एक बार फिर से गैस की कीमतों को लेकर देश में राजनैतिक घमासान मचने वाला है क्योंकि अभी तक सबको एक रेट से गैस दिए जाने से कम्पनियों को लगभग २५० रु० प्रति सिलेंडर का नुकसान होता है जिसे पूरा करने के लिए सरकार उन्हें सहायता देती है. जिस तरह से अब एक बार फिर से लोगों को सिलेंडर देने के नए तरीके पर विचार किया जा रहा है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में बजाय कुछ ठोस करने के कोई ऐसा कदम उठाया जायेगा जो इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला साबित होगा. देश में जब तक पूर्ति विभाग और सरकार मिलकर कोई ऐसा तंत्र नहीं बनायेगें जो बिना किसी भ्रष्टाचार के सही लोगों तक सरकारी सहायता पहुंचा सके तब तक गरीबों के लिए बनने वाली हर योजना पर अपात्र लोग कब्ज़ा करते रहेंगें और गरीब हमेशा की तरह ही केवल हाथ मलता रह जायेगा.
आज फिर से एक ऐसा विचार सामने आ रहा है कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को मुफ्त में गैस दी जाये ? यह एक ऐसा विचार है जो किसी भी क्षेत्र में किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को तुरंत बढ़ावा देने वाला साबित होने वाला है क्योंकि देश के तथाकथित गरीबों के लिए जो केरोसिन कम दर पर बाज़ार में भेजा जाता है वह कितना बड़ा घोटाला करता रहता है यह सभी को पता है. इसी तेल के खेल में मंजूनाथ की जान इन हत्यारों ने ले ली थी. इस बात के बाद भी इस तरह की मूर्खता पूर्ण सोच रखना देश के साथ गद्दारी करना है. कोई भी वस्तु जो बाज़ार में ऊंचे दामों पर बिक रही है उसमें इस तरह से सबके लिए सब्सिडी देने से केवल भ्रष्टाचार बढ़ता है और जिन गरीबों के लिए यह सब भेजा जाता है उनको तो बाज़ार से ऊंचे मूल्यों अपर ही सब कुछ खरीदना होता है. केंद्र सरकार को राज्य सरकारों को यह सन्देश दे देना चाहिए कि जिन राज्यों में पूर्ति विभाग ठीक से काम करेंगें केवल उन्हीं में कोई सहायता की जाएगी वरना राज्य अपने स्तर से कोई छूट देना चाहें तो दे सकते हैं.
जिस तरह से आधार पहचान पत्र बनाये जाने का काम ईमानदारी से चल रहा है और उसमें अभी तक कहीं से भी किसी तरह की धांधली सामने नहीं आई है उससे तो यही लगता है कि इस तरह से देश में वास्तव में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की गिनती भी की जानी चाहिए और इस सूचना देश के लिए विभिन्न योजनायें बनाते समय किया जाना चाहिए. गरीबों के लिए मुफ़्त गैस देना बुरा नहीं है पर इससे इस योजना का लाभ उठाने वालों के लिए बड़ी मात्रा में घोटाले करने की गुंजाईश भी खुल जाएगी. देश के जो संसाधन गरीबों के नाम पर सुरक्षित किये जाते हैं उन पर कुछ नेता अधिकारी और ठेकेदार मिलकर कब्ज़ा कर लेते हैं जिससे गरीब को कोई मदद नहीं मिल पाती है और भ्रष्टाचारियों का पेट खा खा कर बड़ा होता जाता है. इस तरह के किसी भी विचार से पहले सरकार को पहले अपनी सूचनाओं को ठीक करना चाहिए केवल देश या राज्य की राजधानियों में बनायीं गयी सभी योजनाये ऐसी नहीं होती हैं जिनसे वास्तव में गरीबों का भला हो सके इसके लिए धरातल पर आने वाली समस्याओं पर विचार करने की आवश्यकता होती है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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