आजकल उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती प्रदेश में विकास कार्यों की समीक्षा और भौतिक सत्यापन के लिए पूरे प्रदेश की ख़ाक छानती घूम रही हैं. एक हिसाब से अगर देखा जाए तो यह काम बहुत अच्छा है पर जिस तरह से सब कुछ पहले से तय होता है उसके बाद किस तरह का औचक निरीक्षण हो सकता है यह हम सभी जानते हैं. माया के एक बहतु अच्छे प्रयास पर नौकरशाही किस तरह से पानी फेर रही है यह पूरे प्रदेश में कहीं पर भी देखा जा सकता है. आजकल जिस तरह का प्रशासनिक कार्य बढ़ गया है उसको देखते हुए कोई भी मुख्यमंत्री अपने प्रदेश पर पूरी नज़र नहीं रख सकता है फिर भी कहीं कहीं प्रयास तो किये ही जा रहे हैं. इन नेताओं को अपने अधिकारियों को यह भी स्पष्ट बता देना चाहिए कि कहीं से भी यह काम ढिलाई से नहीं होना चाहिए वरना उनके खिलाफ़ सख्त कार्यवाही की जाएगी. जुगाड़ संस्कृति में विश्वास रखने वाले अधिकारी सचिवालय में बैठे अपने सूत्रों से यह पता करवा लेते हैं कि मुख्यमंत्री कहाँ आने वाली हैं और उसके अनुसार ही तैयारी करते रहते हैं.
उत्तर प्रदेश में जिस तरह से भ्रष्टाचार ने जड़ें जमा रखी हैं उसे देखते हुए यहाँ पर विकास के किसी भी कार्य को सही नहीं कहा जा सकता है. जो प्रयास चुनावी वर्ष में मायावती द्वारा किया जा रहा है उसके स्थान पर यदि मंत्रियों की फ़ौज को लगाया जाता तो शायद जनता को बेहतर सुविधाएँ वास्तव में ही मिल जाती और सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी सुधार जाता ? आज एक परंपरा सी बन गयी है कि हर मंत्री को किसी न किसी जिले का प्रभारी भी बनाया जाता है और इन प्रभारी मंत्रियों ने पिछले ४ वर्षों में अपने जिलों में कितनी बार जाकर इस तरह की समीक्षाएं की हैं यह हम सभी जानते हैं ? अगर कभी कोई मंत्री कहीं गया भी तो वह पार्टी और सरकारी बंगलों से बाहर नहीं निकला ? जिस तरह से अब मायावती के आने पर गाँव और सड़क सुधारे जा रहे हैं उनसे सीखते हुए अगर ये मंत्री भी सघन दौरे करते तो केंद्र और प्रदेश मुख्यालय से भेजा जाने वाला पैसा भी पात्रों तक पहुँच जाता ? आज योजनाओं के लिए लाभार्थी ढूंढें जा रहे हैं ? जो काम के लिए गिडगिडाते थे आज उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर काम दिया जा रहा है ? एक रिपोर्ट के अनुसार केवल सीतापुर जनपद में ही रोजाना इन तैयारियों के तहत ५५ हज़ार लोग मनेरगा के तहत काम कर रहे हैं ?
