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शनिवार, 27 अप्रैल 2013

कश्मीर- आतंकी चपेट में

                              पिछले कुछ वर्षों में ऐसा लगने लगा था कि धीरे धीरे कश्मीर घाटी की स्थिति में कुछ वर्षों में अभूतपूर्व सुधार आ जायेगा पर इस वर्ष जिस तरह से गर्मियों की शुरुवात होने के साथ ही आतंकियों ने निशाना बनाकर सुरक्षा बलों और पुलिस पर हमला करने की अपनी नई रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया है उससे यही लगता है कि वहां के हालात देखने में जितने सामान्य लगते हैं वास्तविकता उससे परे ही है. कश्मीर में सक्रिय आतंकियों को जिस तरह से हुर्रियत और कट्टरपंथ समर्थक राजनैतिक पार्टियों का समर्थन मिलता रहता है उसके बाद यह कोई नई बात नहीं है कि वहां पर आतंकी अपने स्लीपिंग मोड्यूल्स को अपनी आवश्यकता के अनुसार सक्रिय कर पाने में सफल हो रहे हैं जबकि हमारी ख़ुफ़िया व्यवस्था अपने आप में पूरी तरह तो नहीं पर काफी हद तक असफल साबित हो रही है. घाटी में सबसे बड़ी समस्या यही है कि वहां के लोगों में किसी के लिए भी यह सुनश्चित कर पाना असंभव है कि कौन आतंकी है और कौन नहीं क्योंकि आज भी वहां आतंकियों के मौन समर्थक बहुत बड़ी संख्या में है.
                       श्रीनगर बारामुला मार्ग पर हाईगाम के पास हुई इस घटना में आतंकियों ने पुलिस को खुद अपने जाल में उलझाया और पुलिस दल के पहुँचते ही उन पर घेर कर हमला कर दिया जिससे पुलिस दल को सँभालने तक का अवसर नहीं मिला. डकैती की सूचना पर सहायता के लिए गए दल पर जिस तरह से घात लगाकर हमला किया गया उससे आतंकियों की इस चाल के बारे में ही पता चलता है क्योंकि उन्होंने यह काम योजना बद्ध तरीके से किया और उसे अंजाम तक भी पहुँचाया. इस मामले में पुलिस दल की सक्रियता ही उस पर भारी पड़ गयी क्योंकि यदि डकैती की सूचना के बारे में सूत्रों से पता करने के बारे में सोचा जाता तो संभवतः पुलिस दल भी कुछ और अधिक सतर्क होता पर अशांत क्षेत्रों में पुलिस द्वारा अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रिया की अनदेखी ही पुलिस के लिए घातक साबित हुई ? पिछले कुछ समय से जिस तरह से कश्मीर में इस तरह के हमलों में काफी हद तक कमी आई थी इस बार लगता है कि परिस्थितियां वैसी नहीं रहने वाली हैं पर इस वर्ष बदली हुई रणनीति ने सुरक्षा बलों के लिए नए सिरे से सोचने की आवश्यकता को उजागर कर दिया है.
                        जम्मू कश्मीर में तैनात सभी तरह के सुरक्षा बलों को एक बार फिर से अपनी कार्यपद्धति को उसी अंदाज़ में वापस लाना होगा जैसा कि अभी तक वह किया करते थे क्योंकि बदली हुई परिस्थितयों में जिस तरह से आज आतंकियों ने अपनी रणनीति बदल ली है उसके बाद कोई भी सुरक्षित नहीं रह गया है. इस तरह की घटना से न तो कश्मीर के नेता और न ही सामान्य लोग कुछ सीखना चाहते हैं क्योंकि अब आतंक उन लोगों को ही अपना निशाना बना रहा है जो घाटी से ही आते हैं. पिछले कुछ वर्षों में आतंकियों ने जिस तरह से केन्द्रीय सुरक्षा बलों को ही अपना निशाना बनाने की नीति पर काम किया था अब वे किसी पर भी हमला करने से नहीं चूक रहे हैं जिस कारण से अब इन घटनाओं में वे कश्मीरी हता-हत हो रहे हैं जो राज्य सरकार की सेवाओं में हैं और सुरक्षा में लगे हुए हैं. अब कश्मीर में कोई इन निर्दोष पुलिस कर्मियों पर निर्मम तरीके से किये गए हमले का खुलकर विरोध क्यों नहीं कर रहा है शायद ऐसा करने से उनके अपने राजनैतिक हित आड़े आ जाते हैं जो किसी निर्दोष कश्मीरी की जान पर अधिक भारी पड़ते हैं. अब कश्मीर के लोगों को ही सोचना होगा कि वे घाटी को शांत रखने में सरकार की मदद करना चाहते हैं या आतंकियों के हाथों में पड़कर कश्मीर को भी दुनिया का वैसा इलाक़ा बनाना चाहते हैं जहाँ मुसलमान ही मुसलमान को मारने में लगे हुए हैं.            
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