देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जिस तरह से अन्ना हजारे और योगगुरु रामदेव ने एक साथ आकर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई का ऐलान किया है उससे आने वाले समय में केंद्र की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं क्योंकि जिस तरह से आम आदमी भ्रष्टाचार से परेशान है और उससे निज़ात मिलने की उसे कोई सम्भावना भी नहीं दिखाई देती है तो उस स्थिति में वह ऐसे किसी भी कदम का समर्थन ही करना चाहता है जो कहीं न कहीं से भ्रष्टाचार पर चोट करता है. क्या कारण है कि शुरू में जिस तेज़ी के साथ अन्ना के आन्दोलन को समर्थन मिला था उसकी धार वो नहीं दिखाई दे रही है आज इस बात पर अन्ना को भी विचार करने की ज़रुरत है क्योंकि ऐसे जनांदोलन किसी दबाव के साथ बातचीत के रास्ते खुले रखने के साथ ही अपनी चमक बनाये रख पाते हैं. आज भी देश में ऐसा सोचने वालों की कमी नहीं है कि केवल जनलोकपाल के आने से ही सारी समस्याओं का समाधान हो जाने वाला है ? पर क्या जनलोकपाल के पास के ऐसा कुछ होने से ही सब ठीक हो जाने वाला है ? आख़िर कब तक हम इस तरह की ग़लतफ़हमियों में ही जीवित रहना चाहते हैं कि अन्ना के आन्दोलन से ही सब ठीक हो जाने वाला है ? केंद्र सरकार को इस मामले में पहल करते हुए इस लड़ाई को कांग्रेस बनाम भ्रष्टाचार से आगे बढ़ाकर भ्रष्टाचार बनाम देश करना ही होगा क्योंकि जब तक पूरे देश का राजनैतिक तंत्र इसके बारे में सोचना शुरू नहीं करेगा तब तक कुछ भी ठीक नहीं होगा.
भ्रष्टाचार देश के लिए सबसे बड़ी समस्या है पर जब भी कुछ करना होता है तो हम सभी केवल अन्ना से ही आशा लगाकर बैठ जाते हैं कि अब वे ही कुछ ऐसा कर देंगें जो देश से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने मेंं सफल होगा ? क्या कारण है कि देश में हर व्यक्ति भ्रष्टाचार से लड़ने की बात तो करता है पर जब कुछ करने का समय आता है तो वह अन्ना की तरफ देखने लगता है ? अन्ना लड़ाई लड़कर देश को कड़ा कानून दिलवा सकते हैं पर वास्तविकता आज यह है कि अन्ना के नाम पर भ्रष्टाचार किस हद तक संस्थागत और बेशर्म रूप लेता जा रहा है यह कोई देखकर भी देखना नहीं चाहता है. पहले जो काम १०० रूपये की घूस से हो जाया करते थे अब वही काम कर्मचारियों द्वारा ५०० रूपये में किये जाने लगे हैं और पूछे जाने पर बिना किसी शर्म के ये यह कहने से नहीं चूकते हैं कि यह अन्ना टैक्स है क्योंकि अब हर भ्रष्टाचार निग़ाह में आने पर पहले से अधिक भेंट चढ़ानी पड़ती है ? क्या अन्ना ने इस तरह के जनलोकपाल की कामना की थी या देश से इस तरह से ही भ्रष्टाचार मिटाया जा सकता है ? केवल कानून से ही अगर सब ठीक हो जाता तो अब तक हम कब के इससे मुक्ति पा चुके होते पर अभी भी हम नागरिक ही देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं जिससे इस भ्रष्टाचार ने समाज में एक स्थान बना लिया है. ऐसी स्थिति में जनता के पास और क्या बचता है कि वह अपने अनुसार कुछ कर सके ?
