अन्ना हजारे ने जिस तरह से हिसार उपचुनाव में कांग्रेस को हराने की बात कही है आज के परिपेक्ष्य में उसका क्या महत्त्व है यह सभी जानते हैं पर जिस तरह से अन्ना की टीम हिसार में व्यवहार कर रही है उससे यही लगता है की इस बहुत अच्छे और सटीक अभियान की जिस तरह से शुरुवात की गयी थी अब वह अपने मूल से हटने लगा है. सभी जानते हैं कि हरियाणा अपने आप में राजनैतिक रूप में बहुत संवेदनशील है और इस राज्य ने जिस तरह के मानदंड राजनीति में पेश किये वे हमेशा से ही लोकतंत्र का मज़ाक उड़ने के लिए काफ़ी रहे हैं और अब अगर आज भी हरियाणा कुछ नया और अजीब कर गुज़रे तो उससे सभी राजनैतिक दलों और टीम अन्ना को कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए. जिस तरह से सभी दल हरियाणा में भ्रष्टाचार के आरोपों को झेलते रहते हैं उसमें आख़िर जनता अब किसका समर्थन करे ?
हरियाणा के इस उपचुनाव में ख़ुद को बीच में डालकर अन्ना की टीम ने बहुत बड़ी ग़लती की है क्योंकि वहां पर समीकरण पहले से ही ऐसे हैं कि लोग उनसे हटकर सोचना नहीं चाहते हैं हाँ अगर अन्ना खुले तौर पर किसी को अपने उम्मीदवार के तौर पर उतारें और तब कांग्रेस या किसी दल विशेष को हराने की अपील करें तो उसका अच्छा प्रभाव पड़ सकता है पर जिस तरह से अभी तक अन्ना कि तरफ से केवल कांग्रेस को दबाव में लेने की कोशिश की जा रही है और उससे उत्पन्न होने वाली नयी नयी बातों पर ध्यान भटकाया जा रहा है उससे लोगों का ध्यान और ऊर्जा जो इस आन्दोलन को मज़बूत कर सकती थी वह भी कमज़ोर हो रही है. अभी भी स्वामी अग्निवेश और आर्य समाज का हरियाणा में इतना प्रभाव तो है ही कि वे किसी भी चुनाव अपर अपना प्रभाव तो दाल ही सकते हैं. आज अन्ना के आन्दोलन की ऊर्जा को संगठित करके उसे एक तरफ मोड़ने की आवश्यकता है जबकि इस ऊर्जा का दुरूपयोग केवल कुछ कामों में ही किया जा रहा है जिससे आने वाले समय में इस अभियान की विश्वसनीयता पर भी संदेह के बादल उठा सकते हैं.
केवल प्रयोग के तौर पर टीम अन्ना को किसी युवा ईमानदार और प्रतिभाशाली को इस चुनाव में उतारना चाहिए था क्योंकि किसी एक सीट पर इस तरह के अभियान को जांचने के लिए यह सही समय था अभी पूरे देश में टीम अन्ना इस स्थिति में नहीं है कि वह चुनाव लड़ या लडवा सके. इस उम्मेदवार के उतरने से लोगों के मन में भ्रष्टाचार से लड़ने की जो ललक है वह और भी जग जाती पिछली सरकारों में सभी दलों ने हरियाणा में जिस तरह से शासन किया है तो उस स्थिति में कांग्रेस को हराकर अन्ना आख़िर किसको सामने लाना चाहते हैं ? सभी ख़राब विकल्पों में से कम ख़राब को चुनने की बात करना अब बेमानी है क्योंकि जनता आज तक यही कर रही है. अच्छा होता कि टीम अन्ना उन लोगों के बीच जाती जो चुनाव के दिन घर पर बिठकर छुट्टी का लुत्फ़ लेते हैं और फिर पूरे ५ साल तक अपने घरों की बैठकों में घुसकर देश की हालत पर चिंता ज़ाहिर करने में पीछे नहीं रहते हैं? देश को घटिया लोगों के हाथों में पहुँचाने का सारा ज़िम्मा इन पढ़े लिखे और संभ्रांत लोगों का ही है क्योंकि इनके कारण ही कम % में पड़ा वोट ख़राब लोगों को सत्ता तक पहुंचा देता है. अब भी समय है कि सही जगह पर चोट कि जाये और रही बात हिसार की तो यह सीट कांग्रेस के पास नहीं थी जो वह हार जाएगी और अगर किसी भ्रम में वह जीत गयी तो अन्ना के आन्दोलन के लिए यह देश के राजनीतिकों की तरफ से एक नयी चुनौती होगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
