मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 27 मई 2012

यू पी स्थानीय निकाय चुनाव

     आख़िर में लम्बी प्रतीक्षा के बाद यूपी में स्थानीय निकाय चुनावों की घोषणा हो ही गयी है और जिस तरह से शहरी क्षेत्रों में इन चुनावों को लेकर उत्साह का माहौल रहा करता है उस स्थिति में आने वाली जून की गर्मी में चुनाव की तपिश सभी को अच्छी तरह से महसूस होने वाली है. सपा हमेशा से ही इन चुनावों को समय पर करवाने की पैरवी करती रहती है और सरकार बनने के दो माह के भीतर ही इन चुनावों को लेकर उसने जिस तरह से अपनी प्रतिबद्धता दिखाई वह उसकी नीति के अनुरूप ही है. जिस तरह से कार्यकर्ताओं में इन चुनावों को लड़ने का उत्साह होता है उसे देखते हुए ही सपा ने इस चुनाव को बिना पार्टी सिम्बल और झंडे के लड़ने का निर्णय लिया है और सरकार में होने के कारण कार्यकर्ताओं में सभासद बनने की चाह भी सपा को भारी पड़ सकती है इससे बचने के लिए ही वह सभी के साथ हो ली है. इस बारे में सपा का यह मानना है कि कार्यकर्ताओं के उत्साह के कारण सभी को सिम्बल दे पाना आसान नहीं होगा और मोहल्ले स्तर पर इस तरह से गुटबाज़ी होने से आने वाले लोकसभा चुनावों तक पार्टी के कार्यकर्ताओं में बंटवारा दिखाई दे सकता है.
        इस चुनाव में सबसे अप्रत्याशित घोषणा बसपा की तरफ से हुई है उसने अपने पहले के स्टैंड को पलटते हुए अपने कार्यकर्ताओं को इन चुनावों में भाग लेने की अनुमति दे दी है जबकि अभी तक माया ने यह कह रखा था कि किसी भी कार्यकर्ता को ये चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी ? अब जब अनुमति इस शर्त के साथ है कि पार्टी के झंडे सिम्बल इस्तेमाल नहीं किये जायेंगे उससे बसपा कार्यकर्ता पहली बार इन चुनावों में अपने स्तर से उतर सकेंगें. माया का यह क़दम प्रशंसा के योग्य है क्योंकि जब लोकतंत्र की बात हो तो आख़िर किस तरह से किसी चुनाव में भाग लेने से अपने कार्यकर्ताओं को रोक कर संविधान की मूल भावना को बचाए रखा जा सकता है ? शहरी क्षेत्र में लोकतंत्र की सबसे छोटी इस इकाई के चुनाव से बाहर रहकर कोई भी पार्टी आख़िर देश में लोकतंत्र को किस तरह से मज़बूत करने का काम कर सकती है और जिस तरह से बसपा के पास समर्पित और अनुशासित कार्यकर्ताओं की अच्छी संख्या है उसे देखते हुए उसे यह चुनाव अपने सिम्बल पर लड़ने के लिए पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए क्योंकि जब वह विधान सभा और लोकसभा चुनाव इन कार्यकर्ताओं के भरोसे लड़ सकती है तो उन्हें भी लोकतंत्र के मूल पाठ को पढ़ाने की कोशिश तो पार्टी के स्तर से होनी ही चाहिए.
        शहरी क्षेत्र में अच्छी पकड़ होने के कारण भाजपा ये चुनाव सिम्बल पर ही लड़ने जा रही है जिससे कुछ नगर निगमों पर कब्ज़ा करके वह अपनी शहरी मतदाताओं में अच्छी पैठ को साबित करना चाहती है. जिस तरह से लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा की कमज़ोर तैयारियां सामने आ रही हैं उससे उसके लिए ये चुनाव जान फूंकने वाले साबित हो सकते हैं. कांग्रेस के पास वैसे तो पूरे प्रदेश में सिम्बल पर चुनाव लड़ने वालों की कमी ही है फिर भी नगर निगमों में वह भी अपने स्थानीय नेताओं के भरोसे कुछ सीटें जीतने की कोशिश करती नज़र आएगी. इन चुनावों में जहाँ खुले तौर पर मैदान में होने के कारण भाजपा और कांग्रेस सबके सामने होंगें वहीँ सपा बसपा निर्दलीयों के जीतने पर उन्हें अपना समर्थक बताने से नहीं चूकने वाली हैं ? दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के लिए ये चुनाव अपने को साबित करने के लिए अच्छे भी साबित हो सकते हैं क्योंकि यहाँ की जीत आने वाले समय में चुनावों में कार्यकर्ताओं के साथ नेताओं में भी जोश भरने का काम कर सकती हैं.                        
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