मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 28 अगस्त 2011

जन गण मन

     देश के राजनैतिक तंत्र ने आज़ादी के बाद पहली बार यह जाना और समझा है कि वास्तव में जनतंत्र क्या है और जनशक्ति किसे कहते हैं ? जन गण का वास्तविक अर्थ देश ने संभवतः इस नए स्वरुप में जाना है जिसे जानने में उसे इतने वर्ष लग गए. अन्ना के समर्थन में अगर देश इस क़दर उठ खड़ा हुआ कि राजनैतिक तंत्र को भी इसके झटके लगने लगे तो यह देश के लिए लम्बे समय में अच्छा ही होने वाला है क्योंकि अभी तक कुछ विशेष मुद्दों या जाति-धर्म और भाषा के नाम पर नेतागिरी चमकाने वालों के लिए यह समय वास्तव में आत्म मंथन का है. अन्ना ने जिस संकल्प से पूरे समय इस काम को अंजाम दिया वह भारत के लिए बहुत अच्छा है संसद ने भी जिस तरह से इस मामले में अपनी सहमति दिखाई है वह भी बहुत आवश्यक थी क्योंकि अब इस मुद्दे पर पूरी तरह से बहस होने का आसार बन गए हैं. प्रस्तावित लोकपाल अब नए संशोधनों के साथ फिर से स्थायी समिति के पास है और इस पर विचार करने के बाद ही इसका कुछ सही स्वरुप सामने आ पायेगा. जिस तरह से इस पूरे मामले को सरकार ने आख़िरी तीन दिनों में निपटा अगर यह इच्छा शक्ति पहले दिखाई जाती तो परिणाम और अच्छा हो सकता था.
    अन्ना की टीम को अब यह समझने की आवश्यकता है कि इस जन चेतना का लाभ उठाकर "इंडिया अगेंस्ट करप्शन" से पूरे भारत को जोड़ा जाये जिससे आगे कभी आवश्यकता पड़ने पर इस तरह के आंदोलनों को पूरे भारत में एक साथ चलाया जा सके. कोई भी आन्दोलन अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण होता है पर जब उसकी ऊर्जा को लाभ की सही दिशा में मोड़ा जा सके तभी वह अपनी पूर्णता को प्राप्त हो सकता है. आज किसी कानून के बनने से अधिक इस बात की आवश्यकता है कि इस कानून के अमल पर ध्यान दिया जाये. यह भी सही है कि देश में व्याप्त गड़बड़ियों को दूर करने के लिए जितना किसी कड़े कानून की आवश्यकता है उतनी ही आवश्यकता उनके अनुपालन कराने की भी है. अब जब अन्ना की टीम पूरे देश में अपने संगठन को इस तरह से फ़ैला सकेगी तभी निचले स्तर तक व्याप्त भ्रष्टाचार से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकेगा. देश में पहले से ही कड़े कानून मौजूद हैं पर उनसे बच निकलने के रास्ते भी भ्रष्टाचारियों ने ढूंढ निकाले हैं अब समय है कि किसी को भी इस तरह से किसी भी तरह से किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार से रोकने के लिए एक निगरानी तंत्र भी बनाया जाये. इसमें पूरी तरह से साफ़ छवि वाले ग़ैर राजनैतिक लोगों को ही रखा जाये और समाज के सभी वर्गों से बुद्धिजीवियों को इससे जोड़ा जाये.
    सिविल सोसायटी की शाखाएं पूरे देश में होनी चाहिए जिससे हर जगह पर भ्रष्टाचार पर नज़र रखी जा सके क्योंकि केवल दिल्ली या किसी क्षेत्र विशेष से तो केंद्रीय सरकार पर ही नज़र रखी जा सकती है जबकि आज विभिन्न सरकारी योजनाओ में जिस तरह से धन का प्रवाह बढ़ा है उसे देखते हुए अब हर स्तर पर इन पर नज़र रखने की ज़रुरत है. देश को अभी भी कई बड़े सुधारों की ज़रुरत है क्योंकि चुनाव सुधार हुए बिना राजनैतिक गंदगी को दूर करने के कोई भी प्रयास सफल होने वाले नहीं हैं क्योंकि जिस तरह से माननीय बनने के लिए लोग धन खर्च करने लगे हैं उससे यही लगता है कि अब इस पर भी रोक लगनी चाहिए. फिलहाल देश को इस बात के लिए बधाई कि अन्ना ने फिलहाल जनता को यह सन्देश दे ही दिया है कि अब आगे से कुछ भी असंभव नहीं है पर उसके लिए दृढ इच्छा शक्ति और कड़े संकल्प लेने भर की ज़रुरत होती है. अब यह देश को सोचना है कि इस ऊर्जा का कैसे और किस दिशा में उपयोग किया जाये जिससे आने वाले किसी भी चुनाव में राजनैतिक तंत्र पर यह दबाव बनाया जा सके कि वे अपने चुनाव घोषणा पत्रों में इस बात को कह कर आयें कि वे क्या कर सकते हैं ? अब यह कहा जा सकता है कि यह वास्तव में जन तंत्र में गण तंत्र से मन तंत्र की वास्तविक विजय है....
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