हरियाणा के इस उपचुनाव में ख़ुद को बीच में डालकर अन्ना की टीम ने बहुत बड़ी ग़लती की है क्योंकि वहां पर समीकरण पहले से ही ऐसे हैं कि लोग उनसे हटकर सोचना नहीं चाहते हैं हाँ अगर अन्ना खुले तौर पर किसी को अपने उम्मीदवार के तौर पर उतारें और तब कांग्रेस या किसी दल विशेष को हराने की अपील करें तो उसका अच्छा प्रभाव पड़ सकता है पर जिस तरह से अभी तक अन्ना कि तरफ से केवल कांग्रेस को दबाव में लेने की कोशिश की जा रही है और उससे उत्पन्न होने वाली नयी नयी बातों पर ध्यान भटकाया जा रहा है उससे लोगों का ध्यान और ऊर्जा जो इस आन्दोलन को मज़बूत कर सकती थी वह भी कमज़ोर हो रही है. अभी भी स्वामी अग्निवेश और आर्य समाज का हरियाणा में इतना प्रभाव तो है ही कि वे किसी भी चुनाव अपर अपना प्रभाव तो दाल ही सकते हैं. आज अन्ना के आन्दोलन की ऊर्जा को संगठित करके उसे एक तरफ मोड़ने की आवश्यकता है जबकि इस ऊर्जा का दुरूपयोग केवल कुछ कामों में ही किया जा रहा है जिससे आने वाले समय में इस अभियान की विश्वसनीयता पर भी संदेह के बादल उठा सकते हैं.
केवल प्रयोग के तौर पर टीम अन्ना को किसी युवा ईमानदार और प्रतिभाशाली को इस चुनाव में उतारना चाहिए था क्योंकि किसी एक सीट पर इस तरह के अभियान को जांचने के लिए यह सही समय था अभी पूरे देश में टीम अन्ना इस स्थिति में नहीं है कि वह चुनाव लड़ या लडवा सके. इस उम्मेदवार के उतरने से लोगों के मन में भ्रष्टाचार से लड़ने की जो ललक है वह और भी जग जाती पिछली सरकारों में सभी दलों ने हरियाणा में जिस तरह से शासन किया है तो उस स्थिति में कांग्रेस को हराकर अन्ना आख़िर किसको सामने लाना चाहते हैं ? सभी ख़राब विकल्पों में से कम ख़राब को चुनने की बात करना अब बेमानी है क्योंकि जनता आज तक यही कर रही है. अच्छा होता कि टीम अन्ना उन लोगों के बीच जाती जो चुनाव के दिन घर पर बिठकर छुट्टी का लुत्फ़ लेते हैं और फिर पूरे ५ साल तक अपने घरों की बैठकों में घुसकर देश की हालत पर चिंता ज़ाहिर करने में पीछे नहीं रहते हैं? देश को घटिया लोगों के हाथों में पहुँचाने का सारा ज़िम्मा इन पढ़े लिखे और संभ्रांत लोगों का ही है क्योंकि इनके कारण ही कम % में पड़ा वोट ख़राब लोगों को सत्ता तक पहुंचा देता है. अब भी समय है कि सही जगह पर चोट कि जाये और रही बात हिसार की तो यह सीट कांग्रेस के पास नहीं थी जो वह हार जाएगी और अगर किसी भ्रम में वह जीत गयी तो अन्ना के आन्दोलन के लिए यह देश के राजनीतिकों की तरफ से एक नयी चुनौती होगी.
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