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गुरुवार, 14 मार्च 2013

क्रिकेट, आतंक और कश्मीर

                          श्रीनगर में पुलिस पब्लिक स्कूल बेमिना में क्रिकेट खेलते हुए जवानों पर जिस तरह से आतंकियों ने क्रिकेट खिलाडियों के वेश और क्रिकेट किट में हथियारों को ले जाकर हमला किया है वह आने वाले समय में घाटी में क्रिकेट खिलाड़ियों के भविष्य पर भी प्रभाव डाल सकता है यह दूसरा मौक़ा है जब आतंकियों ने क्रिकेट का इस्तेमाल हमला करने में किया है इससे पहले उन्होंने क्रिकेट किट का इस्तेमाल केवल हथियारों को सुरक्षित के स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए किया था पर इस बार बदली हुई रणनीति के तहत उन्होंने क्रिकेट खिलाड़ियों की ड्रेस और किट का सहारा लेकर एक सुनियोजित हमला किया ? जिस तरह से घाटी में सुरक्षा बलों ने काफी हद तक युवकों का भरोसा जीत कर उन्हें देश की मुख्य धरा में शामिल करने में सफलता पायी है उसके बाद से ही आतंकियों को यह लगने लगा है कि जब तक नए लड़कों को आतंकी कैडर में शामिल नहीं किया जायेगा तब तक धर्म के नाम पर यह झूठी लड़ाई लम्बे समय तक नहीं लड़ी जा सकती है ? आतंकियों की क्रिकेट को सामने कर जिस तरह से हमला करने की रणनीति अपनाई जा रही है उसकी विश्व भर में किसी क्रिकेट खिलाड़ी या क्रिकेट संस्था ने निंदा तक नहीं की है जबकि घाटी में क्रिकेट पर इससे बड़ा ग्रहण भी लग सकता है ?
                                घाटी में आतंकियों द्वारा रोज़ ही बुलाई जा रही आम हड़ताल के समय वहां के युवा अब पत्थर फेंकने के स्थान पर आराम से अपनी गली मोहल्लों में क्रिकेट खेलते रहते हैं जिससे जहाँ एक तरफ युवा भी सुरक्षित रहते हैं वहीं दूसरी तरफ़ सुरक्षा बलों के लिए भी यह राहत की बात होती है कि युवा शक्ति कम से कम आतंकियों के हाथों का खिलौना बनकर अनावश्यक विद्रोह करना नहीं सीख रही है. क्रिकेट के ऐसे दुरूपयोग पर आज कोई नहीं बोल रहा है पर यदि कभी कोई आम बच्चा आतंकियों की इस रणनीति का शिकार बन जायेगा तो यही कश्मीरी उसकी लाश को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन करेंगें और पत्थर फेंकने का काम करेंगे ? इस पूरे मसले में जिस तरह से क्रिकेट खेलते युवाओं को केंद्र में लाकर आतंकियों ने उन्हें सुरक्षा रडार पर ला दिया है उस स्थिति में अब सुरक्षा बलों का काम और मुश्किल होने वाला है क्योंकि अब तक आराम से क्रिकेट किट लेकर घूमने वाले लड़कों पर सुरक्षा बलों द्वारा जांच और सख्ती किए जाने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं. घाटी में एक नए आदेश के तहत अब केन्द्रीय बलों के १०० जवानों पर केवल १० के पास ही ड्यूटी के समय आधुनिक हथियार उपलब्ध होते हैं जिस कारण भी इस घटना में जवानों के पास उस समय हथियारों की कमी पड़ गयी फिर भी उन्होंने अँधा-धुंध गोलियां चलते उन आतंकियों में से २ को मार गिराया पर कुछ अन्य भागने में सफल रहे.
                       अत्याधुनिक हथियारों से लैस और घृणित मानसिकता के शिकार आतंकियों से आख़िर किस तरह से सुरक्षा बल निपटें इस बात का फैसला सुरक्षा विशेषज्ञों को ही करने देना चाहिए और इसमें किसी भी राजनैतिज्ञ की कोई बातें नहीं सुनी जाने चाहिए क्योंकि नेता अपने लाभ के चक्कर में ऐसे तुगलकी आदेश देने में नहीं चूकते हैं पर वास्तव में इस तरह की घटनाओं का शिकार आम लोग और सुरक्षा बलों के जवान ही होते हैं. इस तरह के किसी भी आदेश से सुरक्षा बलों के हाथों को बांधने का काम नेताओं द्वारा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि घाटी में कौन आतंकी है इसकी पहचान करना मुश्किल है पर अपनी सामान्य ड्यूटी के समय आते जाते जवान हमेशा ही आतंकियों की नज़रों में रहा करते हैं ? यदि सरकारों को वास्तव में जनता को सुरक्षित करना है तो उन्हें सुरक्षा बलों के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना चाहिए क्योंकि किसी दिन हो सकता है कि कम हथियार लेकर चलने की इस नीति के कारण कोई नेता भी इन शहीद होते जवानों के साथ मारा जाए तब बाक़ी नेताओं की समझ में सुरक्षा बलों की मजबूरियां आयेंगीं पर आतंकी तब तक नुकसान करने की अपनी मंशा के अनुरूप अपना काम कर चुके होंगे.        
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