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बुधवार, 8 मई 2013

बिजली संकट ज़िम्मेदार कौन ?

                          पूरे देश में जिस तरह से सारे साल ही बिजली का संकट बना ही रहता है और केंद्र और राज्य सरकारें इस मामले में गंभीर प्रयास करने के स्थान पर जिस तरह से केवल तात्कालिक सुधारों पर ही ध्यान दिया करती हैं उससे भी यह समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है. देश के सर्वाधिक आबादी वाले यूपी राज्य में इस समय बिजली की जो ज़मीनी हकीक़त है उसे जानकार भी राज्य सरकार आँखें मूंदकर बैठी हुई है क्योंकि जाति- धर्म के कुचक्र में नेताओं द्वारा फंसाए गए लोगों को यह कोई समस्या ही नहीं लगती है और वे ३ से ४ घंटे की बिजली मिलने के बाद भी कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं. इस मामले में केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि नेताओं द्वारा अपने वोट बैंक को मज़बूत करने के लिए जिस तरह से राज्यों में वितरण कम्पनियों पर बोझ डाला जा रहा है उसका कोई औचित्य नहीं है क्योंकि किसी भी दल की नीतियों से किसी वितरण कम्पनी का कोई लेना देना नहीं होता है और उस स्थिति में सरकार को किसी भी लोक लुभावन नीति के लिए अपने स्तर से धन की व्यवस्था करनी चाहिए.
                           वैसे देखा जाए तो सिंधिया का यह बयान केवल राजनैतिक बयान ही अधिक लगता है पर जिस तरह से उन्होंने बिजली संकट की इस समस्या की तरफ ध्यान दिलाया है उस पर विचार अवश्य ही किया जाना चाहिए क्योंकि उनके द्वारा उठाया गया यह मुद्दा आने वाले समय में वास्तव में राज्यों में बिजली समस्या से पूरी तरह से निजात भी दिला सकता है. आज के समय में बहुत सारी राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर वोटरों को आकृष्ट करने के लिए मुफ्त बिजली दे रही है नीतिगत मुद्दे की तरह से देखा जाए तो इस तरह के किसी भी कीमती संसाधन की इस तरह से बर्बादी करने का अधिकार किसी भी दल या नेता के पास नहीं है फिर भी सत्ता हथियाने के लिए इस तरह के हथकंडे देश भर में अपनाये ही जाते हैं और इसके लिए सभी दल ही दोषी हैं क्योंकि उन नीतियों को संचालित करने का कोई मतलब नहीं होना चाहिए जिनसे आने वाले समय में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो कि आम लोगों के लिए बिजली जैसी बुनियादी आवश्यकता भी एक दु:स्वप्न बनकर रह जाए ? सिंधिया का यह कहना भी बिलकुल सही है कि राज्य यदि इस तरह की व्यवस्था करना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए आवश्यक धन की व्यवस्था भी करनी ही होगी.
                         आज वोट पाने के लिए जिस तरह से मुफ्त बिजली की बात तो की जाती है पर पूरे बिजली तंत्र को चलाते रहने के साथ और सुधारने के लिए नियमित तौर पर जितने संसाधनों की आवश्यकता होती है वह कहीं से भी पूरी नहीं की जाती है जिससे वितरण कम्पनियों पर बोझ बढ़ता ही जाता है और वे इस स्थिति में भी नहीं रह जाती हैं कि अपने सामान्य परिचालन के लिए खर्च जुटा सकें. इस तरह की आर्थिक रूप से घातक नीतियों के कारण आज यह स्थिति उत्पन्न हो चुकी है कि बैंक तक इन वितरण कम्पनियों को परिचालन के लिए आवश्यक धन देने से भी कतराने लगे हैं ? हमारे नेता आख़िर चलते हुए तंत्रों को इस तरह से झकझोर कर क्या हासिल करना चाहते हैं यह तो उन्हें भी नहीं पता है पर आज जो संकट यूपी जैसे कुछ राज्यों में ही दिखाई दे रहा है आने वाले कल में वह पूरे देश की बहुत बड़ी समस्या बनने वाला है. ऊर्जा के इतने संकट के बीच देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने का नेताओं का सपना केवल मुंगेरी लाल का हसीन सपना ही बनकर रह जाने वाला है क्योंकि तात्कालिक रूप से कुछ वोट पाकर ५ साल के लिए सत्ता तो पाई जा सकती है पर उसके दुष्परिणामों के लिए तैयार न रहने से सामजिक असंतोष भी पैदा हो सकता है.
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