मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

मानवाधिकार और पाक

            छोटी छोटी बातों पर मानवाधिकारों की दुहाई देने वाले पाक में वास्तविक स्थिति क्या है यह बताने के लिए हाल ही में पाकिस्तान से पर्यटन वीसा पर आये १४० हिन्दुओं की स्थिति से आसानी से लगाया जा सकता है. पाक में अल्पसंख्यकों के लिए जीना किस हद तक मुश्किल होता जा रहा है यह जानने के लिए इन ही हिन्दुओं की आँखों में बसे खौफ़ को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इन लोगों की आप बीती जिस तरह से अख़बारों में छपी है उसे पढ़कर पाक के सारे झूठ सामने ही आ जाते हैं. लोकतंत्र के नाम पर पाक में जिस तरह से उसके बनने के समय से ही मजाक किया जाता रहा है उस स्थिति में आज भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ है आज भी वहां पर सत्ता में बने रहने के लिए भारत और हिन्दुओं के ख़िलाफ़ ज़हर उगलना ज़रूरी है और सबसे चिंता की बात यह है कि वहां पर लोगों कि यह आम मानसिकता बन चुकी है जिससे सभी लोग हिन्दुओं के ख़िलाफ़ ही कुछ करने की सोचते रहते हैं. ऐसे देश में कैसे रहा जा सकता है जहाँ अल्पसंख्यकों से रोज़ ही इस्लाम कबूल करने के लिए कहा जाता हो ? इन लोगों के बारे में पाक या दुनिया के किसी कोने में बसने वाले किसी मानवाधिकार के पैरोकार को क्यों नहीं यह सब दिखाई देता है ?
     कुछ सनसनी बटोरने के लिए कश्मीर में आत्म निर्णय की बातें करने वाली अरुंधती क्या इन पाकिस्तानी हिन्दुओं के लिए आत्म निर्णय की बात कर सकती है ? अच्छा हो कि वे और उनके जैसे लोग बड़े बड़े स्थानों पर ज़बान हिलाने के स्थान पर वास्तव में ज़मीनी हक़ीक़त को पहचानने की कोशिश करें जिससे केवल सनसनी न फैले. जिस कश्मीर में वे आत्म निर्णय की बातें करती हैं वहां पर कर्फ्यू लगाकर नमाज़ नहीं पढ़ी जाती है और शिया सुन्नियों की मस्जिदों पर एक दूसरे फिरके से जुड़े सिरफिरे लोगों से नमाज़ियों को बचाने के लिए सुरक्षा बल तैनात नहीं करने पड़ते हैं. भारत ने आज तक अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए जो कुछ भी किया है वैसा वास्तव में दुनिया में किसी अन्य देश ने नहीं किया है. अभी हाल ही में बिहार शरीफ़ में बोलते हुए कश्मीरी नेता और केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला ने भी इस बात को माना कि मुसलमान केवल अपने कारण से ही पिछड़े हुए हैं और आने वाले समय में इनको आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ सीखना होगा. अगर भारत जैसे देश में भी कोई आगे नहीं बढ़ पाता है तो पूरी दुनिया में उसे कोई भी आगे नहीं बढ़ा सकता है क्योंकि यहाँ पर वास्तव में ठोस काम किये जाने की परंपरा रही है.   
      वैसे भी जब इस्लाम के नाम पर बने पाक में आज मुसलमान ही सुरक्षित नहीं हैं तो वहां पर अल्पसंख्यकों की हालत की चिंता आख़िर किसे होगी ? आख़िर ऐसा क्या है जो पाक को आज भी उसी मानसिकता में जीने के लिए दबाव में बनाये रखता है जिस कारण से उसका जन्म हुआ था ? जिन्ना ने जिस पाकिस्तान की कल्पना की थी आज का पाकिस्तान उसके मुकाबले कहीं छूट सा गया है क्योंकि उन्होंने एक प्रगतिशील सामजिक और सच्चे राष्ट्र के बारे में सोचा था पर जिस आन्दोलन के कारण ही लाखों लोगों को बेघर होना पड़ा हो और उसके घाव आज भी मानवता को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हों तो पीड़ितों के दिल से निकली बद दुआ आख़िर उस राष्ट्र को कैसे सुख से जीने देगी ? आज भी पूरी दुनिया में इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने का काम केवल पाक द्वारा ही किया जा रहा है और इस स्थिति में पाक कोई बदलाव चाहता भी नहीं है क्योंकि पूरी दुनिया से इस्लाम को खतरे में बताकर चंदे की उगाही करने वाला पाक तब आख़िर कैसे जी पायेगा जिसके पास आज जीने के लिए आधारभूत सुविधाएँ भी नहीं बन पाई हैं ? अब यह तय करना आम मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वह कब तक इन चंद लोगों के चंगुल में फंसा रहना चाहता है.       

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