मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

कश्मीरी युवा और सेना

                                           चित्र साभार बीबीसी हिंदी
एक ऐसी ख़बर जो पूरी दुनिया के लिए एक बदलाव और कशमकश के बीच झूलती कश्मीरी जनता के हालात को बयान करने के लिए काफ़ी है शायद ही किसी बड़े समाचार पत्र या खबरी टीवी पर जगह बना पायी हो ? कश्मीरी मन जितना अशांत है पर वह क्या चाहता है इस बात को दर्शाने वाली यह ख़बर अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है पर कश्मीर से चलने वाले किसी भी पत्थर को उछालने में माहिर ख़बरी चैनेल इस ख़बर को इतनी सनसनी नहीं मानते कि इसे कुछ जगह दे पाते ? कश्मीर में सेना ने एक भर्ती अभियान चलाया जिसमें भर्ती होने के लिए युवा कश्मीरियों की १०,००० के करीब उपस्थिति कहीं न कहीं से यह तो अवश्य दर्शाती है कि कश्मीरी जनता सेना के हर काम से खुश है वरना वह इतनी बड़ी संख्या में वहां पर अपने बच्चों को भर्ती के लिए नहीं भेजती जबकि सभी को पता है कि इन भर्ती हुए जवानों को केवल आतंकियों से ही पहला मोर्चा लेना पड़ेगा ? आखिर क्यों कश्मीर के युवा ख़ुद को सेना में जाने के लिए उपयुक्त समझने लगे हैं ? शायद इसलिए कि उन्हें लगने लगा है कि सेना के बारे में जितना ग़लत उन्हें बताया जाता है वह बिलकुल भी सच नहीं है और अगर वे सेना में जाते हैं तो उन्हें यह पता चल जायेगा कि आख़िर किन कारणों से और किन परिस्थितयों में सेना से भी कुछ निर्दोष लोग मारे जाते हैं ?
       कश्मीर में यह बदलाव रातों रात नहीं आया है बेरोज़गारी वहां पर आज धर्म से बड़ा मुद्दा बन चुकी है और सरकारी लूट के कारण कोई भी योजना अपना पूरा लाभ लोगों तक नहीं पहुंचा पाती है ? कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि यही कश्मीरी युवक कल तक भारत के सुरक्षा बलों की घाटी में उपस्थिति को ही नकारते रहते थे और आज वे देश की प्रतिष्ठित सेना में भर्ती होने के लिए इतनी बड़ी संख्या में आने लगे हैं ? सेना ने अपने प्रयासों से कश्मीरी जनता के दिल में जगह तो बना ली है पर उनके मन में आज भी बहुत बड़ी दुविधा रहती है कि वे धर्म के नाम पर उकसाने वाले पाकिस्तान परस्त नेताओं के साथ जाएँ या फिर शांति की तरफ जाने वाला भारत का मार्ग पूरी ईमानदारी के साथ अपना लें ? हम सभी जानते हैं कि कहीं से भी कुछ भी हो जाये पर जब तक जनता के मन में इन आतंकियों और अलगाववादियों से लड़ने की मनोस्थिति नहीं बनेगी तब तक कोई भी प्रयास पूरा और सार्थक नहीं साबित हो पायेगा. 
                   जनता के सामने आज दोनों बातें हैं कि वे अगर आतंकियों के साथ हैं तो सुरक्षा बल उन्हें कभी भी निशाने पर ले सकते हैं और अगर वे सुरक्षा बलों में भर्ती होते हैं तो उनके परिजनों पर हमेशा ही खतरा मंडराता रहेगा ? इस कशमकश में आज इन युवाओं को यह समझाने की आवश्यकता है कि कहीं से भी उनके लिए ख़तरा उतना नहीं है जितना देखने से लगता है ? अगर पूरे कश्मीर के लोग अपनी मांगें सामने रखने के साथ ही घाटी में विकास के लिए प्रयासरत हो जाएँ तो वह दिन दूर नहीं है जब पूरी घाटी में शांति आ जाएगी. पर इस बात के लिए केवल कश्मीरियों को ही यह तय करना होगा कि उन्हें अब कौन सा मार्ग चुनना है ? उन पर कोई दबाव नहीं डाल सकता है और जब वे सेना या अन्य बलों से जुड़ेंगें तो कहीं न कहीं से उनमें परिवार की आर्थिक सुरक्षा भी पक्की हो जाएगी ? जिस तरह से आतंकियों ने वहां पर हर व्यवस्था को ध्वस्त करने का अभियान सा चला दिया है उसे देखते हुए तो यही लगता है कि अब अगर कश्मीर उठकर खड़ा नहीं हुआ तो वह पूरी दुनिया से बहुत पीछे चला जायेगा ?     
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