दिल्ली से सटे गौतम बुद्ध नगर में तैनात तेज़ तर्रार आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के ख़िलाफ़ निलंबन की कार्यवाही करके अखिलेश सरकार ने प्रदेश में माहौल ख़राब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है क्योंकि जिस तरह से आगामी लोकसभा चुनावों के लिए समाज को धार्मिक आधार पर विभाजित करने का कुचक्र रचा जा रहा है अखिलेश सरकार का यह क़दम उसको आगे बढ़ाने का काम ही करने वाला है. दुर्गा ने जिस तेज़ी के साथ काम करते हुए पूरे इलाक़े में अवैध खनन माफियाओं पर जिस तरह से अंकुश लगाया था और पूरी विधिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए एक महीने में २२ मुक़दमें भी दर्ज कराए थे तो उससे ही उनकी कार्यशैली का पता चलता है क्योंकि अभी तक प्रदेश की सशक्त नौकरशाही इन खनन माफियाओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने की हिम्मत भी नहीं दिखा पाई थी और अपने कार्यकाल के दौरान दुर्गा ने जिस तरह से पूरे प्रशासनिक और पुलिस के अमले में जान डाल दी उससे खनन माफियाओं के हौसले पस्त होते जा रहे थे और वे किसी भी तरह से दुर्गा को वहां से हटवाने के लिए प्रयासरत थे.
जिस अधिकारी के ख़िलाफ़ अभी तक विधि विरुद्ध काम करने का कोई आरोप नहीं लगा हो उस प्रदेश सरकार ने एक अवैध ढंग से बनाई गयी मस्जिद की दीवार को गिराने के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया है जब यह पहले से ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक निर्णय में स्पष्ट हो चुका है कि किसी भी नए धार्मिक स्थल के निर्माण या पुराने के विस्तार से पहले जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति आवश्यक होगी तो गौतम बुद्ध नगर का प्रशासन और और अखिलेश सरकार अभी तक कान में तेल डालकर क्यों बैठे हुए थे ? यदि वह धार्मिक स्थल अवैध है तो उसके निर्माण में लगे हुए लोगों को भी बिना पूर्व अनुमति के धार्मिक स्थल के निर्माण और सार्वजनिक भूमि पर अवैध कब्ज़े के मामले में अखिलेश सरकार ने क्या मुक़दमा दर्ज़ कराया है ? विधि विरुद्ध एक अधिकारी को दण्डित करने में जितनी तेज़ी सरकार ने दिखाई क्या उसमें इतनी हिम्मत है की उस अवैध निर्माण को करने वालों पर भी कार्यवाही कर सके ? यह कुछ ऐसे तथ्य हैं जिनके बारे में स्थिति स्पष्ट किये बिना यदि सरकार आगे बढ़ती है तो भाजपा के पास उसे घेरने का एक अवसर और आ जायेगा चूंकि इस क्षेत्र से माया का भी पुराना रिश्ता है तो बसपा भी इसे एक अवसर के रूप में भुनाने से नहीं चूकने वाली है.
