मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 25 जुलाई 2012

उद्योग और पीएम

                टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा के बाद जिस तरह से विप्रो के चेयरमैन अज़ीम प्रेमजी ने भी पीएम मनमोहन सिंह को कुछ और समय देने की वकालत की है उससे यही लगता है कि अभी भी देश के उद्योग जगत का भरोसा पीएम पर कायम है भले ही अन्य लोगों और नेताओं की उनके बारे में कैसी भी राय हो ? यह समर्थन इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह देश के सबसे प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण औद्योगिक घरानों के प्रमुखों की तरफ से आया है. अभी तक यही माना जा रहा है कि सरकार कुछ करना ही नहीं चाह रही है पर ऐसा नहीं है देश की राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए सरकार के लिए आर्थिक सुधारों को लागू कर पाना कठिन हो रहा है. देश ने जब नरसिम्हाराव के समय में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नयी आर्थिक दिशा अपनाई थी तब भी देश के राजनैतिक दलों ने उन्हें देश को बेच लेने का आरोपी बनाया था पर उस परिवर्तन की वास्तविकता आज पूरे देश में दिखाई दे रही है जिसने पूरे देश में आर्थिक तेज़ी की एक लहर दौड़ा दी थी.
           मनमोहन सिंह किसी महत्वकांक्षा के तहत इस पद पर नहीं हैं और यह देश के लिए अच्छी बात है कि देश के लिए केवल नीतियों का निर्धारण करने का काम करने वाले प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह पहली बार सामने हैं. अभी तक राजनैतिक रूप से सक्रिय लोग ही इस पद पर पहुँचते रहे हैं भले ही वे बहुमत हासिल करने वाले नेता हों या जुगाड़ से देश को चलने की कोशिश करने वाले लोग. पर जब देश को विश्व के साथ अपने में बदलाव करने की ज़रुरत है तो कुछ लोग केवल सरकार में बैठे दल को अच्छे क़दमों का लाभ न मिल जाये सिफ इसलिए ही अच्छी नीतियों का अनावश्यक विरोध कर रहे हैं जबकि देश के पास से इन नीतियों का लागू करने का अवसर निकलता जा रहा है. नीतियां देश के हित की होनी चाहिए और देश की आर्थिक और सामजिक प्रगति के लिए आवश्यक परिवर्तन समय रहते ही कर लिए जाने चाहिए जिससे किसी समय यह महसूस न हो कि हम इस अवसर पर चूक गए और चुके हुए समय को दोबारा हासिल करने के अवसर नहीं मिला करते हैं.
    आज देश में राजनीति का यह स्तर है कि सार्वजनिक क्षेत्र में पूँजी विनिवेश का खुला विरोध करने वाली भाजपा ने ही तेज़ी दिखाते हुए अटल बिहारी के समय में बहुत सारी कम्पनियों और निगमों में सरकारी अंश को बेच दिया अगर पूँजी विनिवेश इतना ही ख़राब निर्णय था तो भाजपा को कम से कम उस पर अमल तो नहीं करना चाहिए था और अपने शासन काल में किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र की किसी भी कम्पनी में सरकारी हिस्सेदारी को कम नहीं करना चाहिए था ? जब नीतियां बनाए जाने की बात हो तब भाजपा सदन से सड़कों तक प्रदर्शन करती है पर जब वह सत्ता में थी तो उसने ही इन नीतियों का जमकर लाभ उठाया ? यहाँ पर भाजपा की बात ही प्रासंगिक है क्योंकि आने वाले समय में भाजपा या कांग्रेस ही सत्ता के मुख्य भागीदार रहने वाले हैं और आने वाली किसी भी समस्या के लिए उन्हें जवाबदेह होना ही पड़ेगा इसलिए देश के लिए नीतियां कैसी होनी चाहिए यह एक बार में निर्धारित किया जाना चाहिए और इसके लिए आर्थिक मामलों की संसदीय समिति को आगे करना चाहिए जिससे वहां पर गहन विचार किया जा सके और नीतियों को समय के अनुसार बदलने का रास्ता भी खुला रखा जा सके. 
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. इन कथित अर्थ शास्त्री मनमोहन सिंह को देश ने कीमती 9 साल दे दिए , रतन टाटा जी कौनसा समय देने की बात कर रहे है ,,,, महंगाई ने गरीब आदमी की कमर तोड़ दी है ... आपको परिवर्तन कहाँ दिखाई दे रहा है, बुद्दिजीवी होने का मतलब ये नहीं होता कि राजा, कलमाड़ी देश खा जाये और आप ईमानदार बनकर दिखाए. देश जाये भाड़ में आप सोनिया राहुल क़ी आर्थिक स्थिति मजबूत करने में जुटे रहे, आप अपने लेख में अटल जी का भी जिक्र कर रहे हो , चलो 9 साल पहले अटल जी ने देश को तबाह कर दिया था , सोनिया के मनमोहन कथित अर्थ शास्त्री के लिए 9 साल भी कम थे क्या ?? अब देश माफ़ करने वाला नहीं है ..... आने वाले लोकसभा चुनाव में सोनिया के सब चमचे हारने वाले है ......

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यहाँ पर बात केवल नीतियों की है और किसी भी दूरगामी नीति का परिणाम तुरंत नहीं दिखाई देता है. राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री रहते हुए जो कदम उठाये गए थे आज देश उन्हीं के भरोसे आईटी में आगे है. समय के हिसाब से कई बार परिस्थितियां करवट लेती हैं. भाजपा का दुर्भाग्य है कि उसके पास आज प्रमोद महाजन जैसे नेता नहीं है और अटल की कब तक चलती ? देश के साथ बदलने वालों को ही आगे बढ़ने के अवसर मिलते हैं. दूसरे की नाक़ामी का इंतज़ार करना अच्छा नहीं है भाजपा को खुद ही आगे बढ़कर नीतियों के निर्धारण में भाग लेना चाहिए क्या देश आज केवल सोनिया मनमोहन का ही है ? कल को किसी अन्य दल की सरकार यहाँ नहीं बनने वाली है ? अच्छा हो कि बच्चों जैसी हरकतें बंद करके सभी दल देश केलिए कुछ सोचना शुरू कर दें. रतन टाटा और अजीम प्रेमजी नेता नहीं है उन्हें देश की फिक्र है और वे अपने पदों को स्वेच्छा से छोड़ने का जज़्बा रखते हैं अगर वे कुछ कह रहे हैं तो वह सही ही होगा....

      हटाएं