केंद्र में संप्रग सरकार की मुख्य घटक दल कांग्रेस को अब पहले पार्टी स्तर पर अन्ना को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि वे किस हद तक कनून के दायरे में रहकर अन्ना की बातें मांग सकते हैं और अपने स्तर पर इसे लागू करवाने के लिए उन्हें कांग्रेस शासित राज्यों में इसे लागू करवाने के समयबद्ध प्रयास करने चाहिए क्योंकि जब तक कांग्रेस इस मामले में पहल नहीं करेगी तब तक कुछ भी नहीं हो सकता है. साथ ही कांग्रेस को यह भी स्पष्ट करना होगा कि बाक़ी दलों को संसद के अन्दर किसी एक समाधान पर पहुँचाने के लिए अन्ना की टीम अन्य दलों पर भी इसी तरह का दबाव बनाने का प्रयास करे क्योंकि जब अन्ना के मंच से बोलने की बात होती है तो सभी आदर्शवादी हो जाते हैं पर जब संसद में कानून पर चर्चा होती है तो इन्हीं दलों को अन्ना का आन्दोलन संसद के काम काज में दख़ल लगने लगता है ? कांग्रेस के पास आज इतनी इच्छा शक्ति और इतना बहुमत नहीं है कि वह अपने दम पर ऐसा कोई भी विधेयक पारित करवा सके और उसकी इस कमज़ोरी का लाभ विपक्षी दल उठाने में नहीं चूकने वाले हैं. ऐसी स्थिति में कांग्रेस को अपनी स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए और संसद में और उसके बाहर इस मुद्दे को अपनी तरफ़ से उठाना चाहिए जिससे अन्ना के साथ राजनैतिक दलों पर भी इस बात के लिए दबाव बन सके कि वे किसी निर्णय पर पहुँचने की तरफ़ क़दम बढ़ाएं क्योंकि सभी पक्षों के पाने रुख़ पर अड़े रहने से समस्या का कोई समाधान नहीं निकलने वाला है. सड़क के आन्दोलन से जागरूकता लायी जा सकती है पर कानून बातचीत के माध्यम से ही बन सकता है और यह पूरा देश जल्दी ही एक बार फिर से समझ ले तो अच्छा ही होगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भ्रष्टाचार देश के लिए सबसे बड़ी समस्या है पर जब भी कुछ करना होता है तो हम सभी केवल अन्ना से ही आशा लगाकर बैठ जाते हैं कि अब वे ही कुछ ऐसा कर देंगें जो देश से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने मेंं सफल होगा ? क्या कारण है कि देश में हर व्यक्ति भ्रष्टाचार से लड़ने की बात तो करता है पर जब कुछ करने का समय आता है तो वह अन्ना की तरफ देखने लगता है ? अन्ना लड़ाई लड़कर देश को कड़ा कानून दिलवा सकते हैं पर वास्तविकता आज यह है कि अन्ना के नाम पर भ्रष्टाचार किस हद तक संस्थागत और बेशर्म रूप लेता जा रहा है यह कोई देखकर भी देखना नहीं चाहता है. पहले जो काम १०० रूपये की घूस से हो जाया करते थे अब वही काम कर्मचारियों द्वारा ५०० रूपये में किये जाने लगे हैं और पूछे जाने पर बिना किसी शर्म के ये यह कहने से नहीं चूकते हैं कि यह अन्ना टैक्स है क्योंकि अब हर भ्रष्टाचार निग़ाह में आने पर पहले से अधिक भेंट चढ़ानी पड़ती है ? क्या अन्ना ने इस तरह के जनलोकपाल की कामना की थी या देश से इस तरह से ही भ्रष्टाचार मिटाया जा सकता है ? केवल कानून से ही अगर सब ठीक हो जाता तो अब तक हम कब के इससे मुक्ति पा चुके होते पर अभी भी हम नागरिक ही देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं जिससे इस भ्रष्टाचार ने समाज में एक स्थान बना लिया है. ऐसी स्थिति में जनता के पास और क्या बचता है कि वह अपने अनुसार कुछ कर सके ?
केंद्र में संप्रग सरकार की मुख्य घटक दल कांग्रेस को अब पहले पार्टी स्तर पर अन्ना को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि वे किस हद तक कनून के दायरे में रहकर अन्ना की बातें मांग सकते हैं और अपने स्तर पर इसे लागू करवाने के लिए उन्हें कांग्रेस शासित राज्यों में इसे लागू करवाने के समयबद्ध प्रयास करने चाहिए क्योंकि जब तक कांग्रेस इस मामले में पहल नहीं करेगी तब तक कुछ भी नहीं हो सकता है. साथ ही कांग्रेस को यह भी स्पष्ट करना होगा कि बाक़ी दलों को संसद के अन्दर किसी एक समाधान पर पहुँचाने के लिए अन्ना की टीम अन्य दलों पर भी इसी तरह का दबाव बनाने का प्रयास करे क्योंकि जब अन्ना के मंच से बोलने की बात होती है तो सभी आदर्शवादी हो जाते हैं पर जब संसद में कानून पर चर्चा होती है तो इन्हीं दलों को अन्ना का आन्दोलन संसद के काम काज में दख़ल लगने लगता है ? कांग्रेस के पास आज इतनी इच्छा शक्ति और इतना बहुमत नहीं है कि वह अपने दम पर ऐसा कोई भी विधेयक पारित करवा सके और उसकी इस कमज़ोरी का लाभ विपक्षी दल उठाने में नहीं चूकने वाले हैं. ऐसी स्थिति में कांग्रेस को अपनी स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए और संसद में और उसके बाहर इस मुद्दे को अपनी तरफ़ से उठाना चाहिए जिससे अन्ना के साथ राजनैतिक दलों पर भी इस बात के लिए दबाव बन सके कि वे किसी निर्णय पर पहुँचने की तरफ़ क़दम बढ़ाएं क्योंकि सभी पक्षों के पाने रुख़ पर अड़े रहने से समस्या का कोई समाधान नहीं निकलने वाला है. सड़क के आन्दोलन से जागरूकता लायी जा सकती है पर कानून बातचीत के माध्यम से ही बन सकता है और यह पूरा देश जल्दी ही एक बार फिर से समझ ले तो अच्छा ही होगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें