असोम के प्रतिबंधित संगठन उल्फा ने १० तारीख़ को केंद्र सरकार से बिना शर्त बात चीत करने का प्रस्ताव किया है और साथ ही यह भी कहा है कि यह एक सद्भावना वार्ता होगी और आगे होने वाली किसी भी वार्ता के लिए ज़मीन इससे ही तैयार होने वाली है. उल्फा के नेता शशधर चौधरी ने इस बात को संवाददाताओं को बताते हुए कहा कि अब उल्फा असोम के आम लोगों और बुद्धिजीवियों की मांग को देखते हुए राज्य के हित में बिना शर्त बात करने की इच्छा जताई है. एक तरफ़ जहाँ उन्होंने यह कहा कि इसके लिए कोई शर्त नहीं है वहीं साथ ही यह भी मांग की कि वे चाहते हैं कि वार्ता के समय प्रधानमंत्री भी मौजूद रहें ? इसके पीछे उन्होंने तर्क यह दिया हैं कि प्रधानमंत्री राज्य से सांसद हैं और उनके होने से वार्ता का सकारात्मक सन्देश भेजने में आसानी होगी.
अगर पहली बार यह संगठन किसी भी तरह की वार्ता के लिए राज़ी हुआ है तो उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए क्योंकि पता नहीं कब इसके कुछ लोग फिर से हथियार उठा लें ? चौधरी की इस मांग में दम है कि मनमोहन सिंह भी वार्ता के समय रहें क्योंकि उनके होने मात्र से ही बहुत कुछ सन्देश देने में केंद्र सरकार सफल हो जाएगी. साथ ही यह भी सभी को लगेगा कि स्वयं मनमोहन भी इस मसले को हल करने में दिलचस्पी ले रहे हैं ? अभी तक जिस सादगी से प्रधानमंत्री काम करने के आदी रहे हैं उससे तो यही लगता है कि हो सकता है कि वे इस वार्ता के समय मौजूद भी रहें ? एक उल्फा जैसा संगठन अगर केंद्र से बात करना चाहता है तो उसके लिए देश के प्रधानमंत्री के लिए समय निकालना महत्वपूर्ण होता है.
आने वाले समय में हो सकता है कि असोम के हित और मनमोहन के वहां से जुड़े होने की बात को ध्यान में रखते हुए उल्फा अपने संघर्ष को वार्ता पूरी होने तक पूरी तरह से रोक दे और देश की राजनैतिक प्रक्रिया में भाग लेने का मन बना ले ? लोकतान्त्रिक देश में अपनी बात को कहने का सबसे सही तरीका चुनाव में भाग लेना ही होता है. अगर यह बात उल्फा भी समझ ले तो यह पूरे देश के लिए अच्छा होगा. हाँ यहाँ पर एक बात ध्यान रखें की ज़रुरत है कि इस पूरे मसले पर पाक की छाया पड़ने से रोका जाए क्योंकि पाक कहीं से भी भारत को अस्थिर करने की कोई कोशिश छोड़ना नहीं चाहता है ? पूरी वार्ता में सद्भावना और एक रोड मैप बनाए जाने की बहुत ज़रुरत होगी और इसमें राज्य के बुद्धिजीवियों को भी शामिल करने की आवश्यकता रहेगी. किसी भी स्तर पर कोई भी बात चीत आम लोगों के सहयोग के बिना सही रास्ते पर नहीं चल सकती है. जब कश्मीर में विशेष वार्ताकार नियुक्त किये जा सकते हैं तो फिर असोम के लिए भी ऐसा ही किया जाना चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अगर पहली बार यह संगठन किसी भी तरह की वार्ता के लिए राज़ी हुआ है तो उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए क्योंकि पता नहीं कब इसके कुछ लोग फिर से हथियार उठा लें ? चौधरी की इस मांग में दम है कि मनमोहन सिंह भी वार्ता के समय रहें क्योंकि उनके होने मात्र से ही बहुत कुछ सन्देश देने में केंद्र सरकार सफल हो जाएगी. साथ ही यह भी सभी को लगेगा कि स्वयं मनमोहन भी इस मसले को हल करने में दिलचस्पी ले रहे हैं ? अभी तक जिस सादगी से प्रधानमंत्री काम करने के आदी रहे हैं उससे तो यही लगता है कि हो सकता है कि वे इस वार्ता के समय मौजूद भी रहें ? एक उल्फा जैसा संगठन अगर केंद्र से बात करना चाहता है तो उसके लिए देश के प्रधानमंत्री के लिए समय निकालना महत्वपूर्ण होता है.
आने वाले समय में हो सकता है कि असोम के हित और मनमोहन के वहां से जुड़े होने की बात को ध्यान में रखते हुए उल्फा अपने संघर्ष को वार्ता पूरी होने तक पूरी तरह से रोक दे और देश की राजनैतिक प्रक्रिया में भाग लेने का मन बना ले ? लोकतान्त्रिक देश में अपनी बात को कहने का सबसे सही तरीका चुनाव में भाग लेना ही होता है. अगर यह बात उल्फा भी समझ ले तो यह पूरे देश के लिए अच्छा होगा. हाँ यहाँ पर एक बात ध्यान रखें की ज़रुरत है कि इस पूरे मसले पर पाक की छाया पड़ने से रोका जाए क्योंकि पाक कहीं से भी भारत को अस्थिर करने की कोई कोशिश छोड़ना नहीं चाहता है ? पूरी वार्ता में सद्भावना और एक रोड मैप बनाए जाने की बहुत ज़रुरत होगी और इसमें राज्य के बुद्धिजीवियों को भी शामिल करने की आवश्यकता रहेगी. किसी भी स्तर पर कोई भी बात चीत आम लोगों के सहयोग के बिना सही रास्ते पर नहीं चल सकती है. जब कश्मीर में विशेष वार्ताकार नियुक्त किये जा सकते हैं तो फिर असोम के लिए भी ऐसा ही किया जाना चाहिए.
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