मुज़फ्फरनगर से लगातार आ रही नफरत की ख़बरों के बीच एक ऐसी खबर भी अख़बारों तक पहुंची है जिसमें केवल चार हिन्दू लड़कों ने लगभग दो सौ मुसलामानों के लिए फरिश्तों जैसा काम किया और उन्हें गाँव से सुरक्षित निकाल कर पडोसी गाँव तक पहुँचाने में उनकी मदद की. गाँव डबल में जिस तरह से अमन के दुश्मनों ने गाँव में रहने वाले गरीब मजदूर मुसलमानों को धमकाना शुरू किया उसके बाद से उनमें जान बचाने के लिए भय व्याप्त होना शुरू हो गया था और इसी बीच गाँव के ही चार युवकों सोनू, अशोक, जीवन और नरेश त्यागी ने आगे बढ़कर सबको पहले गाँव के एक छोर पर पहुँचाया फिर बिना किसी की परवाह किये हुए ही उन्हें पड़ोस के चंदसीना गाँव तक पहुँचाया वह अपने आप में भारतीय सामजिक ताने बाने की असली सूरत ही है जिसे कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा समय समय पर छिन्नभिन्न करने की साजिशें रची जाती रहती हैं. ऐसा नहीं है कि विद्वेष और नफरत की आग में जलते हुए पूरे क्षेत्र के लिए में यह इकलौती घटना होगी ओअर इस तरह की ख़बरों को भी अख़बारों द्वारा प्रमुखता दी जानी चाहिए क्योंकि जब नफरत दिमाग पर हावी हो जाती है तो हर परिस्थिति में केवल बदला ही लेने का जूनून होता है और बदला लेने में अँधा हुआ व्यक्ति यह भी सोच नहीं पाता है कि व जिस व्यक्ति से बदला ले रहा है वास्तव में तो किसी भी घटना से उसका कोई मतलब ही नहीं है ? और आखिर अगर वह बदला ले भी रहा है तो उस व्यक्ति से ही क्यों जो वर्षों से उसके साथ जीता मरता रहा है ये कुछ ऐसा सवाल हैं जिनका उत्तर केवल और केवल समाज ही अपने अन्दर झाँक कर खोज सकता है क्योंकि नेता अपने स्वार्थ के लिए हर व्यक्ति को जाति और धर्म का चश्मा पहना कर उन्हें अपने रंग में रंगने की भरपूर कोशिशें करता रहता है जिसका सीधा असर पूरे समाज पर ही पड़ता है.
आज समाज को इस बारे में सोचना ही होगा और केवल सरकार और पुलिस के भरोसे हर बात को नहीं छोड़ा जा सकता है क्योंकि जब उन्माद के बाद विश्वास बहाली की बात आती है तो दोनों पक्षों में खिंचाव बहुत होता है और उस खिंचाव को प्रशासनिक दबाव में कम नहीं किया जा सकता है उसके लिए सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले हर व्यक्ति को अपने यहाँ सुरक्षा का माहौल बनाये रखने के लिए लगातार प्रयत्न करते रहना होगा क्योंकि अमन के दुश्मनों के लिए एक चिंगारी ही काफी है जिससे वे पूरे क्षेत्र में आग लागने की घटिया मानसिकता रखते हैं ऐसे में यदि समाज अपनी ज़िम्मेदारी समझे और अपने स्तर पर ही सही पर बातचीत को बनाये रखे जिससे संवादहीनता की स्थिति न पनपने पाए क्योंकि जब भी संवाद टूटता है तो संशय उसके स्थान पर खुद ही आकर अपने पैर जमा लेता है जिससे वर्षों के संबंध एक झटके में ही तार तार हो जाते हैं ? डबल गाँव में जिस तरह से इन चार युवकों ने पूरे गाँव पर कलंक लगने से बचा लिया और उन गरीब मजदूर मुसलमानों को भी सुरक्षित किया वह अपने आप में बहुत अच्छा काम है और समाज में युवकों को इसी तरह की भावनाओं से मज़बूत किया जाना चाहिए जिससे किसी भी विपरीत परिस्थिति में वे भी अमन को आगे रखकर किसी भी गलत मंशा रखने वाले व्यक्ति को सफल न होने दें ? समाज में दोनों तरफ से ही इस तरह की सद्भाव की बातें पूरे परिदृश्य को यदि सुधार नहीं सकती है तो कम से कम उन्हें बहुत निचले स्तर तक बिगड़ने से तो बचा ही सकती हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आज समाज को इस बारे में सोचना ही होगा और केवल सरकार और पुलिस के भरोसे हर बात को नहीं छोड़ा जा सकता है क्योंकि जब उन्माद के बाद विश्वास बहाली की बात आती है तो दोनों पक्षों में खिंचाव बहुत होता है और उस खिंचाव को प्रशासनिक दबाव में कम नहीं किया जा सकता है उसके लिए सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले हर व्यक्ति को अपने यहाँ सुरक्षा का माहौल बनाये रखने के लिए लगातार प्रयत्न करते रहना होगा क्योंकि अमन के दुश्मनों के लिए एक चिंगारी ही काफी है जिससे वे पूरे क्षेत्र में आग लागने की घटिया मानसिकता रखते हैं ऐसे में यदि समाज अपनी ज़िम्मेदारी समझे और अपने स्तर पर ही सही पर बातचीत को बनाये रखे जिससे संवादहीनता की स्थिति न पनपने पाए क्योंकि जब भी संवाद टूटता है तो संशय उसके स्थान पर खुद ही आकर अपने पैर जमा लेता है जिससे वर्षों के संबंध एक झटके में ही तार तार हो जाते हैं ? डबल गाँव में जिस तरह से इन चार युवकों ने पूरे गाँव पर कलंक लगने से बचा लिया और उन गरीब मजदूर मुसलमानों को भी सुरक्षित किया वह अपने आप में बहुत अच्छा काम है और समाज में युवकों को इसी तरह की भावनाओं से मज़बूत किया जाना चाहिए जिससे किसी भी विपरीत परिस्थिति में वे भी अमन को आगे रखकर किसी भी गलत मंशा रखने वाले व्यक्ति को सफल न होने दें ? समाज में दोनों तरफ से ही इस तरह की सद्भाव की बातें पूरे परिदृश्य को यदि सुधार नहीं सकती है तो कम से कम उन्हें बहुत निचले स्तर तक बिगड़ने से तो बचा ही सकती हैं.
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