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गुरुवार, 31 मई 2012

मोबाइल कम्पनियों की मनमानी

               देश में मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी लागू होने के बाद ट्राई ने एक सर्वेक्षण कार्य जिससे यह तस्वीर उभर कर सामने आई कि उपभोक्ताओं को जिस कानून के तहत अपने नंबर को बदलने की सुविधा दी गयी उसकी एयरटेल, आइडिया और लूप द्वारा खुले आम धज्जियाँ उड़ाई गयी और उपभोक्ताओं को नंबर बदलने ही नहीं दिया गया. इस तरह की शिकायत मिलने पर ट्राई ने इन तीनों कम्पनियों को नोटिस भी जरी किया पर इन्होने ने नियामक आयोग के नोटिस का जवाब भी देना मुनासिब नहीं समझा जिससे मजबूरी में ट्राई ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया पर जब कम्पनियों को लगा कि उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही संभव है तो उन्होंने उन उपभोक्ताओं को नंबर बदलने की सुविधा दे दी और इस बात का हलफ़नामा भी दे दिया. इस तरह की घटनाओं से जहाँ एक तरफ यह पता चलता है कि ये कम्पनियां किस तरह से मनमानी करने पर तुली हुई हैं जबकि उपभोक्ताओं को इस बारे में बहुत सारे अधिकार दिए गए हैं पर ये कम्पनियां अपने लाभ के सामने किसी की सुविधा या असुविधा को नहीं देखती हैं ?
        यहाँ पर सवाल किसी के नंबर बदलने या नहीं बदलने का नहीं है क्योंकि जब कानून उपभोक्ताओं को इस बात की अनुमति देता है तो कम्पनियां उपभोक्ताओं को उनके इस अधिकार से कैसे वंचित कर सकती हैं ? इस पूरे प्रकरण के पीछे कहीं न कहीं केवल के बात ही काम करती है कि किसी भी तरह से किसी भी उपभोक्ता को अपने से दूर न होने दिया जाये जिससे कम्पनी अपने प्रोफाइल में यह भी दिखा सके कि उसके सबसे कम उपभोक्ताओं ने सेवाएं बदली है और इस बात का दुष्प्रचार वे नए ग्राहकों को जोड़ने के लिए कर सकते हैं जो कि पूरी तरह से अपनी बात को ग़लत तरीके से रखने का अनुचित तरीका है. अभी भी देश में औद्योगिक घरानों में पता नहीं क्यों वह ईमानदारी नहीं आ पाई है जो उन्हें बरतनी चाहिए इतनी बड़ी कम्पनियां और प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने भी इस तरह के घटिया हथकंडों में लगे हुए दिखाई देने से देश के उद्योगपतियों की मंशा ही ज़ाहिर होती है. यह सही है कि सभी व्यापर करने के लिए इस क्षेत्र में आये हुए हैं पर इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता है कि मनमानी पर उतर आया जाये ?
     यह सब देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ होता है क्योंकि विदेशी रेटिंग कम्पनियां इन देशी औद्योगिक घरानों के प्रदर्शन के बाद ही उनकी और देश की रेटिंग तय करते हैं. हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि यह रेटिंग भी पूरी तरह से सही ही होती है फिर भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे ही कम्पनी और देश की आर्थिक स्थिति का आंकलन किया जाता है. ऐसी स्थिति में कहीं न कहीं से इस बात पर सभी को ध्यान देना ही चाहिए और इस मामले में कानूनी प्रक्रिया को तेज़ी से चलाने का प्रावधान होना चाहिए जिससे समय रहते इन कम्पनियों पर कानून के अनुपालन के लिए दबाव डाला जा सके. लगता है अभी भी हमारे उद्योगपति इस मामले में इतने परिपक्व नहीं हुए हैं कि वे गुणवत्ता में सुधार के बारे में अपने स्तर से प्रयास करने के बाद खुद सुधार को अपनी कम्पनी से लागू करने के बारे में विचार करना शुरू कर सकें ? पर उनके इस तरह के हथकंडों से उपभोक्ताओं को असुविधा होती है और देश की प्रतिष्ठा पर आंच भी आती है.      
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