मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 22 मार्च 2011

आतंक और राजनीति

                         हैदराबाद से सांसद और मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने जिस तरह से महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की सरकारों पर गंभीर आरोप लगाये हैं उनका कोई मतलब इस समय नहीं बनता है. जिस तरह से अभी तक कुछ हिन्दू कट्टरपंथियों का हाथ मालेगांव, अजमेर और मक्का मस्जिद विस्फोट में सामने आया है और सारी जांच अभी भी चल रही है उस बीच में ओवैसी का यह मांग करना कि प्रधानमंत्री और सरकार मुसलमानों से माफ़ी मांगे कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है ? पता नहीं धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को यह समझ में क्यों नहीं आता है कि कानून धार्मिक आधार पर काम नहीं करता है और उसके काम करने का एक तरीका होता है. एक सांसद होने के नाते ओवैसी का कर्तव्य बनता है कि वे इस तरह की बातों को बढ़ावा नहीं दें क्योंकि जब इस सारे मसलों की जांच अभी चल ही रही है और जांच एजेंसियों का काम आख़िर सही दिशा में जा ही रही है तो फिर सरकार या किसी एजेंसी के बारे में इस तरह की बात करने का कोई औचित्य नहीं बनता है. 
       यह सही है कि केवल सरकार चाहे तो किसी को भी जेल से छोड़ सकती है पर जब मसला आतंक से जुड़ा होता है तो पुलिस पर अनावश्यक दबाव भी बन जाया करता है आतंकी की कोई जाति नहीं होती वह केवल दहशत फ़ैलाने का काम ही किया करता है. इस तरह की गतिविधि में कोई भी लिप्त है तो वह एक जैसे कानून का सामना करेगा और जिस तरह से ओवैसी कह रहे हैं कि सरकार को आतंकी घटनाओं में पकड़े गए मुस्लिम युवकों को रिहा करके माफ़ी मांगनी चाहिए वह कहाँ तक उचित है ? किसी को भी जेल में नहीं रखा जा सकता है पर किसी को जांच के दौरान हिरासत में लिया गया हो तो उसो ऐसे ही कैसे छोड़ा जा सकता है ? देश में आतंक को धर्म से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू करना ही बहुत गलत है क्योंकि जो भी आतंक के रास्ते पर है उसका कोई धर्म नहीं है फिर आतंक का रंग क्यों निर्धारित किया जा रहा है ? कश्मीर से जो पंडित ज़बरिया निकल दिए गए उनके बारे में क्या कानून और अधिकार की बातें नहीं की जानी चाहिए ? पर शायद ओवैसी यह जानते हैं कि ऐसी बात करने से ओवैसी अगली बार संसद का मुंह भी नहीं देख पायेगें ?
     ओवैसी जिस तरह से मुस्लिम सांसदों के साथ मनमोहन सिंह से मिलकर अपनी मांगें रखने की बातें कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि बाक़ी के हिन्दू सांसद शायद उनके खिलाफ़ हैं ? अच्छा होता कि वे इस मसले को धर्म का चश्मा उतार कर देखने और समझने की कोशिश करते और सभी सांसदों को ले जाकर अपनी बात मनमोहन के सामने रखते ? इस देश में अगर मुसलमान सुरक्षित हैं तो हिन्दुओं के कारण ही क्योंकि आज विश्व के अधिकांश इस्लामी देशों में मुसलमान उतने सुरक्षित नहीं हैं जितने भारत में तो फिर इस तरह से आतंक को धर्म से जोड़कर देखने का नज़रिया आख़िर क्या दिखाता है ? ओवैसी की मांग तो ठीक है पर उसका तरीक़ा ग़लत है जब संसद में देश को जोड़ने के लिए काम की बात होती है तो हिन्दू सांसद ही क्यों बोलते हैं ? अच्छा होता कि इस मांग के साथ ही वे अफज़ल गुरु को जल्दी से फाँसी दिए जाने की मांग भी मनमोहन से करते जिससे देश में यह सन्देश भी जाता कि अब वास्तव में आतंक के खिलाफ़ भारत के मुसलमान भी देश के साथ खड़े हो चुके हैं और आगे से उन हिन्दू कट्टरपंथियों को मुसलमानों को बदनाम करने का कोई मौका भी नहीं मिलता.  
   
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2 टिप्‍पणियां:

  1. यहीं तो हिन्दुस्तानी मुसलमान मात खा जाता है प्यारे।

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  2. बात आप कि सही है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और माफी किसी धर्म के लोगों से मांगने का कोई मतलब नहीं लेकिन उस व्यक्ति से माफी अवश्य मंगनी चाहिए जिसे झूठे इलज़ाम मैं जेल डाला गया, ज़ुल्म किया गया और अब बहार उसे भटकने के लिए छोड़ दिया गया . माफी नहीं तो कम से कम उसको इज्ज़त कि ज़िंदगी जीने मैं मदद करे सरकार.

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