उत्तराखंड आपदा पर देश में राजनेताओं की लगातार चल रही नौटंकी के बीच कांची के शंकराचार्य ने जिस प्रतिबद्धता के साथ श्री केदारनाथ के पुनरुद्धार की बात कही है उससे यही लगता है की यदि इस मामले में सारे फैसले चार धाम यात्रा समिति और उत्तराखंड सरकार द्वारा ही लिए जाएँ तो यह उचित होगा और इसके लिए जिस भी तरह के विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ने वाली है उनकी खुले दिल से पूरी मदद भी ली जानी चाहिए क्योंकि जितने बड़े पैमाने पर तबाही फैली है उसमें हर तरह कई आवश्यकताएं पड़ सकती है. अच्छा होगा यदि केंद्र या राज्य सर्कार इसके पुनरुद्धार के लिए एक प्राधिकरण का गठन कर दे और पूरे कार्यक्रम के लिए एक कार्य योजना भी तैयार की जाए पर इस मामले में बहुत सारे पेंच भी फँस सकते हैं क्योंकि किसी भी तरह के दबाव या लालच में आकर कोई ठेकदार या सरकारी अधिकारी किसी के लिए लाभ के लिए नियमविरुद्ध कुछ कार्य भी कर सकते हैं इसलिए इस दुर्गम स्थान पर किसी भी तरह के पुनर्निर्माण में कोंकण रेलवे और सेना कई भी समुचित मदद ली जानी चाहिए जिससे सभी कार्यों की गुणवत्ता और समय बद्धता को सुनिश्चित किया जा सके ?
देश में जिस तरह से अपने राज्यों में कुछ बड़ा करने कई जुगत में मुख्यमंत्री इस तरह के विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में भी कुशल और अनुभवी लोगों कई मदद लेने से परहेज़ किया करते हैं वह अपने आप में ही एक बहुत ग़लत परंपरा है क्योंकि देश के किसी भी हिस्से में जो कुछ भी विकास होता है उसका सीधे ही जनता से मतलब होता है पर आज भी नेता केवल अपने हितों के लिए इन बड़े कामों में अपने लोगों की राय को ही बड़ा महत्व दिया करते हैं. उत्तराखंड में जो कुछ भी हुआ उसके लिए केवल वहां आज सत्ता में बैठी सरकार को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि वहां पर अनियंत्रित विकास की जो कहानी पिछले कई दशकों से ही लिखी जा रही थी उसका दुष्परिणाम इस तरह से सामने आना ही था. राज्य में जिस तरह से नागरिक प्रशासन पूरी तरह से हताश और किंकर्तव्यमूढ़ ही नज़र आया उससे वहां कई उन कमज़ोरियों पर भी देश का ध्यान गया जिन्हें शायद इस आपदा के बिना कोई जान भी नहीं पाता. अब आज की परिस्थिति में किस तरह से पूरे उत्तराखंड में समुचित और प्रभावी विकास को गति दी जाए यह सोचने का विषय होना चाहिए.
