतिहास की तरह भारत की चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के प्रचार प्रसार को देख कर ही खुश होने की स्थिति में ही रह जाये और कुछ भी प्रयोग करने केलिए हमें कुछ शुल्क दूसरों को देना पड़े ?
        यह भी सही है कि काफी देर से ही सही पर भारतीय ज्ञान की पूरी डिजिटल जानकारी उपलब्ध करने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों के बाद हजारों वर्षों से प्रयोग में लाये जा रहे हमारे ज्ञान को सुरक्षित रखने में काफी हद तक मदद मिल जाएगी. फिर भी भारत के ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए हर नागरिक को कुछ न कुछ प्रयास तो करने ही होंगें क्योंकि जिस तरह से सरकारें काम करती हैं उससे कुछ भी सुरक्षित बचने की सम्भावना कम ही हो जाती है. आज यह केवल चिंता करने का विषय नहीं है बल्कि इसके लिए आयुर्वेद से जुड़े सरकारी विभागों को सही दिशा में काम करने की ज़रुरत है. यदि इस मामले में सरकारें कुछ नहीं करती हैं तो उन पर दबाव डालने के लिए कुछ न कुछ आयुर्वेद से जुड़े लोगों को तो करना ही होगा.    

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