मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

सेना और माफ़ी

 किसी भी फैसले के आने के बाद उस पर होने वाली प्रतिक्रिया आदि से वैसे तो कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं आता है पर जब भी बात भारतीय सेना की हो और कश्मीर उसमें जुड़ा हुआ हो तो यह बात अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत गौर से सुनी जाती है इसलिए सभी को बहुत ही समझ से काम करने की ज़रुरत होती है. इस कड़ी में ताज़ा घटनाक्रम इस बात पर है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुलाह के बंकर हटाने के फैसले की आलोचना करने वाली सेना ने वहां की राजनैतिक नजाकत को समझते हुए उनसे माफ़ी मांग ली है. सेना ने यह बात वहां की सुरक्षा चिंताओं के सम्बन्ध में कही थी और उसका मतलब केवल सांकेतिक था कि इस तरह से फैसलों से आगे परेशानियाँ हो सकती हैं.
   यह सही है कि भारतीय परिदृश्य में सेना कभी भी किसी भी फैसले में जुड़ी नहीं होती है फिर भी देश के कुछ अशांत क्षेत्रों में उस पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हमेशा ही रहती है और जब सेना का आम नागरिकों के साथ रहना होता है तो सेना के नियमों और नया कारणों से आम नागरिकों को कुछ परेशानी अवश्य होती हैं पर सुरक्षा आवश्यकताओं की पूर्ती के लए उनका वहां होना भी बहुत आवश्यक है. सेना को केवल देश हित की बात सोचनी है और उसे इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि किसी विशेष कदम से राज्य या केंद्र सरकार को क्या लाभ और क्या हानि हो सकती है ? सेना के अधिकारी केवल सेना के शीर्ष नेतृत्व को अपनी सुरक्षा चिंताएं समाधान के साथ देते हैं और राजनैतिक मसलों को ध्यान रखते हुए रक्षा मंत्रालय सरकार से मिलकर इस पर निर्णय लेता है. यह सही है कि भारतीय सेना को किसी भी तरह से राजनैतिक वक्तव्य देने की मनाही है पर जब राजनैतिक हित और सुरक्षा आमने सामने हों तो सेना को कुछ कहना ही पड़ जाता है.
     इस मामले में सेना ने केवल करमावाडी में सोमवार को हुए हमले को श्रीनगर में सेना के हटाये गए बंकरों से जोड़कर देखा था जिस घटना में ३ आतंकी मारे गए और १ सुरक्षा कर्मी शहीद हो गया था. यह सही है कि पाक समर्थित आतंकी संगठन घाटी में पूरी तरह से शांति के पक्ष में नहीं हैं और इसलिए उन्हें कोई न कोई हिंसक गतिविधि निरंतर चलाने की आवश्यकता हमेशा ही रहती है. सेना ने केवल यह ही कहा था कि इस तरह से बंकर हटाये जाने से आम आदमी की सुरक्षा फिर से संकट में पड़ सकती है ? सेना का आंकलन किसी भी तरह से राजनैतिक हित लाभ से जुड़ा नहीं होता है. जिन देशों में सेना ने अपना हस्तक्षेप बाधा रखा है वहां पर कभी भी शांति नहीं रह पाती है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण पाक ख़ुद ही है. अच्छा हो कि कश्मीर के सम्बन्ध में सेना को अपने काम करने दिया जाये और नेता वोट मांगने के लिए सुरक्षा को मुद्दा बनाने से परहेज़ करें पर क्या कश्मीर घाटी में कोई भी नेता इस तरह से सोचना भी चाहता है ?  

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