किसी भी सरकार के इस तरह से दोहरे बर्ताव के कारण ही उसके प्रति समाज में उसकी स्वीकायर्ता घटती जाती है आज जो स्थिति बन रही है यदि आने वाले समय में सरकार के इन तुगलकी फ़रमानों से खिन्न जनता को भाजपा अपने हिसाब से समझाने का प्रयास शुरू भी कर दे तो उसके लिए आने वाले समय में होने वाले सामजिक विभाजन के लिए कौन ज़िम्मेदार होगा ? क्या किसी अवैध ढंग से बनाए गए धार्मिक स्थल को गिराने के लिए भी कुछ विधि सम्मत किया जाना चाहिए क्योंकि अखिलेश सरकार ने दुर्गा को हटाने में जो बचकाना स्पष्टीकरण दिया है वह किसी के गले नहीं उतरने वाला है और एक कर्मठ युवा अधिकारी द्वारा जिस तरह से अवैध खनन पर सफलता पूर्वक रोक लगायी जा रही थी उसको संरक्षित करने के स्थान पर धार्मिक दीवार के पीछे छिपकर सरकार ने जो कुछ भी किया है वह उसकी कमज़ोर प्रशासनिक क्षमता को ही दर्शाता है. प्रदेश भर में किसी भी अधिकारी या कर्मचारी का किसी भी स्थान पर स्थानांतरण करने के लिए हर सरकार को पूरा हक़ मिला हुआ है फिर एक तेज़ तर्रार अधिकारी को इस तरह के घटिया आरोप लगाकर हटाना केवल राजनीतक पैतरेबाजी ही हो सकती है और उससे प्रशासनिक तंत्र पर जो दुष्प्रभाव पड़ेगा उस पर नेता कुछ बोलना भी नहीं चाहते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
जिस अधिकारी के ख़िलाफ़ अभी तक विधि विरुद्ध काम करने का कोई आरोप नहीं लगा हो उस प्रदेश सरकार ने एक अवैध ढंग से बनाई गयी मस्जिद की दीवार को गिराने के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया है जब यह पहले से ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक निर्णय में स्पष्ट हो चुका है कि किसी भी नए धार्मिक स्थल के निर्माण या पुराने के विस्तार से पहले जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति आवश्यक होगी तो गौतम बुद्ध नगर का प्रशासन और और अखिलेश सरकार अभी तक कान में तेल डालकर क्यों बैठे हुए थे ? यदि वह धार्मिक स्थल अवैध है तो उसके निर्माण में लगे हुए लोगों को भी बिना पूर्व अनुमति के धार्मिक स्थल के निर्माण और सार्वजनिक भूमि पर अवैध कब्ज़े के मामले में अखिलेश सरकार ने क्या मुक़दमा दर्ज़ कराया है ? विधि विरुद्ध एक अधिकारी को दण्डित करने में जितनी तेज़ी सरकार ने दिखाई क्या उसमें इतनी हिम्मत है की उस अवैध निर्माण को करने वालों पर भी कार्यवाही कर सके ? यह कुछ ऐसे तथ्य हैं जिनके बारे में स्थिति स्पष्ट किये बिना यदि सरकार आगे बढ़ती है तो भाजपा के पास उसे घेरने का एक अवसर और आ जायेगा चूंकि इस क्षेत्र से माया का भी पुराना रिश्ता है तो बसपा भी इसे एक अवसर के रूप में भुनाने से नहीं चूकने वाली है.
किसी भी सरकार के इस तरह से दोहरे बर्ताव के कारण ही उसके प्रति समाज में उसकी स्वीकायर्ता घटती जाती है आज जो स्थिति बन रही है यदि आने वाले समय में सरकार के इन तुगलकी फ़रमानों से खिन्न जनता को भाजपा अपने हिसाब से समझाने का प्रयास शुरू भी कर दे तो उसके लिए आने वाले समय में होने वाले सामजिक विभाजन के लिए कौन ज़िम्मेदार होगा ? क्या किसी अवैध ढंग से बनाए गए धार्मिक स्थल को गिराने के लिए भी कुछ विधि सम्मत किया जाना चाहिए क्योंकि अखिलेश सरकार ने दुर्गा को हटाने में जो बचकाना स्पष्टीकरण दिया है वह किसी के गले नहीं उतरने वाला है और एक कर्मठ युवा अधिकारी द्वारा जिस तरह से अवैध खनन पर सफलता पूर्वक रोक लगायी जा रही थी उसको संरक्षित करने के स्थान पर धार्मिक दीवार के पीछे छिपकर सरकार ने जो कुछ भी किया है वह उसकी कमज़ोर प्रशासनिक क्षमता को ही दर्शाता है. प्रदेश भर में किसी भी अधिकारी या कर्मचारी का किसी भी स्थान पर स्थानांतरण करने के लिए हर सरकार को पूरा हक़ मिला हुआ है फिर एक तेज़ तर्रार अधिकारी को इस तरह के घटिया आरोप लगाकर हटाना केवल राजनीतक पैतरेबाजी ही हो सकती है और उससे प्रशासनिक तंत्र पर जो दुष्प्रभाव पड़ेगा उस पर नेता कुछ बोलना भी नहीं चाहते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आंख की किरकिरी को हटाने का बहाना चाहिये ।
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