मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 30 मई 2012

टीम अन्ना के सुर

            भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई और मज़बूत लोकपाल लाये जाने की वकालत कर रही टीम अन्ना में जिस तरह से विभिन्न विषयों पर अनावश्यक रूप से विवादों को खड़ा करने की एक आदत सी बनती जा रही है उसकी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जिस स्तर पर यह टीम अपनी लड़ाई को आगे लेकर जा रही है वैसे में इसके ज़िम्मेदार सदस्यों के लिए किसी भी विषय पर कोई बयान देने से पहले टीम स्तर पर विचार तो कर ही लेना चाहिए क्योंकि इधर कुछ समय से जिस तरह से कोई भी सदस्य कुछ भी कह देता है और बाकी के अन्य सदस्य अपनी अपनी राय अलग से ज़ाहिर करने लगते हैं उससे ऐसा लगता है कि टीम में बोलने से पहले आपस में सलाह नहीं की जाती है. यह सही है कि जब किसी भी संगठन को लोकतांत्रिक ढंग से चलाने के प्रयास किये जायेंगें और वहां पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी होगी तो इस तरह के मतभेद भी दिखाई ही देंगें पर इनका स्तर महत्वपूर्ण मसलों पर इतना अलग होगा यह टीम अन्ना से अपेक्षित नहीं है. देश की जनता ने टीम की इस लड़ाई में जिस तरह से इनका साथ दिया है वह आज़ाद भारत के इतिहास में अभूतपूर्व है फिर भी इस विषय की गंभीरता को समझने में कहीं न कहीं तो टी से कुछ चूक अवश्य ही हो रही है.
     अभी हाल ही में जिस तरह से सीधे पीएम को निशाने में लेने के कारण आये बयान से पहले खुद अन्ना ने अपने विचार अलग से प्रस्तुत किये और अपनी टीम के बान के विपरीत जाकर पीएम की तारीफ़ की और अब जस्टिस हेगड़े ने जिस तरह से अपनी बातों को स्पष्ट किया है उससे यही लगता है कि टीम में कुछ सदस्य अपने को अधिक प्रभावी दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और वे टीम स्तर पर किये जाने वाले मूल व्यवहार और सामान्य शिष्टाचार को भी भूल रहे हैं. किसी संगठन की धार उसके मूल नियम ही होते हैं और इधर कुछ समय से टीम अन्ना से जिस तरह के सुर निकलते दिकाई दे रहे हैं वे कहीं न कहीं से इस आन्दोलन की धार को कम ही कर रहे हैं. जब सञ्चालन समिति के लोग या ख़ुद अन्ना भी अपनी टीम के बयानों से इस तरह से किनारा करने लगेंगें तो टीम के बयानों का क्या महत्त्व रह जायेगा ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि टीम के कुछ सदस्य अब बिना कुछ सोचे टीम को अपनी व्यक्तिगत भड़ास निकलने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं जिससे उन्हें शायद कुछ हासिल हो जाये पर देश के लिए चलाये जा रहे इस महत्वपूर आन्दोलन की धार पर इसका असर अवश्य ही पड़ने वाला है.
      अन्ना ने अपने सार्वजनिक जीवन में जिस तरह से सादगी और सेवा को प्राथमिकता दे रखी है दूसरों के लिए उसे अपना पाना बहुत मुश्किल हो रहा है क्योंकि इस टीम में सभी क्षेत्रों से आये हुए लोग शामिल हैं और आने वाले समय में अन्ना की सादगी इन पर और भी भारी पड़ने वाली है क्योंकि कुछ लोगों ने यह मान लिया था कि जिस तेज़ी से सरकार और अन्ना के बीच बात चली थी उस स्थिति में जल्दी ही कोई निर्णय हो जायेगा पर उसमें अवरोध आ जाने के बाद से इन लोगों के लिए अब उस तरह का दिखावा करना मुश्किल हो रहा है जो अपने व्यवहार से हटकर अपने को दिखने की कोशिशों में लगे हुए थे. अब समय है कि इस तरह के तत्वों को देश के हित में कुछ भी बोलने से पहले नियमित मीटिंग और विचार विमर्श करने की आदत बना लेनी चाहिए क्योंकि किसी एक कार्यालय को चलाना एक बात है और देश के सामने सार्वजनिक रूप से किसी मुद्दे पर एक मत होना दूसरी बात है. सरकार पर दबाव बनाने में कारगर हुई टीम अन्ना को जो लाभ मिला हुआ है वह उसके इस तरह की बयानबाज़ी से खो सकता है इसलिए अभी तक जो कुछ भी हुआ है उससे सीख लेते हुए आगे विचार विमर्श को प्राथमिकता देनी चाहिए जिससे महत्वपूर्ण लोगों की राय और समर्थन टीम के साथ बना रहे.     
 


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