मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 28 जुलाई 2013

मुस्लिम, पीसीएस और आज़म

                           यूपी के चर्चित, रसूख रखने वाले और विवादों में घिरे रहने वाले मंत्री आज़म खान ने एक बार फिर से आरक्षण के मुद्दे पर बोलते हुए जिस तरह से यह सवाल किया कि क्या प्रदेश में कोई एक भी मुस्लिम इस क़ाबिल नहीं है कि वह पीसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर सके ? वैसे देखा जाए तो संविधान ऐसे किसी भी व्यक्ति को देश में किसी भी परीक्षा में सम्मिलित होने की अनुमति देता है जिसके लिए उसमें योग्यता हो पर महत्वपूर्ण प्रशासनिक परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए जिस मेहनत और लगन की आवश्यकता होती है और जिन युवाओं में वह कूट कूट कर भरी होती है वही इसमें आगे स्थान बना पाते हैं पर इस महत्वपूर्ण परीक्षा में जिस तरह से राजनीति को घुसेड़ने का प्रयास आज़म द्वारा किया गया है वह किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि इतनी बार सपा की सरकार बनने के बाद भी आज के युग के हिसाब से मुस्लिम युवाओं को सही दिशा में शिक्षा देने की कोई व्यवस्था खुद सपा भी नहीं कर पाई है और अच्छे मेधावी मुस्लिम युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक सुधार करने के स्थान पर उसने भी केवल मदरसों में ही धन के प्रवाह को बढ़ाने का काम किया है.
                                       जब खुद सपा सरकार ही यह चाहती है कि मुस्लिम युवा केवल मदरसों तक ही सिमट जाएँ तो उनके पीसीएस जैसी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफल होने के बारे में कैसे सोचा जा सकता है ? यदि सरकार वास्तव में मुस्लिम युवाओं के लिए कुछ करना ही चाहती है तो उसे कम से मंडल स्तर पर एक ऐसे अच्छे प्रशिक्षण केंद्र के बारे में सोचना ही चाहिए जिसमें मेधावी मुस्लिम छात्रों को बिना किसी रोक और पक्षपात के दाख़िला मिले और वहां पर इन मुस्लिम बच्चों की रूचि के अनुसार उनकी पढ़ाई की व्यवस्था भी की जाए पर शायद इस तरह के प्रयासों से सपा समेत किसी भी राजनैतिक दल की महत्वाकांक्षाएं पूरी नहीं होती हैं इसलिए इसे भी अनावश्यक मानकर इस पर कोई विचार ही नहीं करना चाहता है. आज जिस सवाल को आज़म ने उठाया है तो उन्हें खुद ही अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए कि आख़िर क्या कारण है उनकी सरकार द्वारा बनाई जा रही इतनी अधिक नीतियों और धन के प्रवाह के बाद भी कोई मुस्लिम युवा इन परीक्षाओं में आगे नहीं बढ़ पाता है ? क्या उनके पास इस बात के भी आंकडें हैं कि पिछले वर्षों में कितने जैन और बौद्ध अल्पसंख्यक इस परीक्षा में बैठे और सफल हुए हैं ?
                                                  यदि आज़म और सपा सरकार वास्तव में चाहते हैं कि आने वाले समय में मुस्लिम युवा आगे बढ़ें और देश कि तरक्की के साथ अपने को जोड़ सकें तो उन्हें आज से ही धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ ही व्याहारिक और आधुनिक शिक्षा में दिलचस्पी रखने वाले मुस्लिम युवाओं के पढ़ने के लिए अच्छे शिक्षा केन्द्रों की स्थापना करे जिससे आने वाले समय में किसी आज़म को यह न लगे कि मुस्लिम युवकों को सही दिशा में नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं ? अच्छा होता कि इस मसले पर केवल कोरी बयानबाज़ी के स्थान पर आज़म सपा पर दबाव बनाते और मुस्लिम युवकों के लिए अच्छे माहौल के लिए भी प्रयास करते, उनके इस तरह के हलके बयानों के बाद यदि इस बार कोई भी मुस्लिम युवक पीसीएस में अपना स्थान बना पाता है तो उस पर लोग संदेह करेंगें कि हो सकता है कि सरकार ने दबाव बनाकर इसे चयनित करवा दिया हो ? किसी मेधावी युवक की प्रतिभा पर इस तरह का प्रश्न चिन्ह लगाए जाने के लिए क्या आज़म को कटघरे में नहीं खड़ा किया जाना चाहिए ? राजनीति करने के लिए बहुत से अवसर हैं और सदैव बने रहेंगें पर धर्म के नाम पर शिक्षा को इस तरह से भ्रमित करने का प्रयास कम से कम नहीं किया जाना चाहिए.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [29.07.2013]
    चर्चामंच 1321 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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