मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

कोर्ट की याचिका ही खारिज़ ( पर फैसला)

२६ नवम्बर को सर्वोच्च न्यायालय  द्वारा की गयी टिप्पणी के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका डाली थी कि इस तरह की टिप्पणी से इलाहाबाद उच्च न्यायालय की छवि को धक्का लगता है. इस मामले पर सुनवाई करते समय कोर्ट ने साफ़ तौर पर यह कहा कि यह समय याचिका करने का नहीं वरन अपने को सुधारने का है. अभी तक जिन मुद्दों को २६ नवम्बर को उठया गया था वे अपनी जगह पर मौजूद हैं जिससे किसी को भी कुछ भी कहने का हक नहीं है. न्याय एक ऐसी प्रक्रिया है कि जिसमें भरोसे का होना बहुत आवश्यक है पर कुछ स्वार्थी तत्व अपने हितों को साधने के लिए कोर्ट की मर्यादा को भी भूले बैठे हैं.
      कोर्ट ने वरिष्ठ वकील पी पी राव को को कुछ मसलों पर स्पष्टीकरण भी दिया और कहा कि इलाहाबाद में कुछ बेहतरीन न्यायाधीश और कुछ अच्छे भी हैं. इस पर राव ने स्पष्टीकरण मांगना चाह तो कोर्ट ने उन्हें लताड़ते हुए कहा कि इन बातों से सभी परिचित हैं और उनका यहाँ पर ज़िक्र किया जाना उचित नहीं है. सवाल यहाँ पर यह है कि आख़िर कौन से ऐसे तत्व हैं जो अब सर्वोच्च न्यायालय तक की नज़रों में अपने निर्णयों के चलते आ चुके हैं ? अब देश के कानून के अनुसार इन लोगों को आसानी से हटाया भी नहीं जा सकता है पर अब समय आ गया है कि सर्वोच्च न्यायालय जब इस बात का संज्ञान ले सकता है कि किस तरह से लोग अंकल बनकर न्याय को बाज़ार में बेंच रहे हैं तो उसे इन सभी अंकल लोगों को पूरे देश में छाँट लेना चाहिए जिससे किन्हीं स्वार्थी तत्वों के कारण पूरी न्याय व्यवस्था पर उंगली न उठने लगे ?
    यह इलाहाबाद कोर्ट का हक था कि वह अपने खिलाफ़ की गयी टिप्पणियों पर पुनर्विचार करने की याचिका दायर करे पर साथ ही टिप्पणी करने वाले जजों को यह हक भी है कि वे इस पर अपना मत रखें. सबसे बड़ी बात यह कि ऐसा केवल नैतिकता की तरफ ध्यान दिलाने के लिए किया गया था इसका उद्देश्य क्या था यह समझे बिना उच्च न्यायालय द्वारा दायर की गयी याचिका का जो होना था वह कल हो चुका है. इससे यह स्पष्ट है कि इलाहाबाद में सब कुछ ठीक नहीं है और इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में कोई भ्रम की स्थिति भी नहीं है ? २६ नवम्बर की टिप्पणियां जितनी उस दिन ठीक थी उतनी ही आज भी हैं अब जिस बात की आवश्यकता है वह यह है कि किसी भी तरह से अब इन न्यायमूर्तियों को चेत जाना चाहिए और इनके रिश्तेदारों को भी यह स्थान छोड़कर कहीं अलग अपना काम जमाना चाहिए. केस का बंटवारा करते समय भी इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह केस रिश्तेदार जजों के यहाँ न जाने पायें और स्वयं इलाहाबाद हाईकोर्ट को अब उन सभी फैसलों पर पुनर्विचार करना चाहिए जो किसी भी रिश्तेदार की कोर्ट में गए हों तभी जाकर कोर्ट की मर्यादा बनी रह पायेगी.       

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2 टिप्‍पणियां:

  1. यह सच नहीं है। याचिका खारिज नहीं हुई है। अखबारों एवं टीवी पर गलत बयानी हो रही है। कृपया इस फैसले को यहां पढ़ें।

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  2. यह सही है कि माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने इस याचिका पर फैसला दिया है पर आम बोलचाल की भाषा में जिस तरह से पीड़ित पक्ष की बात के विपरीत फैसला आने को भी यही कहा जाता है कि उक्त की याचिका को निरस्त कर दिया गया या फिर खारिज कर दिया गया.. आपका कहना बिलकुल सही है मैंने भी आपके द्वारा दी गयी लिंक को पढ़ा इस पुनरीक्षण याचिका पर यह अंतिम फैसला ही है. मैं भी मूल हेडिंग में सुधार कर रहा हूँ.. ध्यान आकृष्ट करने हेतु धन्यवाद...

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