मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

कसाब और राजनीति

            मुंबई में २६/११ हमले के एकमात्र जिंदा पकडे गए आतंकी अजमल कसाब को फाँसी की सजा देने के निचली अदालतों के फ़ैसले की पुष्टि करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उस मृत्युदंड देने को सही ठहराया है. जिस तरह से भारत में कानूनी प्रक्रिया में काफी लम्बा समय लगता है उसे देखते हुए कसाब के मामले में इसे न्यायिक तेज़ी भी कहा जा सकता है. कोर्ट ने विभिन्न तथ्यों और गवाहों के बयानों के बाद कसाब की सज़ा में कोई नरमी बरतने का संदेश कहीं से भी नहीं दिया है क्योंकि जिस तरह से पाक में प्रशिक्षित आतंकियों ने सुनियोजित तरीके से भारत की आर्थिक राजधानी पर हमला करके निर्दोषों का खून बहाया उसके लिए यह सज़ा बहुत कम ही है. देश में हर मसले पर राजनीति करने वाले दलों और नेताओं को इससे एक बार फिर से अपनी राजनीति चमकाने का अवसर मिल गया है. उन नामों की तरफ़ से भी कसाब को अविलम्ब फाँसी पर लटकाने की मांग की जाने लगी है जो हर मसले पर कुछ राजनीति ढूंढ लेते हैं. देश की सुरक्षा और कुछ अन्य मुद्दों को इस तरह की घटिया राजनीति से अलग ही रखने में सभी राजनैतिक दलों की भलाई है क्योंकि अगर इस तरह के मसले पर जनता को क्रोध आ गया तो नेताओं के लिए उसे संभालना मुश्किल हो जायेगा.
            कुछ अतिउत्साही लोग कसाब को अविलम्ब फाँसी पर लटकाने की मांग कर रहे हैं जो शायद कानून का सम्मान करना नहीं जानते हैं क्योंकि देश का कानून जल्दबाज़ी में किसी निर्दोष को सज़ा देने से बचने के कारण ही इतना लचीला है कि कई बार उसका खामियाज़ा भी देश को भुगतना पड़ा है. देश के कानून के अनुसार कसाब के मामले में भी उसे सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका के लिए ३० दिन का समय मिलने वाला है इतने समय में वह अपनी कभी भी अपनी याचिका दायर कर सकता है हालांकि उस पुनर्विचार याचिका में उसे कुछ भी हासिल नहीं होगा क्योंकि तकनीकी ख़ामी साबित हो जाने पर इस तरह की याचिकाओं पर कोर्ट द्वारा विचार किया जाता है पर यह तो आतंकी हमला था और पूरी दुनिया ने कसाब को हिरासत में लिए जाते हुए देखा था. इसके बाद कसाब राष्ट्रपति के यहाँ दया की याचिका दे सकता है जिसमें उसका १३वाँ स्थान होगा फिर भी मामले की गंभीरता को देखते हुए गृह मंत्रालय कसाब के मामले में पूरी तेज़ी दिखायेगा जिसका अंदाज़ा गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के बयान से लगता है क्योंकि २०१४ के चुनावों में कांग्रेस इस आरोप के साथ जनता के सामने नहीं जाना चाहेगी कि उसकी वजह से कसाब जिन्दा है ?
             इस समय देश के माहौल को समझते हुए सरकार को संसद पर आतंकी हमले के दोषी अफज़ल को भी लगे हाथ फाँसी पर लटकाने की तैयारियां करनी चाहिए क्योंकि अब यह सही समय है कि देश के गद्दारों को बिना किसी देरी के उनके किये की सज़ा दी जानी चाहिए और इस बात पर पूरा देश एकमत भी है. अब इस बात पर पुनर्विचार किये जाने और कानून में संशोधन की आवश्यकता है कि क्या देश प्रति युद्ध छेड़ने की बातें करने और देश पर आतंकी हमला करने वाले आतंकियों के मामले में राष्ट्रपति के यहाँ जाने वाली किसी भी याचिका दशा में ३० दिनों से अधिक लंबित नहीं रहनी चाहिए क्योंकि देश के अन्य अपराधियों और आतंकियों के मामलों को अलग अलग करने की अब बहुत आवश्यकता है. आज पूरी दुनिया में आतंकियों के लिए अलग से कानून बनाये गए हैं जिससे उन्हें तेज़ी से सज़ा दिलवाई जा सके. केवल कानून का सहारा लेकर अन्य बातों को प्राथमिकता देने की राजनैतिक कोशिशों पर अब विराम लगाया जाना चाहिए और किसी भी दल को अपने वोट बैंक से आगे जाकर इस तरह के मसलों पर केवल देश के बारे में काम करने के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि एक बार इस तरह से विचाराधीन क़ैदी के रूप में अज़हर को छोड़कर भारत अपनी कमजोरी साबित कर चुका है और अब बार बार वह ग़लती दोहराए जाने की आवश्यकता नहीं है.            
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