मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

उमर कितने परिपक्व ?

पता नहीं जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह आजकल किस दबाव में जी रहे हैं उन्होंने राज्य विधान सभा में एक ऐसा बयान दे दिया जिसकी आज के समय में कोई आवश्यकता ही नहीं थी. पता नहीं राजनैतिक परिवारों से आने वाले युवा इस बात को क्यों नहीं समझ पाते हैं कि कुछ लोक लुभावन बातें करके वे कुछ समय के लए प्रसिद्धि पा सकते हैं पर जब बात धरातल पर कुछ करने की हो तो उनके लिए कुछ ठोस किये बिना कुछ भी हासिल करना बहुत मुश्किल हो जायेगा. देश में पहले से ही विभिन्न राजनैतिक गुट अलग अलग सुर में अपने अपने राग अलापते रहते हैं फिर भी उमर के इस बयान के बाद उनको जम्मू कश्मीर में सरकार चलने का कोई अधिकार नहीं रह जाता है.
         उन्हें इतिहास की बिलकुल भी समझ नहीं है और शायद वे इस तरह के ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान देकर अपनी विफलता से लोगों का ध्यान हटाना चाहते हैं ? उनकी सरकार जितनी विफल साबित हुई है उसे देखते हुए अब लोग यह मानने लगे हैं कि अब उनके लिए सत्ता में बने रहने के अवसर बहुत कम ही बचे हैं ? अगर वे यह सपना देखें कि अब वे फिर से केंद्र में मंत्री बन सकते हैं तो यह भी अब उनके लिए बहुत मुश्किल होने वाला है क्योंकि पूरे भारत के मंत्री के तौर पर अब वे भाजपा को बहुत चुभने वाले हैं और इस स्थिति में यह बिलकुल भी आसान नहीं होगा कि केंद्र फिर से फ़ारूख अब्दुल्लाह को कश्मीर भेज कर उमर को केंद्र में ले ले. आज भी कुछ नेता पता नहीं किस तरह की सोच रखते हैं ? कश्मीर घाटी में अलगाव वादी जिस तरह से अलग थलग किये जा चुके हैं उस पर ये घटिया नेता पूरी तरह से पानी फेरने में लगे हुए हैं.
         अब भी समय है कि फ़ारूख अब्दुल्लाह खुद ही उमर को हटाकर जम्मू-कश्मीर की सत्ता संभाले जिससे वहां के शासन- प्रशासन में नयी जान फूंकी जा सके. इस समय उमर को राज्य की नौकरशाही भी ढंग से नहीं ले रही है क्योंकि उसे भी लगता है कि ये कुछ दिनों के लिए ही कुर्सी पर बचे हुए है. एक युवा नेता के रूप में कश्मीर और देश ने उमर से जो कुछ भी अपेक्षाएं की थीं उमर उनमें पूरी तरह से विफल साबित हुए हैं. देश में जहाँ बाक़ी राज्यों में युवा नेता ज़मीन से जुड़ी हुई राजनीति करके अपने को मज़बूत करने में लगे हुए हैं वहीं उमर अपने बाप दादा की बनायीं ज़मीन को दरकाने में ही लगे हुए हैं. फिलहाल उन्होंने राहुल गाँधी को भी बहुत ठेस पहुंचाई है क्योंकि जब उनकी पार्टी में ही उनको बदलने का दबाव बन रहा था तब राहुल ने ही उन्हें और समय देकर काम करने का अवसर दिए जाने की बात की थी. पर अब शायद ही फारूख अब्दुल्लाह अपनी राजनैतिक भूमि को और बंजर होने के लिए उमर के हाथों में सौंपे रखें ?         

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