उत्तराखंड सरकार ने जिस तरह से नदियों के किनारे किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी है वह पूरे विकास और नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाये रखने के लिए एक बड़ा समर्थन हो सकता है क्योंकि आज जिस तरह से अवैध निर्माणों के चलते लोगों ने नदियों के किनारों को ही ख़त्म कर दिया और किसी भी विपरीत परिस्थिति में जब बाढ़ आने पर नदियों में जल प्लावन कई स्थिति होने पर उनके द्वारा विनाश की कहानी लिखने की पटकथा लिख ही दी तो अब नदियों और प्रकृति के इस तरह के क्रोध पर आरोप प्रत्यारोप लगाने से कुछ भी नहीं होने वाला है. किसी भी विकास को यदि स्थानीय पारिस्थितिकी से जोड़कर नहीं किया जायेगा तो बाहर की संस्कृति और लोगों के माध्यम से किये गए विकास का यही स्वरुप सामने आता रहेगा और हम समय समय पर इस तरह की विनाश लीला देखने के लिए अभिशप्त ही रहेंगे ? धार्मिक महत्व के क्षेत्र होने के कारण यहाँ पर श्रद्धालु तो सदैव ही आते रहेंगें पर अब आगे ऐसी किसी भी परिस्थति में बचाव कार्य करने के लिए केदार घाटी समेत राज्य में ऊंचे और सुरक्षित स्थानों पर वायु सेना और आपदा राहत दलों के लिए आधारभूत ढांचा भी बनाया जाना चाहिए. इस तरह के प्रयासों से आपदाएं रुक तो नहीं सकती हैं पर उनकी तीव्रता को कम कर राहत और बचाव कार्य को प्रभावी ढंग से चलाया जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश में जिस तरह से अपने राज्यों में कुछ बड़ा करने कई जुगत में मुख्यमंत्री इस तरह के विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में भी कुशल और अनुभवी लोगों कई मदद लेने से परहेज़ किया करते हैं वह अपने आप में ही एक बहुत ग़लत परंपरा है क्योंकि देश के किसी भी हिस्से में जो कुछ भी विकास होता है उसका सीधे ही जनता से मतलब होता है पर आज भी नेता केवल अपने हितों के लिए इन बड़े कामों में अपने लोगों की राय को ही बड़ा महत्व दिया करते हैं. उत्तराखंड में जो कुछ भी हुआ उसके लिए केवल वहां आज सत्ता में बैठी सरकार को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि वहां पर अनियंत्रित विकास की जो कहानी पिछले कई दशकों से ही लिखी जा रही थी उसका दुष्परिणाम इस तरह से सामने आना ही था. राज्य में जिस तरह से नागरिक प्रशासन पूरी तरह से हताश और किंकर्तव्यमूढ़ ही नज़र आया उससे वहां कई उन कमज़ोरियों पर भी देश का ध्यान गया जिन्हें शायद इस आपदा के बिना कोई जान भी नहीं पाता. अब आज की परिस्थिति में किस तरह से पूरे उत्तराखंड में समुचित और प्रभावी विकास को गति दी जाए यह सोचने का विषय होना चाहिए.
उत्तराखंड सरकार ने जिस तरह से नदियों के किनारे किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी है वह पूरे विकास और नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाये रखने के लिए एक बड़ा समर्थन हो सकता है क्योंकि आज जिस तरह से अवैध निर्माणों के चलते लोगों ने नदियों के किनारों को ही ख़त्म कर दिया और किसी भी विपरीत परिस्थिति में जब बाढ़ आने पर नदियों में जल प्लावन कई स्थिति होने पर उनके द्वारा विनाश की कहानी लिखने की पटकथा लिख ही दी तो अब नदियों और प्रकृति के इस तरह के क्रोध पर आरोप प्रत्यारोप लगाने से कुछ भी नहीं होने वाला है. किसी भी विकास को यदि स्थानीय पारिस्थितिकी से जोड़कर नहीं किया जायेगा तो बाहर की संस्कृति और लोगों के माध्यम से किये गए विकास का यही स्वरुप सामने आता रहेगा और हम समय समय पर इस तरह की विनाश लीला देखने के लिए अभिशप्त ही रहेंगे ? धार्मिक महत्व के क्षेत्र होने के कारण यहाँ पर श्रद्धालु तो सदैव ही आते रहेंगें पर अब आगे ऐसी किसी भी परिस्थति में बचाव कार्य करने के लिए केदार घाटी समेत राज्य में ऊंचे और सुरक्षित स्थानों पर वायु सेना और आपदा राहत दलों के लिए आधारभूत ढांचा भी बनाया जाना चाहिए. इस तरह के प्रयासों से आपदाएं रुक तो नहीं सकती हैं पर उनकी तीव्रता को कम कर राहत और बचाव कार्य को प्रभावी ढंग से चलाया जा सकता है.
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