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सोमवार, 24 जून 2013

समाजवाद, सपा और अनुशासन

                                यूपी में सरकार में आने के बाद से ही जिस तरह से सपा के मंत्री, सांसद, विधायक और छुटभैये नेताओं की ज़बान कतरनी की तरह चलनी लगी थी पर अब पानी सर से ऊपर हो जाने के बाद मुलायम को यह ध्यान आया है कि इससे पार्टी की छवि प्रभावित हो रही है ? मिशन २०१४ के लिए अति उत्साह में लगे हुए सपाइयों को यह नहीं याद रहा कि २००७ में पूर्ण बहुमत से विधान सभा में पहुँचने वाली बसपा ने भी पूरा ज़ोर लगाया था और उसके बाद उसकी क्या गति लोकसभा चुनावों में रही थी किसी से भी छिपी नहीं है इसके बाद भी सपा ने अपनी पुरानी लीक को ही आदर्श माना और मुलायम जैसे नेता ने जिस तरह से अखिलेश सरकार को बन्धनों में जकड़ कर आगे किया उससे भी सपा को भला नहीं होने वाला है. सपा का पर्याय ही अनुशासन हीनता से जाना जाने लगा है और सपा की सरकार के आते ही जिस तरह से अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों पर अनुचित काम को किसी भी प्रकार से करने का दबाव बन जाया करता है उसका तोड़ अभी तक सपा नहीं ढूंढ पाई है.
                                 यदि मुलायम सिंह सपा को वास्तव में जनता से जुड़ा हुआ दल बनाना ही चाहते थे तो इस बार उनके पास बहुत बड़े अवसर भी थे कि उन्होंने अखिलेश को काम करने की पूरी छूट देनी चाहिए थी जिससे पुराने नेताओं के कारण रोज़ ही सपा सरकार की जो किरकिरी होती रहती है कम से कम उससे तो बचा जा सकता था. जनता ने मायाराज से मुक्ति पाने के लिए मजबूरी में सपा के विकल्प पर दांव आजमाया क्योंकि दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा यूपी में हाशिये पर ही चल रहे हैं. मुलायम के पास इससे अच्छा विकल्प और हो ही नहीं सकता था कि सपा का अखिलेश के नेतृत्व में एक जनप्रिय चेहरा सामने लाने का प्रयास किया जाता पर पूर्ण बहुमत में होने के बाद भी जिस तरह से उन्होंने अपने घर और सहयोगियों को अखलेश सरकार में मंत्री बनवाया उससे भी पूरी कवायद बेकार ही चली गयी और सपा केवल मुलायम के बिना ही सरकार चलाने वाली पार्टी बन गई. इससे अच्छा होता यदि मुलायम खुद ही गद्दी सँभालते क्योंकि तब सपा के बड़े नेताओं द्वारा इस तरह का दबाव उन पर नहीं बनाया जा सकता था.
                                 किसी भी तरह के दबाव को न मानने वाले मुलायम का यह राजनीतक दांव पूरी तरह से विफलता की भेंट ही चढ़ गया है क्योंकि युवा अखिलेश के माध्यम से प्रदेश और देश की जनता को जो संदेश दिया जा सकता था सपा उसमें पूरी तरह से चूक चुकी है और उसकी यह चूक अब उसके महत्वाकांक्षी मिशन २०१४ पर बहुत भारी पड़ने वाली है. अखिलेश सरकार में आज भी महत्वपूर्ण मंत्रालय जिस तरह से सीधे सीएम के नीचे हैं उनसे भी उनके काम काज पर बहुत बुरा असर पड़ता है फिर भी मुलायम को अपनी राजनैतिक पारी खेलने के लिए अखिलेश को इस तरह से मजबूर नहीं किया जाना चाहिए था यदि अखिलेश को काम करने की खुली छूट मिलती तो संभवतः उनका प्रदर्शन कुछ बेहतर होता पर कड़े प्रशासनिक निर्णय लेने में आम तौर पर पंचमुखी सपा सरकार फेल ही होती रही है जिससे भी अखिलेश की छवि प्रभावित होती रहती है. यदि मुलायम को अखिलेश पर भरोसा नहीं था तो उन्हें अखिलेश को पार्टी के काम में ही लगाकर रखना चाहिए था जिससे समय आने पर बदलाव की आवश्यकता पड़ने पर सपा उनका इस्तेमाल कर सकती थी पर आज के समय में सपा ने अपने तुरुप का इक्का भी चल दिया और उससे किसी पर कोई प्रभाव भी नहीं पड़ पाया. अब भी समय ही कि मुलायम अखिलेश को अपनी टीम चुनने का अवसर दें और घाघ सपाइयों को सड़कों पर जाकर संघर्ष करने का आदेश दें तो शायद उनके मिशन २०१४ की कुछ भरपाई सही हो सके.      
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