देश में १७ सितम्बर का दिन एक बार फिर से एक नए परिवर्तन की तरफ़ जाने वाला हो सकता है. इस दिन अयोध्या मामले में सुनवाई कर रही इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ अपने सुरक्षित रखे गए फैसले को सुनाने वाली है. अभी तक इस विवाद को जिस तरह से लोग अपने राजनैतिक हितों को साधने के लिए उपयोग में लाते रहे हैं वह निश्चित तौर पर आज के समय बहुत ही चिंता का विषय बन सकता है. उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने इस फैसले के संभावित परिणामों को देखते हुए अभी से ही केंद्र से ४८५ कम्पनी अर्ध सैनिक बलों की मांग कर ली है. ज़ाहिर है कि यह सारा मामला निर्णय आने के बाद इतना आसान नहीं होने वाला है.
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र ने भी विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों के साथ बैठकर किसी भी आपात स्थिति से निपटने की व्यापक योजना बनाई है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह मसला आस्था से जुड़ा हुआ है और आज़ादी के बाद से आज तक यह कोर्ट में विचाराधीन था. अब न्यायालय तो केवल सबूतों के आधार पर ही किसी एक के पक्ष में अपना निर्णय से सकता है पर इस तरह से सबूतों के आधार पर कभी भी आस्था के विषय न तो आज तक तय किये जा सके हैं और न ही कभी आगे भी किये जा सकेंगें ? अच्छा हो कि इस निर्णय के आने के बाद किसी भी तरह के सामाजिक विद्वेष को भड़काने वाले तत्वों की पहले से ही पहचान कर ली जाए जिससे समय आने पर उन्हें चिन्हित कर लोगों को भड़काने से रोका जा सके. अब जब मामला केवल आस्था से ही जुड़ा है तो एक पक्ष को ऐसा लगने वाला ही है कि उसके साथ अन्याय हुआ है ? हमारा देश लोकतान्त्रिक है और किसी भी मसले पर किसी को यह लगने पर कि उसके खिलाफ़ कुछ अन्याय हो रहा है वह कोर्ट जाने को स्वतंत्र है इसलिए ऐसे मामले भी कोर्ट तक पहुँच जाते हैं.
अच्छा हो कि केद्र सभी राजनैतिक दलों के साथ इस मसले पर एक बैठक पहले ही कर ले और यह भी स्पष्ट कर दिया जाए कि आने वाले राष्ट्रमंडल खेलों को देखते हुए किसी भी तरह की अनावश्यक बयानबाज़ी से बचा भी जाए क्योंकि किसी भी अनावश्यक बयानबाज़ी से लोगों में असंतोष पनपने की सम्भावना अधिक होती है. यह तो तय ही है कि चाहे जिसके पक्ष में फैसला आये दूसरा पक्ष सर्वोच्च न्यायालय ज़रूर जायेगा. केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को मिलकर अभी से पहले सभी राजनैतिक दलों से और फिर धर्म गुरुओं से व्यापक विचार विमर्श करके कोई ऐसा हल निकलने का प्रयास करना चाहिए जो देश के हित में हो. यह सब तभी ठीक से किया जा सकेगा जब इसमें वास्तव में धार्मिक गुरुओं को शामिल किया जाए यह मामला राजनैतिक स्तर पर केवल निपटा तो जा सकता है पर इसका कोई सर्वमान्य हल केवल धर्म गुरु ही मिलकर निकल सकते हैं.
इस मसले पर देश में पहली ही बहुत विद्वेष फ़ैल चुका है और अब जब लोग इस मसले को प्राथमिकता में नहीं ले रहे थे तो इस समय यह फिर से अचानक ही सामने आ गया है. अच्छा को कि निर्णय को किसी की जीत और किसी की हार के रूप में न देखा जाए क्योंकि इस जीत हार में कोई नहीं जीतेगा पर एक बात तय है कि इसमें इंसानियत का फिर से खून होगा पड़ोसी एक दूसरे पर संदेह करने लगेंगें, और अगर कोई हारेगा तो वह भारत ही होगा जो अपने बच्चों के मनमुटाव को फिर से चुप चाप देखने के लिए मजबूर होगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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