आख़िर यह करने की ज़रुरत क्यों आती है ? अब जब अधिकारियों को पता है कि मायावती के विकास के केवल कुछ ही पैमाने हैं तो वे उन्हें ही दुरुस्त करके अपनी स्थिति सुरक्षित कर लिया करते हैं. यह स्थिति तो उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं के उन २० प्रश्नों के प्रश्न बैंक के सामान है जिसमें छात्र केवल २० प्रश्न पढ़कर ही पास हो जाया करते हैं ? अधिकारी भी कुछ उसी तर्ज़ पर काम कर रहे हैं उन्हें पता है कि आंबेडकर ग्राम के अतिरिक्त माया को कुछ दिखाई नहीं देता है तो वे केवल पिछले दो वर्षों में चयनित इन ग्रामों को सुधार लेते हैं ? क्या माया की पार्टी के लोग या किसी अन्य ने यह देखने की कोशिश की है कि उनके पहले के कार्यकाल में घोषित हुए आंबेडकर ग्रामों की क्या दुर्दशा है ? यह सही है कि माया का प्रयास सराहनीय है पर अब इस भार को केवल वे जिस तरह से अपने कन्धों पर ढोकर जनता को यह दिखाना चाहती हैं कि वे बहुत सख्त प्रशासक हैं तो जनता भी पिछले ४ वर्षों में उनके लचर प्रशासन को देख चुकी है. बेहतर होता कि माया अपने मंत्रियों की चूड़ियाँ कसती और उन्हें पूरे साल अपने अपने प्रभारी जनपदों में जाने का निर्देश देतीं जिससे लोगों के साथ प्रशासन को भी एहसास हो जाता कि अब कोई छोटा रास्ता काम नहीं आने वाला है और आने वाले समय में चुनाव में बसपा को विकास के नाम पर कुछ वोट भी मिल जाते.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
उत्तर प्रदेश में जिस तरह से भ्रष्टाचार ने जड़ें जमा रखी हैं उसे देखते हुए यहाँ पर विकास के किसी भी कार्य को सही नहीं कहा जा सकता है. जो प्रयास चुनावी वर्ष में मायावती द्वारा किया जा रहा है उसके स्थान पर यदि मंत्रियों की फ़ौज को लगाया जाता तो शायद जनता को बेहतर सुविधाएँ वास्तव में ही मिल जाती और सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी सुधार जाता ? आज एक परंपरा सी बन गयी है कि हर मंत्री को किसी न किसी जिले का प्रभारी भी बनाया जाता है और इन प्रभारी मंत्रियों ने पिछले ४ वर्षों में अपने जिलों में कितनी बार जाकर इस तरह की समीक्षाएं की हैं यह हम सभी जानते हैं ? अगर कभी कोई मंत्री कहीं गया भी तो वह पार्टी और सरकारी बंगलों से बाहर नहीं निकला ? जिस तरह से अब मायावती के आने पर गाँव और सड़क सुधारे जा रहे हैं उनसे सीखते हुए अगर ये मंत्री भी सघन दौरे करते तो केंद्र और प्रदेश मुख्यालय से भेजा जाने वाला पैसा भी पात्रों तक पहुँच जाता ? आज योजनाओं के लिए लाभार्थी ढूंढें जा रहे हैं ? जो काम के लिए गिडगिडाते थे आज उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर काम दिया जा रहा है ? एक रिपोर्ट के अनुसार केवल सीतापुर जनपद में ही रोजाना इन तैयारियों के तहत ५५ हज़ार लोग मनेरगा के तहत काम कर रहे हैं ?
आख़िर यह करने की ज़रुरत क्यों आती है ? अब जब अधिकारियों को पता है कि मायावती के विकास के केवल कुछ ही पैमाने हैं तो वे उन्हें ही दुरुस्त करके अपनी स्थिति सुरक्षित कर लिया करते हैं. यह स्थिति तो उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं के उन २० प्रश्नों के प्रश्न बैंक के सामान है जिसमें छात्र केवल २० प्रश्न पढ़कर ही पास हो जाया करते हैं ? अधिकारी भी कुछ उसी तर्ज़ पर काम कर रहे हैं उन्हें पता है कि आंबेडकर ग्राम के अतिरिक्त माया को कुछ दिखाई नहीं देता है तो वे केवल पिछले दो वर्षों में चयनित इन ग्रामों को सुधार लेते हैं ? क्या माया की पार्टी के लोग या किसी अन्य ने यह देखने की कोशिश की है कि उनके पहले के कार्यकाल में घोषित हुए आंबेडकर ग्रामों की क्या दुर्दशा है ? यह सही है कि माया का प्रयास सराहनीय है पर अब इस भार को केवल वे जिस तरह से अपने कन्धों पर ढोकर जनता को यह दिखाना चाहती हैं कि वे बहुत सख्त प्रशासक हैं तो जनता भी पिछले ४ वर्षों में उनके लचर प्रशासन को देख चुकी है. बेहतर होता कि माया अपने मंत्रियों की चूड़ियाँ कसती और उन्हें पूरे साल अपने अपने प्रभारी जनपदों में जाने का निर्देश देतीं जिससे लोगों के साथ प्रशासन को भी एहसास हो जाता कि अब कोई छोटा रास्ता काम नहीं आने वाला है और आने वाले समय में चुनाव में बसपा को विकास के नाम पर कुछ वोट भी मिल जाते.
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कोई नेता नहीं चाहता भ्रष्टाचार मुक्त और स्वच्छ प्रशासन देना..
जवाब देंहटाएंkoi mantri nhi sochta
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mantriyo ne apna vikas to kar liya hai..
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