मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

कश्मीर पर बयानबाज़ी

     आजकल कश्मीर को लेकर जिस तरह से फ़ालतू की बयानबाजी छिड़ी हुई है उससे यही लगता है कि अब देश में प्रसिद्धि पाने के लिए लोग कुछ भी कहने में नहीं चूकते हैं प्रशांत भूषण ने जिस तरह से बेकार में ही इस मसले पर अपनी राय दी उसकी कोई ज़रुरत नहीं थी क्योंकि कश्मीर में भारत जो कर रहा है वह दुनिया का कोई दूसरा देश दुनिया के किसी भी हिस्से में नहीं कर रहा है. कश्मीर के लिए जितने संसाधन और अन्य तरह की सहायतायें लगातार दी जाती हैं उनके बिना आज के कश्मीर की कल्पना सपने में भी नहीं की जा सकती है. इन लोगों को पाक अधिकृत कश्मीर की वास्तविक स्थिति दिखाई जानी चाहिए और तब इनसे पूछा जाना चाहिए कि भारत ने क्या ग़लत किया है ? आज देश में कश्मीर को लेकर कोई भी कुछ भी बोलने से परहेज़ नहीं करता है. कश्मीर भारत के लिए केवल एक राज्य नहीं है बल्कि पूरे देश की आत्मा उससे जुड़ी हुई है यही बात आज भी कुछ तथाकथित पढ़े लिखे लोगों को समझ नहीं आती या फिर वे अपने को जल्दी आगे लाने के लिए इसका दुरूपयोग करने से नहीं मानते हैं.
   कश्मीर पर अरुंधती रॉय की बकवास सभी सुनते रहते हैं और अब प्रशांत भूषण को भी वहां पर न जाने क्या क्या दिखने लगा है ऐसी स्थिति में अब अन्ना के लिए वास्तव में बहुत कठिन समय आने वाला है क्योंकि देश के वर्तमान स्वरुप से छेड़-छाड़ करने वाली किसी भी बात को जनता बर्दाश्त नहीं कर सकती है क्योंकि राजनैतिक लोग अपने लाभ हानि की हिसाब से बातें कर सकते हैं पर जनता के जुड़ाव से खिलवाड़ करने वाले लोगों को आसानी से माफ़ नहीं किया जा सकता है. कश्मीर की वास्तविक स्थिति को समझने के कारण टीम अन्ना का अहम सदस्य किरण बेदी ने तुरंत ही इसे भूषण की निजी राय मानकर इसकी ज़िम्मेदारी उन पर डाल दी क्योंकि ऐसे बयान किस हद तक किसी आन्दोलन या व्यक्ति को चोट पहुंचा सकते हैं इसे वे अच्छे से समझती हैं. अब अन्ना को भूषण को अपनी टीम का हिस्सा बताने के साथ यह भी कहा है कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है जो कि स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है कि अन्ना को यह पता है कि कश्मीर कहाँ तक नुकसान कर सकता है ? भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बोलना अलग बात है और कश्मीर पर भारत विरोधी सुर में बोलना बिलकुल दूसरी बात है. इस बात को मैं पहले भी कह चुका हूँ कि इस तरह के लोग अन्ना के लिए बड़ी समस्याएं खड़ी करने वाले हैं.  
  अजीब बात यह  है कि जब कश्मीर से कश्मीरी पंडित एक योजना के तहत भगाए जा रहे थे तब ये अरुंधती और भूषण जैसे लोग क्या कर रहे थे तब इनको कुछ क्यों नहीं दिखाई दिया और आज जब पूरी तरह से कश्मीर में शांति लौट रही है तो ये फिर से अपने बिलों से बाहर निकल कर फालतू की बातें बोल रहे हैं ? क्यों इनको किसी लाचार कश्मीरी पंडित की मजबूरी नहीं दिखाई देती है ? इनको केवल सेना और अर्ध सैनिक बलों का अत्याचार दिखाई देता है पर जब घाटी का युवा पत्थरों से पुलिस पर हमला करता है तो ये दिल्ली में बैठक अपने केस सुलझाते रहते हैं और इन्हें तब कुछ भी ग़लत नहीं लगता है ? अपने कक्ष में दो झापड़ खाकर ही इनको बुरा लग रहा है और वे युवक जेल मने हैं पर कश्मीरी पंडितों को उनके घरों में ही मार दिया गया और घाटी से निकाल दिया गया तो किसी को जेल नहीं हुई ? १९८९ में घाटी में एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत कश्मीरी पंडितों को भगाया गया और उनकी हत्याएं की गयीं जिसमें वहां के स्थानीय भी शामिल थे तब अरुंधती को यह भी नहीं पता होगा कि कश्मीर भारत के किस हिस्से में है ? अगर इन लोगों को यह लगता है कि घाटी में कुछ ग़लत हो रहा है तो इन्हें १९८९ की स्थिति से ग़लत होने पर फिर से ध्यान देना होगा बल्कि इन्हें कबाइलियों की घुसपैठ तक का भी विश्लेषण करना होगा ? पर ये नहीं कर सकते क्योंकि ये सनसनी तो फ़ैला सकते हैं पर देश के बारे में कुछ नहीं सोच सकते हैं... 

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