मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 18 अगस्त 2013

शहादत रिकॉर्ड और विवाद

                                क्या देश में अब शहीदों की गिनती और मान्यता सरकारी रिकॉर्ड के आधार पर ही की जाएगी क्योंकि जिस तरह से केन्द्रीय गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड में इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं है कि अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव देश के लिए शहीद हुए थे तो उस स्थिति में क्या इन अमर बलिदानियों की शहादत को भुलाया जा सकता है ? सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी में जिस तरह से गृह मंत्रालय ने यह जवाब दिया कि उसके पास इन शहीदों की शहादत से सम्बंधित कोई दस्तावेज़ नहीं है और सरकार की तरफ से अभी तक इनको शहीद का दर्ज़ा भी नहीं दिया गया है उसके बाद से एक अनावश्यक विवाद शुरू हो गया है जिसमें भगत सिंह के रिश्तेदार भी उनको शहीद घोषित किये जाने की मांग कर रहे हैं. आख़िर उनको सरकारी दस्तावेजों में शहीद का दर्ज़ा दिए जाने या न दिए जाने से इन वीरों की शहादत पर कोई असर कैसे पड़ सकता है इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है. यह विवाद इस श्रेणी में पहुँच गया है कि खुद पीएम मनमोहन सिंह को इस मामले में हस्तक्षेप करके यह कहना पड़ा कि भगत सिंह का शहीदी दर्ज़ा किसी रिकॉर्ड का मोहताज़ नहीं है.
                               इस मसले को अब इस तरह से भी देखे जाने की आवश्यकता है कि जब हमारे इन युवा क्रांतिकारियों ने अपने क्रांतकारी विचारों से पूरे देश को उद्वेलित कर दिया था और उन्होंने खुद को अँगरेज़ सरकार के विरुद्ध चल रहे अपने आन्दोलन की धार को हर स्तर पर तेज़ ही किया था तो उनकी लोकप्रियता और उनकी बातें सुनकर आगे आने वाले युवाओं को रोकने के लिए अँगरेज़ सरकार उन्हें फाँसी दे दी थी. इस घटना के बाद क्या अँगरेज़ सरकार में इतना दम था कि वह इनसे या किसी अन्य क्रांतिकारी से जुड़े ऐसे विवादित मसलों के रिकॉर्ड अपने पास रखती ? शायद उस समय की अँगरेज़ सरकार या इस तरह की परिस्थिति में डरी हुई कोई भी सरकार इन रिकार्ड्स के साथ जो कुछ भी कर सकती थी वही अंग्रेजों ने भी किया था. इन तीनों की शहादत के बारे में आज तक पूरे देश के पाठ्यक्रम में बच्चों को पढाया जाता है और हम सभी यह जानकार ही बड़े हुए हैं कि भगत-राजगुरु-सुखदेव ने जो कुछ भी देश के लिए किया था वह अपने आप में अनूठा ही था.
                                अब इस तरह की किसी भी बात पर ऐसे विवाद खड़े करने का कोई मतलब ही नहीं बनता है पर जब यह बात सामने आ ही गयी है तो केंद्र सरकार राज्य सरकारों के प्रयासों से इस दिशा में प्रयास कर जिला स्तर पर शहीदों और स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े हुए आन्दोलनकारियों के बारे में अपने रिकॉर्ड सुधारने की कोशिश करे क्योंकि १९४७ में आज़ादी मिलने के जोश में हम लोगों ने इस बात पर विचार ही नहीं किया कि इन शहीदों और लम्बे समय तक चले हमारे स्वाधीनता संग्राम के बारे में पूरी तरह से दस्तावेजों को भी ठीक किया जाए. अभी तक जनपद और राज्य स्तर पर केवल सूचित किये गए सेनानियों की सूची ही हमारे पास उपलब्ध है और अब जिन शहीदों के नाम इस तरह की सूची में शामिल नहीं है उनके नाम भी अविलम्ब शामिल किये जाने के बारे में विचार किया जाना चाहिए और अगले वर्ष गणतंत्र दिवस से पहले ही इसको पूरी तरह से ठीक करने का प्रयत्न भी किया जाना चाहिए। हर जनपद के जिलाधिकारी को एक बार फिर से सूचनाएँ  एकत्रित कर उनके बारे में पूरी सूचनाएँ राज्य मुख्यालय पर भेजने का आदेश दिया जाने चाहिए और जो काम अभी तक अधूरा रह गया है उसे पूरा कर राष्ट्रीय धरोहर बना दिया जाना चाहिए।                      
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3 टिप्‍पणियां:

  1. इस पूरे ढाँचे को बदलने की आवश्यकता है, शुद्ध सर्जरी की न कि कास्मेटिक टीप की.

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति आज रविवार (18-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 89" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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  3. हालांकि में प्रधानमंत्री की इस बात से सहमत हूँ कि इन शहीदों की शहादत किसी सरकारी रिकोर्ड का मोहताज नहीं है लेकिन दरअसल इन शहीदों की शहादत पर तो कोई प्रश्नचिन्ह है ही नहीं लेकिन आजादी से लेकर आज तक आई सरकारें जरुर कठघरे में खड़ी है जिन्होंने शहीदों को भुला दिया और उनसे जुडी जानकारियों को एकत्रित करनें और सरकारी दस्तावेजों को दुरुस्त करनें का कोई कार्य करना जरुरी नहीं समझा !

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